चावल और मक्का के वैकल्पिक इस्तेमाल की अनुमति देने से किसानों को मूल्य स्थिरता में मदद मिलती है और नए निवेश भी होते हैं
पहल से आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने, हमारे अपने उत्पादित पर्यावरण के अनुकूल ईंधन का उपभोग करने और उद्योग तथा किसानों को लाभकारी कीमतों का भुगतान करने में मदद मिलती है
इथेनॉल योजना से देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित बताने वाली रिपोर्ट दुर्भावनापूर्ण हैं
मीडिया के एक हिस्से में, महत्वाकांक्षी इथेनॉल योजना को देश में खाद्य सुरक्षा पर संकट से जोड़ते हुए कुछ रिपोर्ट आई थीं। यह स्पष्ट किया जाता है कि ये रिपोर्ट निराधार, दुर्भावनापूर्ण और तथ्यों से परे हैं।
यह समझना बहुत जरूरी है कि भारत जैसे युवा देश के लिए, जहां भोजन की जरूरतों को पूरा करना सर्वोपरि है, वहीं हर तरह से ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करना भी महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, बदले हुए परिदृश्य में “ईंधन के साथ आहार” होना चाहिए न कि “आहार बनाम ईंधन”।
सबसे तेजी से बढ़ते अपने देश में ईंधन की मांग लगातार बढ़ रही है और कच्चे तेल के आयात पर लगातार बढ़ती निर्भरता हमारी भविष्य की विकास क्षमता को काफी हद तक बाधित कर सकती है। एथनॉल, बायोडीजल, कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) जैसे घरेलू ईंधन के विकास में ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव लाने की क्षमता है। पिछले छह वर्षों के दौरान, इस सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए अतिरिक्त गन्ना आधारित कच्चे माल (जैसे गन्ने का रस, चीनी, चीनी सिरप) के रूपांतरण की अनुमति देकर तरलता की कमी वाले चीनी उद्योग में 35,000 करोड़ रुपये का सफलतापूर्वक निवेश किया है। इससे निश्चित रूप से गन्ना किसानों के बकाया के जल्द निपटान में मदद मिली है और उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है। मौजूदा सीज़न के लिए, यह उम्मीद की जाती है कि अकेले इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम के माध्यम से 20,000 करोड़ रुपये से अधिक निवेश किया जाएगा, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विकास को बढ़ावा देगा, जो चुनौतीपूर्ण कोरोना काल में सबसे अनुकूल क्षेत्र है।
गन्ना सीजन 2021-22 के लिए चीनी का उत्पादन लगभग 340 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जो 90 लाख मीट्रिक टन के शुरुआती भंडार से अधिक होने के साथ-साथ कुल मिलाकर 260 लाख मीट्रिक टन की घरेलू खपत से बहुत अधिक है। इसमें से 35 लाख मीट्रिक टन चीनी की अतिरिक्त मात्रा को इथेनॉल में बदलने का प्रस्ताव है। यह नहीं भूलना चाहिए कि ये इथेनॉल उत्पादन के लिए चीनी की अतिरिक्त मात्रा है, जिसे अन्य देशों को रियायती दर पर निर्यात करना होगा या यदि बाजार में जारी किया जाता है तो चीनी की कीमतें उत्पादन लागत से काफी कम हो जाती हैं तथा इससे पूरी तरह से उथल-पुथल हो जाता है। इसी तरह, अकेले भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास (05.10.2021 तक) चावल का स्टॉक 202 लाख मीट्रिक टन है, जो देश की बफर स्टॉक की आवश्यकता से बहुत अधिक है।
पिछले छह वर्षों के दौरान पेट्रोल में इथेनॉल मिलाकर 20,000 करोड़ रुपये से अधिक विदेशी मुद्रा की बचत की गई है। चालू वर्ष के लिए, लगभग 10,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत होने की संभावना है। यह धनराशि कच्चे तेल की खरीद के स्थान पर आम भारतीय लोगों की जेब में पहुंचती है।
उपर्युक्त से संकेत लेते हुए तथा वैश्विक प्रचलनों के अनुसार, सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए चावल के अतिरिक्त भंडार को भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास बदलने की अनुमति दी है। इसके अलावा, सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्का जैसे मोटे अनाज के रूपांतरण की भी अनुमति दी है। कोविड-19 के दौरान मुफ्त चावल और अन्य अनाज वितरित करने के बावजूद, भारतीय खाद्य निगम के पास अभी भी चावल का विशाल भंडार है। इसके अलावा, ताजा चावल के स्टॉक की बढ़ी हुई मात्रा आने लगेगी, क्योंकि कृषि का मौसम बहुत अच्छा रहा है।
मक्के के एथनॉल में उच्च रूपांतरण से देश भर में उच्च डीडीजीएस (मवेशी चारा) का उत्पादन भी संभव होगा, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फिर से मदद मिलेगी। खाद्यान्नों को ईंधन में बदलने से उत्पन्न अतिरिक्त मांग को देखते हुए, किसान फसलों को बदलने और अपने फसल पैटर्न को बदलने के लिए भी प्रोत्साहित होंगे।
चावल और मक्का के वैकल्पिक इस्तेमाल की अनुमति देने से न केवल किसानों को उनके उत्पादन के लिए मूल्य स्थिरता (खाद्यान्न के अतिरिक्त भंडार के वैकल्पिक उपयोग के अभाव में, कीमतें गिर सकती हैं) में मदद मिलेगी, बल्कि डिस्टिलरी और संबद्ध बुनियादी ढांचे में नया निवेश भी हो सकेगा। यह पहल प्रधानमंत्री के “आत्मनिर्भर भारत” के आह्वान के साथ भी अच्छी तरह तालमेल रखती है, क्योंकि आयातित कच्चे तेल पर हमारी निर्भरता कम होती है, अपने स्वयं के उत्पादित पर्यावरण के अनुकूल ईंधन का उपभोग करते हैं और उद्योग तथा किसानों को लाभकारी कीमतों का भुगतान करना संभव होता है।
यह दोहराया जाता है कि लोगों और मवेशियों के आहार के लिए खाद्यान्न की मांग को पूरा करना हमेशा सरकार की पहली प्राथमिकता रहेगी। चीनी (2021-22 के लिए 35 लाख मीट्रिक टन) और खाद्यान्न के इन अतिरिक्त भंडार को अब नुकसान से अधिक लाभ के साथ एक वैकल्पिक इस्तेमाल का रास्ता मिल गया है।
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