पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सम्बदध कार्यालय राष्ट्रीय तटतीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर), तटीय जल में 10 मीटर गहराई पर तैरने वाले चिह्न, यानी उत्प्लव (ब्वॉय) लगाये हैं, ताकि तटतीय जल की गुणवत्ता की वास्तविक समय पर जानकारी जमा की जा सके। इन आंकड़ों को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के साथ साझा किया जायेगा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सभी तटीय राज्य प्रदूषण बोर्डों (एसपीसीबी) और केंद्र शासित प्रदेशों की प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) को निर्देश दिया है कि वे तटीय प्रदूषण की रोकथाम के लिये कार्य-योजना विकसित करें। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीनस्थ राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र इस कार्य में सभी एसपीसीबी और पीसीसी की सहायता कर रहा है।
वैज्ञानिक और अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाने के लिये एनसीसीआर ने कई पहलें की हैं।
जल की गुणवत्ता की निरंतर निगरानी करने के लिये तटों के आसपास जल-गुणवत्ता उत्प्लवों को लगाया जा रहा है।
जैव नमूनों की पहचान और विश्लेषण की पारंपरिक पद्धति के साथ-साथ मोलेक्युलर उपकरणों जैसी उन्नत तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
विश्व के अग्रणी समुद्र-विज्ञान संस्थानों (जेएएमएसटीईसी, जापान; सीईएफएएस, यूके; एनआईवीए, नॉर्वे) के साथ सहयोग किया जा रहा है।
मैरीन स्पेशल प्लानिंग, मैरीन लिटर मॉनीटरिंग, कोस्टल फ्लडिंग जैसे नये अनुसंधान कार्यक्रमों को शुरू किया गया है।
निम्नलिखित उपायों को क्रियान्वित किया जा रहा हैः
समुद्री प्रदूषण को कम करने के लिये तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा कार्य-योजना का तैयार किया जाना।
तटीय जल गुणवत्ता पर वास्तविक समय में सूचना प्राप्त करने के लिये जल-गुणवत्ता उत्प्लवों का लगाया जाना।
मौजूदा मानकों की जांच और तटीय जल की गुणवत्ता में कमी को रोकने के मानकों को उन्नत बनाने के सम्बंध में भारतीय तटीय क्षेत्रों के आसपास समुद्री जल निकास के अध्ययन के लिये वैज्ञानिक पहलें की गई हैं। समुद्री किनारों और उनके आसपास के क्षेत्रों को साफ-सुथरा रखने के प्रति लोगों तथा हितधारकों में जागरूकता पैदा करने के लिये स्वच्छ तट अभियानों को नियमपूर्वक चलाया जाता है।
आज लोकसभा में पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने एक लिखित प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी।
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