बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही हुआ चमत्कार, पुरोहित मान रहे शुभ संकेेत

न्यूज़ डेस्क : बदरीनाथ धाम के कपाट शुक्रवार को सादगी के साथ शुभ मुहूर्त पर विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ प्रात: 4.30 बजे ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए गए हैं। वहीं, इस बार कपाट खुलने के साथ एक ऐसी बात हुई जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। वहीं, तीर्थ पुरोहित इसे देश के लिए शुभ संकेेत मान रहे हैं।

 

 

बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के दिन भगवान बदरीनाथ की प्रतिमा को धृत कंबल (घी का लेप लगाया ऊन का कंबल) से ढका जाता है। अगले वर्ष धाम के कपाट खुलने पर बदरीनारायण की प्रतिमा पर घी यथावत रहने को शुभ माना जाता है।

 

 

भगवान की प्रतिमा पर इस बार घी मौजूद था, लिहाजा देश के उन्नत भविष्य की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि ऐसा हर बार नहीं होता है। कई सालों में एक बार ही होता है। बाहर इतनी बर्फबारी के बाद ठंड होने के बाद भी अगर घी सूखता नहीं है तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं है।

 

धाम के कपाट खोलने के दौरान 11 लोग ही अखंड ज्योति के साक्षी बने। जबकि पूरे मंदिर परिसर में 28 लोग ही मौजूद थे। सवा तीन बजे बदरीनाथ धाम के दक्षिण द्वार से भगवान कुबेर की उत्सव डोली और तेल कलश यात्रा ने परिक्रमा स्थल में प्रवेश किया। इसके बाद कुबेर जी की प्रतिमा को बदरीश पंचायत (गर्भगृह) में स्थापित किया गया।

 

साढ़े तीन बजे रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल, अपर धर्माधिकारी धर्मानंद चमोला सहित वेदपाठियों ने बदरीनाथ के कपाट खोले और उद्धव जी की प्रतिमा के साथ मंदिर में प्रवेश किया।

 

लॉकडाउन के कारण धाम के कपाट तो सादगी से खुल गए लेकिन इस दौरान चारों ओर सन्नाटा पसरा रहा। उत्साह और उल्लास पूरी तरह से गायब रहा। न बदरीविशाल के जयकारे सुनाई दिए न आर्मी जवानों की मनमोहक बैंड की धुन। महिलाओं का समूह में पारंपरिक नृत्य भी नहीं हुआ।

 

कपाट खुलने के दौरान सामाजिक दूरी का पूरा पालन किया गया। कपाट खुलने से पहले पूरे मंदिर परिसर को सैनिटाइज किया गया। बदरीनाथ मंदिर को चारों ओर से गेंदे के फूलों से सजाया गया था।

 

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