न्यूज़ डेस्क : केंद्र सरकार द्वारा देश के सामने रखी गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को कई मायनों में क्रांतिकारी बताया जा रहा है। तीन वर्ष के ऊपर सभी बच्चों को शिक्षा के साथ जोड़ना, सबको कौशल प्रशिक्षण देना और मातृ भाषा में शुरूआती शिक्षा देने को सकारात्मक बदलाव माना जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही नई शिक्षा नीति को लेकर शिक्षाविदों की चिंताएं भी सामने आ रही हैं। सबसे ज्यादा चिंता इस बात को लेकर व्यक्त की जा रही है कि नई नीति से शिक्षा का बाजारीकरण बढ़ेगा। इससे गरीब छात्रों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ सकता है। छोटे बच्चों की शिक्षा को औपचारिक बनाने के पहलुओं के साथ नई नीति की सफलता के मूल्यांकन की भी उचित व्यवस्था नहीं है। केंद्र की नई शिक्षा नीति पर उठ रहे इन सवालों का जवाब दिल्ली सरकार की नई शिक्षा नीति में होगा।
मनोवैज्ञानिक विकास पर जोर
नए शिक्षा बोर्ड के गठन की तैयारियों को लेकर शनिवार को एक बैठक हुई। इस बैठक में शामिल एक शिक्षा विद ने अमर उजाला को बताया कि अभी बोर्ड की रूपरेखा और इसके कार्य करने की पद्धति को लेकर मंथन किया जा रहा है। इसके गठन के बाद ही विषय और पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाएगा। लेकिन एक बात स्पष्ट कर ली गई है कि नया ढांचा छात्रों को विषयों का रट्टू तोता बनाने की बजाय उनमें विषयों की ज्यादा गंभीर समझ विकसित करने पर जोर देगा। छात्रों को परीक्षाओं के भय से मुक्त रखने की कोशिश होगी, लेकिन प्रत्येक सप्ताह और प्रत्येक माह के आंतरिक मूल्यांकन से उनके विकास पर लगातार नजर रखी जाएगी। लेकिन इस पद्धति में इस बात की संभावना है कि कोई स्कूल, विषय का अध्यापक या प्रिंसिपल अपने को बेहतर बताने के लिए अपने छात्रों के परिणाम बेहतर दिखा सकता है। इससे बचने के लिए छात्रों का एक थर्ड पार्टी से मूल्यांकन भी कराया जाएगा जिससे इस तरह की किसी संभावना को खत्म किया जा सकेगा।
सरकारी स्कूलों को बढ़ावा
दिल्ली सरकार के एजुकेशन मॉडल में सरकारी स्कूलों को बढ़ावा मिलेगा। शिक्षा का बाजारीकरण को हतोत्साहित करने के लिए कदम उठाए जाएंगे जिससे पब्लिक स्कूल कल्चर को कमजोर किया जा सके। प्रवासी मजदूरों के बच्चों को भी शिक्षा का बेहतर अवसर देकर उसे विकास का पूरा अवसर देने पर जोर दिया जाएगा। शिक्षा के इस मॉडल में अभिभावकों की भूमिका को बढ़ाया जाएगा जिससे वे बच्चों को उचित माहौल देने में सरकार की मदद कर सकें।
स्किल डेवलपमेंट
शिक्षा विशेषज्ञ के मुताबिक़, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार इस बात पर जोर देते रहे हैं कि छात्रों को नौकरी खोजने वाला बनाने की बजाय उन्हें रोजगार देने वाला यानी उद्यमी बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। नई संकल्पना में इस विचार को आधारभूत ढांचा उपलब्ध कराने पर भी जोर दिया जाएगा। छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त के लिए या अपना रोजगार विकसित करने के लिए आर्थिक संसाधन भी राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराया जाएगा। विशेषज्ञ के मुताबिक़ भविष्य में सरकार के शिक्षा बजट में इसके लिए अतिरिक्त व्यवस्था की जा सकती है।
आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, डिजिटलीकरण
दिल्ली जैसे महानगर में स्मार्ट फोन, कम्प्यूटर या लैपटॉप तक ज्यादातर बच्चों की पहुंच है। कोरोना काल की समस्या को देखते हुए शिक्षा के डिजिटलीकरण पर जोर दिया जाएगा। भविष्य की चुनौतियों के लिहाज से बच्चों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पर्याप्त शिक्षा दी जाएगी। तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ पूरी शिक्षा बच्चों की स्थानीय भाषा में उपलब्ध कराने पर जोर दिया जाएगा। दिल्ली के लिहाज से हिंदी और अंग्रेजी के साथ उर्दू और पंजाबी को भी शिक्षा के माध्यम बनाने पर विचार किया जा सकता है।
निगम स्कूलों से निकलने वाले छात्र बड़ी चिंता
दिल्ली सरकार को एक बड़ी चिंता नगर निगम के स्कूलों औत्र उनमें पढ़ने वाले छात्रों को लेकर है। तीनों नगर निगम मिलाकर लगभग 1660 प्राथमिक विद्यालय चलाते हैं। 19 हजार से अधिक टीचर/प्रिंसिपल लगभग सात लाख छात्रों को पढ़ाते हैं। इन स्कूलों में ज्यादातर गरीबों और प्रवासी मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं। इसके अलावा एनडीएमसी के 45 स्कूलों में 30 हजार छात्र पढ़ते हैं। दिल्ली सरकार की चिंता है कि ये बच्चे अच्छे स्तर की शिक्षा नहीं पाते हैं जिसकी वजह से इनका उचित विकास नहीं हो पाता। जब यही बच्चे छठवीं और इससे ऊपर की पढ़ाई के लिए दिल्ली सरकार के स्कूलों में जाएंगे तब इनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मुश्किल आ सकती है। दिल्ली सरकार के नए बोर्ड में इन छात्रों की चुनौतियों से निबटने की रणनीति पर भी विचार किया जा रहा है जिससे 14 साल तक के बच्चों का संपूर्ण विकास किए जा सके। बोर्ड के गठन की रूपरेखा निश्चित हो जाने के बाद स्टेट काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (SCERT) इसके अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार करेगा।
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