केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच वार्ता बेनतीजा समाप्त, दोनों पक्ष अपने स्थान से पीछे हटने को राजी नहीं

 न्यूज़ डेस्क : केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच शुक्रवार को हुई 11वें दौर की वार्ता भी बेनतीजा ही समाप्त हो गई। यहां तक कि इस बैठक में अगली बैठक को लेकर कोई तारीख तक तय नहीं हो सकी। ऐसे में साफ है कि अब दोनों पक्ष अपने स्थान से पीछे हटने को राजी होते नहीं दिख रहे हैं।

 

 

 

बहरहाल, बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि अगली बैठक के लिए कोई तारीख तय नहीं की गई; सरकार ने यूनियनों को दिए गए सभी संभावित विकल्पों के बारे में बताया, उनसे कहा कि उन्हें कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव पर अंदरूनी चर्चा करनी चाहिए। 

 

 

उन्होंने कहा कि सरकार की ओर कानूनों को फिलहाल लागू नहीं करने का जो प्रस्ताव किसानों को दिया गया है, उससे बेहतर कुछ और नहीं हो सकता है। वहीं दूसरी ओर किसान नेताओं ने कहा कि ये बैठक बेशक लगभग पांच घंटे तक चली हो, लेकिन दोनों पक्ष 30 मिनट से कम समय तक आमने-सामने बैठे। 

 

 

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यूनियनों से कहा कि यदि किसान तीनों कृषि कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव पर चर्चा करना चाहते हैं तो सरकार एक और बैठक के लिए तैयार है। इसके साथ ही कृषि मंत्री तोमर ने सहयोग के लिए यूनियनों को धन्यवाद दिया; और कहा कि कानूनों में कोई समस्या नहीं है लेकिन सरकार ने किसानों के सम्मान के लिए इन कानूनों को स्थगित रखे जाने की पेशकश की।

 

 

किसानों और गरीबों के उत्थान के लिए सरकार प्रतिबद्ध : तोमर

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान यूनियनों के साथ 11वें दौर की वार्ता के बाद मीडिया से बातचीत में कहा कि भारत सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में किसानों और गरीबों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है और रहेगी। विशेष रूप से पंजाब के किसान और कुछ राज्यों के किसान कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।

 

 

उन्होंने कहा कि इस आंदोलन के दौरान लगातार ये कोशिश हुई कि जनता के बीच और किसानों के बीच गलतफहमियां फैलें। इसका फायदा उठाकर कुछ लोग जो हर अच्छे काम का विरोध करने के आदि हो चुके हैं, वे किसानों के कंधे का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर सकें।

 

कुछ तो ऐसी ताकत है जो…

कृषि मंत्री ने कहा कि भारत सरकार की कोशिश थी कि वो सही रास्ते पर विचार करें जिसके लिए 11 दौर की वार्ता की गई। परंतु किसान यूनियन कानून वापसी पर अड़ी रही। सरकार ने एक के बाद एक प्रस्ताव दिए। परंतु जब आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता। तोमर ने कहा कि कुछ तो ऐसी ताकत है, जिसकी वजह से फैसला नहीं हो पा रहा है।

 

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह भी कहा कि वार्ता के दौर में मर्यादाओं का तो पालन हुआ, परंतु किसानों के हक में वार्ता का मार्ग प्रशस्त हो, इस भाव का सदा अभाव था। इसलिए वार्ता निर्णय तक नहीं पहुंच सकी। इसका मुझे भी खेद है।

 

फैसले पर पहुंच जाएं तो बताएं

तोमर ने कहा कि हमने किसान यूनियन को कहा कि जो प्रस्ताव आपको दिया है- 1 से 1.5 वर्ष तक कानून को स्थगित करके समिति बनाकर आंदोलन में उठाए गए मुद्दों पर विचार करने का प्रस्ताव बेहतर है, उस पर फिर से विचार करें।

 

हमने यह भी कहा कि आज वार्ता को पूरा करते हैं, आप लोग अगर निर्णय पर पहुंच सकते हैं तो आप कल (शनिवार) अपना मत बताइए। निर्णय घोषित करने पर आपकी सूचना पर हम कहीं भी इकट्ठा हो सकते हैं।

कोई अन्य प्रस्ताव सरकार ने नहीं दिया: टिकैत

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार की तरफ से कहा गया कि 1.5 साल की जगह 2 साल तक कृषि क़ानूनों को स्थगित करके चर्चा की जा सकती है। उन्होंने कहा अगर इस प्रस्ताव पर किसान तैयार हैं तो कल फिर से बात की जा सकती है, कोई अन्य प्रस्ताव सरकार ने नहीं दिया।  

 

बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बैठक के बाद कहा कि सरकार की तरफ से कहा गया कि डेढ़ साल की जगह दो साल तक कृषि कानूनों को स्थगित करके चर्चा की जा सकती है। उन्होंने कहा अगर इस प्रस्ताव पर किसान तैयार हैं तो कल फिर से बात की जा सकती है, कोई अन्य प्रस्ताव सरकार ने नहीं दिया।

 

मंत्री ने हमें साढ़े तीन घंटे इंतजार करवाया: एसएस पंधेर

किसान मजदूर संघर्ष समिति के एसएस पंधेर ने कहा कि मंत्री ने हमें साढ़े तीन घंटे इंतजार करवाया। यह किसानों का अपमान है। जब वह आए, तो उन्होंने हमसे सरकार के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए कहा।

 

 

सरकार ने एमएसपी पर भी समिति बनाने का दिया प्रस्ताव

एक किसान नेता ने बताया कि, सरकार ने आज ये प्रस्ताव भी दिया कि हम एक कमेटी कृषि कानून पर बना देते हैं और एक कमेटी एमएसपी पर बना देते हैं। दोनों समितियां अपनी रिपोर्ट देंगी और हम डेढ़ की बजाय दो साल के लिए कानूनों पर रोक लगा देते हैं। लेकिन सरकार ने पहले बनाई गई किसी समिति की सिफारिशों को लागू नहीं किया गया तो हम कैसे मान लें इन समितियों की सिफारिश सरकार मानेगी।

 

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