इंदौर, 05 मार्च 2019: अखिल भारतीय महिला साहित्य समागम का दो दिवसीय आयोजन वामा साहित्य मंच तथा घमासान डॉट कॉम द्वारा किया गया| दूसरे दिन के समापन सत्र में प्रसिद्ध लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार अचला नागर ने कहा कि अमृत लाल जी नागर की कालजई रचनाएं है वे आज भी पढ़ी जा रही हैं| उन्होंने बताया कि किस तरह से अमृत लाल जी नागर से उन्हें विरासत में साहित्य की विरासत मिली उन्होंने साहित्य के साथ साथ फिल्म तथा रेडियो के लिए लिखा| अमृत लाल जी जो भी लिखते थे, वे घर में सब को पढ़ कर सुनाते थे वहीं से उन्हें साहित्य की विरासत मिलना शुरू हुई| उन्होने ‘आखिर क्यों‘ और ‘निकाह‘ जैसी सुपरहिट फिल्में लिखी| वह इस सत्र में ‘बेटियों की कलम में बसी पिता की विरासत‘ पर साझा कर रही थीं|
प्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोड़ा ने अपने लेखन से जुड़े अनुभव साझा किए| उन्होंने बताया कि किस तरह से राजेन्द्र यादव जी उनके घर आया करते थे। राजेंद्र यादव जी पर मेरे पिता का एक लेख लिखा था। मेरे पिता राजेंद्र जी के दोस्त थे लेकिन मैं दुश्मन। हम उन्हें लंगड़े चाचा कहते थे। मेरी मां कविताएं लिखती थीं। उस जमाने मे कविता लिखना गलत माना जाता था।
प्रसिद्ध फिल्मकार तथा लेखक शरद जोशी की पुत्री नेहा शरद ने कहा कि देश में महिला व्यंगकारों की बेहद कमी है| इसकी सबसे बड़ी वजह है कि महिलाएं अपने जीवन के निर्णय खुद नहीं ले पाती तो फिर भी व्यंग कैसे लिखेंगे| जिस दिन इस देश में महिला व्यंग्यकार आ जाएंगे उस दिन समझ लीजिए कि सारी स्थितियां बदल जाएंगी| उन्होंने अपनी एक स्वरचित रचना भी सुनाई जिसमें उन्होंने कहा कि जी हां यह सही है कि हवाएं बहती है, खुला आसमान है, हरा भरा जहां भी है, तू मेरे बैंक का कर्ज माफ करा दे, मेरे लिए अच्छा सा मकान बनवा दे तो मैं मान लूं कि तेरा भी वजूद है|
निर्मला भुराडियाजी ने स्मृतियो के झरोखे से पिता की यादों को सांझा किया। उन्होंने कहा कि स्याही की एक बूंद भी किसी भी विषय पर लिखने के लिए पर्याप्त होती है। समापन सत्र की मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुधा अरोडा, नेहा शरद, निर्मला भुराडिया तथा सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. अचला नागर अध्यक्ष थीं। कार्यक्रम में वामा सखियों द्वारा रचित, स्मृति आदित्य द्वारा संपादित पुस्तक “मेरे पास माँ है” का विमोचन हुआ|
दूसरे दिन का प्रथम सत्र ‘आंचलिक भाषा का स्वर माधुर्य ठेठपन विलुप्त हो रहे लोकोक्ति, कहावतें व मुहावरे‘ विषय पर आधारित था। इस सत्र के प्रमुख वक्ता सरला शर्मा रचना निगम सुरभि बेहेरा थे|
अंजली भाषा का अपना ध्वनि माधुर्य है
वरिष्ठ साहित्यकार सरला शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि आंचलिक भाषा का अपना ध्वनि माधुर्य है। हैया रे ,हैया ये , शब्द नही है ये ध्वनियां है। किसी भी विषय की सार्थकता तभी होगी जब साहित्यकार अपनी रचना में आंचलिक भाषा को स्थान दे। आंचलिकता में लोकोक्ति का दर्शन भाषा के सौंदर्य को बढ़ाता है। मुहावरे जीवंत होते है। ये लोक मानव में रचे बसे हुए है। हमारे जीवन से इस तरह संलग्न है कि आप इन्हें अपने जीवन से दूर नही कर सकते। ध्वनियों को हम कभी भी समाप्त नहीं कर पाएंगे
आयोजन के प्रथम सत्र में ध्वनियों पर चर्चा हुई, जिसमें डॉ रचना निगम ने अपने विचार रखे| उन्होंने कहा कि ध्वनियों का कभी भी महत्त्व समाप्त नहीं हो सकता साहित्य और लोक गीतों में ध्वनियों का अपना एक अलग ही महत्व है| आंचलिक भाषा के साथ में अंचल और आंचलिकता जुड़ी हुई है|
स्वाति जोशी ने प्रस्तुत किया मराठी में अपना आलेख
आयोजन के दूसरे दिन के पहले सत्र में पुणे से आई स्वाति जोशी ने अपना आलेख मराठी में प्रस्तुत किया| इसमें लोकगीतों में जो ध्वनियों का भाव आता है उसे बहुत अच्छे से प्रस्तुत किया | उन्होंने पसंद पर आधारित अपनी एक कविता भी प्रस्तुत की जिसकी सभी ने सराहना की| इस कविता में एक स्त्री को यह भाव दिया जा रहा है कि तू किसी से डर मत, तू आगे बढ,़ तू साहस के साथ समाज का सामना कर, बसंत में जैसे सब फूलता है ऐसे तू अपने मन को भी फुला और आगे बढ़|
मराठी तथा गुजराती के साथी हिंदी कविताओं का वाचन
कार्यक्रम के दूसरे दिन बेहद रोचक कविताएं प्रस्तुत की गई जो मराठी और गुजराती में भी थी| गुजरात की कविता में बेहद मार्मिक भाव प्रस्तुत किए गए जिसमें कहा गया आधुनिक मोबाइल के साथी जीवन शैली किस तरह से हमारे समाज के लिए घातक साबित हो रही है । देवास से आई राधिका इंगले द्वारा मालवी में कविता प्रस्तुत की गई जिसकी बहुत सराहना हुई| उन्होंने इस कविता को गाकर सुनाया जिसमें स्कूल जाने के लिए बेहद सुंदर भाव व्यक्त किए गए हैं|
अपनी रचनाओं में ठेठ शब्दों का उपयोग करना चाहिए
आयोजन के दूसरे दिन के पहले सत्र में लेखिकाओं द्वारा यह कहा गया कि अपनी रचनाओं में हमें ठेठ शब्द का उपयोग करना चाहिए अपनी रचनाओं में मुहावरों और लोकोक्तियों का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए इससे रचना में ना केवल रोचकता बनी रहेगी बल्कि वह पाठ को तक पहुंचाने में भी बहुत आसानी होगी| हिंदी के विकास में आंचलिक बोलियों का बहुत अधिक महत्व है हमें अपनी रचनाओं में अंग्रेजी के शब्दों की बजाय ठेठ हिंदी शब्दों का उपयोग करना चाहिए| इन बोलियों से हमारा साहित्य बहुत रोचक हो सकेगा|
सत्र का संचालन अमर चड्ढा ने किया। घमासान डॉट कॉम ,वामा साहित्य मंच की ओर से आभार प्रदर्शन सुरभि भावसार तथा सचिव ज्योति जैन ने किया|
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