नई दिल्ली : कोरबा, छत्तीसगढ़ स्थित बाल्को वन परिक्षेत्र में मिले दुर्लभ प्रजाति के मेंढक की चर्चा जोरों पर है। यहां दुधीटांगर-पुटका के बीच घने वन में लाल रंग का मेंढक फुनगोइड मिला। इसकी खासियत यह है कि इसकी त्वचा में मौजूद विशेष रसायन स्वाइन फ्लू जैसी जानलेवा बीमारी का इलाज करने में कारगर हो सकता है।
यह मेंढक अब तक पश्चिमी घाट में ही देखा गया था। बेहतर खोज के लिए विशेषज्ञों ने पुटका क्षेत्र को संरक्षित घोषित करने की जरूरत बताई है। हाल ही में यहां अखिल भारतीय विज्ञान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा की इकाई ने नेचर कैंप किया। विज्ञान विशेषज्ञों ने फुटका क्षेत्र का भ्रमण कर गहन अध्ययन किया और ऐसे वन्य जीवों की खोज की, जो मानव जगत से छुपे रहे हैं। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए ताजा भ्रमण में उन्हें यह लाल मेंढक दिखा।
फुनगोइड कहे जाने वाले इस लाल मेंढक के शरीर की ग्रंथियों से अमीनो एसिड से लैस तत्व तब स्रावित होता है, जब उसे खतरे का आभास होता है। यह उसे भी बीमारियों से दूर रखने मददगार साबित होता है। यही म्यूकस एच-वन वायरस से लड़ने में कारगर होता है। जंतुविज्ञान की एक प्रोफेसर ने बताया कि तिरुवनंतपुरम केरल, पश्चिम घाट अंतर्गत महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात के तटीय क्षेत्रों में यह लाल मेंढक पाया जाता है। पहली बार यह पूर्वी क्षेत्र में देखा गया है।
अटलांटा स्थित एमोरी वैक्सीन सेंटर के डॉ जॉशी जैकब और उनकी टीम ने राजीव गांधी बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, नागपुर के विशेषज्ञों के साथ संयुक्त शोध किया था। इसमें पता चला कि इस लाल रंग के मेंढक की त्वचा से निकलने वाले म्यूकस में उपस्थित विशिष्ट प्रकार के पेप्टाइड में एंटीवायरल प्रवृत्ति होती है। यह न केवल स्वाइन फ्लू के लिए, बल्कि हर तरह के फ्लू से लड़ने में असरकारक है। मेंढक का वैज्ञानिक नाम हाइड्रोफिलैक्स मालाबारिकस है। पूर्व के वैज्ञानिक शोध में यह पता चला कि इनकी श्लेष्मा में एक पेप्टाइड या अमीनो अम्ल की एक श्रृंखला पाई जाती है,
जिसका उपयोग एच-वन वायरस से होने वाले विभिन्न प्रकार के संक्रमण से बचाव के लिए किया जा सकता है। शोधकर्ता इसे दवाओं के रूप में उपयोग में लाने पर विचार कर रहे। छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई के सचिव डॉ वाईके सोना ने बताया कि इस जंगल में पहली बार तेंदुए की तरह दिखने वाला एक दुर्लभ गिरगिट भी दिखा, जिसे वेस्ट इंडियन लेपर्ड (तेंदुआ) गेको कहा जाता है। भारत के वन्य क्षेत्रों में लेपर्ड गेको की मूलत: दो प्रजाति निवास करती हैं। इनमें ईस्ट इंडियन लेपर्ड गेको और वेस्ट इंडियन लेपर्ड गेको शामिल है।
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