केवीआईसी ने बांस उद्योग की उच्च लाभप्रदता के लिए बांस चारकोल पर “निर्यात मनाही” हटाने का प्रस्ताव रखा
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने सरकार से बांस उद्योग में कच्चे बांस के इष्टतम उपयोग और उच्च लाभप्रदता के लिए बांस चारकोल पर “निर्यात मनाही” हटाने का अनुरोध किया है। भारतीय बांस उद्योग के सामने आज सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बांस के अपर्याप्त उपयोग के कारण अत्यधिक उच्च इनपुट लागत है। हालांकि, बांस चारकोल का निर्यात बांस अपशिष्ट का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करेगा और इस तरह बांस के व्यवसाय को अधिक लाभदायक बना देगा।
केवीआईसी के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना ने केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री, श्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर बांस उद्योग के वृहद लाभ के लिए बांस चारकोल पर निर्यात प्रतिबंध हटाने की मांग की है।
भारत में, बांस का उपयोग अधिकांशतः अगरबत्ती के निर्माण में किया जाता है, जिसमें अधिकतम 16 प्रतिशत, अर्थात बांस की ऊपरी परतों का उपयोग बांस की छड़ियों के निर्माण के लिए किया जाता है, जबकि शेष 84 प्रतिशत बांस पूरी तरह से बेकार हो जाता है। अगरबत्ती और बांस शिल्प उद्योगों में उत्पन्न बांस अपशिष्ट का व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप, गोल बांस की छड़ियों के लिए बांस इनपुट लागत 25,000 रुपये से 40,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन के बीच है, जबकि बांस की औसत लागत 4,000 रुपये से 5,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन के बीच में है। इसकी तुलना में, चीन में बांस की कीमत 8,000 रुपये से 10,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन है, लेकिन 100 प्रतिशत अपशिष्ट उपयोग के कारण उनकी इनपुट लागत 12,000 रुपये से 15,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन है।
केवीआईसी के अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि “बांस का कोयला” बनाकर बांस के अपशिष्ट का सबसे अच्छा उपयोग किया जा सकता है, यद्यपि घरेलू बाजार में इसका बहुत सीमित उपयोग है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी अत्यधिक मांग है। बहरहाल, भारतीय बांस उद्योग अपनी “निर्यात मनाही” के कारण इस अवसर का लाभ नहीं उठा पा रहा है। उद्योग के बार-बार के अनुरोधों पर विचार करते हुए केवीआईसी ने सरकार से बांस चारकोल पर निर्यात प्रतिबंध हटाने पर विचार करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह न केवल उद्योग को विशाल वैश्विक मांग का लाभ उठाने में सक्षम बनाएगा, बल्कि बांस के अपशिष्ट के समुचित उपयोग से वर्तमान केवीआईसी इकाइयों की लाभप्रदता को भी बढ़ाएगा और इस तरह प्रधानमंत्री के “अपशिष्ट से संपदा” के विजन में योगदान देगा।
उल्लेखनीय है कि बांस चारकोल की विश्व आयात मांग 1.5 से 2 बिलियन अमरीकी डालर के दायरे में है और हाल के वर्षों में 6 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बारबेक्यू के लिए बांस का कोयला लगभग 21,000 रुपये से 25,000 रुपये प्रति टन के हिसाब से बिकता है। इसके अतिरिक्त, इसका उपयोग मिट्टी के पोषण के लिए और सक्रिय चारकोल के निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है। अमेरिका, जापान, कोरिया, बेल्जियम, जर्मनी, इटली, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों में आयात की बढ़ती मांग नगण्य आयात शुल्क पर रही है।
यह उल्लेख करना उचित है कि एचएस कोड 141100 के तहत बांस उत्पादों के लिए निर्यात नीति में एक संशोधन 2017 में किया गया था, जिसमें सभी बांस उत्पादों के निर्यात को ओजीएल श्रेणी में रखा गया था और ये निर्यात के लिए “मुक्त” थे। हालांकि, बैम्बू चारकोल, बैम्बू पल्प और अनप्रोसेस्ड शूट्स के निर्यात को अभी भी प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया है।
इससे पूर्व, बांस आधारित उद्योगों, विशेष रूप से अगरबत्ती उद्योग में अधिक रोजगार सृजित करने के लिए, केवीआईसी ने 2019 में, कच्ची अगरबत्ती के आयात और वियतनाम तथा चीन से भारी मात्रा में आयात किए जाने वाले गोल बांस की छड़ियों पर आयात शुल्क में नीतिगत बदलाव के लिए सरकार से अनुरोध किया था। इसके बाद सितंबर 2019 में वाणिज्य मंत्रालय ने कच्ची अगरबत्ती के आयात पर “प्रतिबंध” लगा दिया और जून 2020 में वित्त मंत्रालय ने गोल बांस की छड़ियों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया।
नीतिगत परिवर्तनों के निहितार्थ के रूप में, भारत में अगरबत्ती और बांस-शिल्प उद्योगों की सैकड़ों बंद इकाइयों का पुनरुद्धार किया गया है। नीतिगत बदलाव के बाद, केवीआईसी ने अपने अग्रणी कार्यक्रम प्रधानमंत्री रोजगार सृजन प्रोग्राम (पीएमईजीपी) के तहत 1658 नई अगरबत्ती विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित की हैं। इसी प्रकार, देश भर में 1121 नई बांस शिल्प संबंधी इकाइयां भी स्थापित की गई हैं। इसने न केवल बांस के उपयोग को इष्टतम बनाया है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी रोजगार का भी सृजन किया है।
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