मेरे पिता आर्मी में थे और मैने केवल भारतीय शब्द ही सुना और समझा है : विद्युत जामवाल
‘खुदा हाफिज: चैप्टर 2- के प्रमोशन के लिए इंदौर आए विद्युत जामवाल, शिवालिका ओबेरॉय और फारुक कबीर
इंदौर । दक्षिण भारतीय फिल्में हों, हिंदी फिल्में हों या कोई और भारतीय भाषा की फिल्में क्या फर्क पड़ता है। सभी फिल्मों हैं तो भारतीय ही। मेरे पिता आर्मी में थे और वहां मराठी, बिहारी, बंगाली, पंजाबी, गुजराती नहीं केवल भारतीय शब्द ही सुना और समझा। इसलिए मेरी नजर में कोई अंतर नहीं है। फिल्म बस फिल्म है और दर्शक उसे देखते हैं। मैंने खुद अपने करियर की शुरुआत दक्षिण की फिल्मों से की लेकिन हिंदी फिल्मों में भी प्यार और अपनापन मिला। यह बात हिंदी फिल्म जगत के सुपर स्टार विद्युत जामवाल ने इंदौर आगमन पर मीडिया से हुई मुलाकात में कही। मंगलवार को विद्युत जामवाल 8 जुलाई को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘खुदा हाफिज: चैप्टर 2- अगि्न परीक्षा’ के प्रमोशन के लिए आए थे। विद्युत के साथ इस फिल्म की हिरोइन शिवालिका ओबेरॉय और फिल्म के निर्देशक व लेखक फारुक कबीर भी आए थे। होटल में उन्होंने मीडिया से चर्चा भी की और अपने फैंस के साथ फोटोशूट भी कराया।
विद्युत जामवाल ने फिल्म के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस फिल्म में अभिनय करना उनके लिए बेहद खास अनुभव रहा क्योंकि फिल्म केवल एक्शन पर आधारित नहीं बलि्क इमोशन से भी भरी है। इसमें प्यार भी है और प्यार है तो लड़ाई तो होगी ही। शिवालिका ओबेरॉय कहती है कि इस फिल्म के जरिए वे समाज को नारी सशक्तीकरण का संदेश दे रही हैं। फिल्म की शूटिंग को लेकर मुझे थोड़ा डर था लेकिन विद्युत जामवाल, फारुक कबीर और टीम के अन्य सदस्यों के सहयोग से मैं अपना शत प्रतिशत फिल्म में दे सकी।
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फारुक कबीर बातते हैं कि इस फिल्म का एक गीत रुबरु हजरत निजामुद्दीन ओलिया की दरगाह पर फिल्माया है और वहां यह गीत इसलिए फिल्माया क्योंकि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के तमाम रागों में से 8 राग की उत्पत्ती वहीं से हुई थी। जहां कि बात अलग-अलग भाषा और क्षेत्र के फिल्मों की है तो उनमे कोई अंतर नहीं बचा।
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