न्यूज़ डेस्क : सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले हफ्ते मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिए जाने के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की है। पांच मई को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को निरस्त करते हुए 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघने को समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया था।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर कर पांच मई के फैसले पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि मराठा समुदाय के लोगों को उच्च शिक्षा व नौकरियों में दिए गए आरक्षण की अधिकतम सीमा (50 फीसदी) का उल्लंघन है, लिहाजा यह असंवैधानिक है।
संविधान पीठ ने कहा था कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक व सामाजिक रूप से पिछड़ा नहीं करार दिया जा सकता। ऐसे में उन्हें आरक्षण के दायर में लाना सही नहीं है। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघने को समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया है।
संविधान पीठ के पांच में से तीन सदस्यों (बहुमत) का मानना था कि 102वें संशोधन के बाद राज्यों के पास सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने का अधिकार नहीं है। वहीं दो सदस्यों की राय इससे उलट थी।
केंद्र सरकार का पक्ष रहा है कि संविधान के 102वें संशोधन से राज्य सरकार को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) की सूची बनाने का अधिकार खत्म नहीं हो जाता है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने पर विचार कर रही है। हालांकि केंद्र सरकार ने उससे पहले रिव्यू पिटिशन दायर कर दी है।
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