न्यूज़ डेस्क : दुनिया में भारत के लिए दो तरह के देश हैं, एक जो जम्मू-कश्मीर को लेकर उसका समर्थन करते हैं और दूसरे जो विरोध करते हैं यानी पाकिस्तान का समर्थन करते हैं। ऐसा ही एक देश है तुर्की। इस साल की शुरुआत में तुर्की के राष्ट्रपति ने पाकिस्तान की संसद को संबोधित किया था और कश्मीर समेत अन्य मुद्दों पर पाक को समर्थन देने की बात कही थी। इसके बाद भारत सरकार ने उनकी सभी बातों और दावों को खारिज करते हुए जम्मू-कश्मीर को अपना आंतरिक मामला बताया है। तुर्की के राष्ट्रपति की इस बयानबाजी के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों पर असर पड़ रहा है। जानिए आखिर तुर्की को लेकर भारत में इतनी नाराजगी की वजह क्या है…
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप आर्दोआन ने इस साल की शुरुआत में पाकिस्तान की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया था। इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान को समर्थन जारी रखने का वादा किया था और कश्मीर समेत अन्य मुद्दों पर भी साथ खड़े होने की बात कही थी। आर्दोआन ने कहा था कि कश्मीर जितना पाकिस्तान के लिए अहम है उतना ही तु्र्की के लिए भी है, हमने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भी उठाया था।
आर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में पिछले साल 24 सितंबर को कश्मीर का मुद्दा उठाया था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पिछले 72 साल से कश्मीर समस्या का हल नहीं खोज पाया है। तब आर्दोआन ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान बातचीत के जरिए कश्मीर मामलो को हल करें। भारत ने तब भी तुर्की के इस रुख को अफसोसजनक बताते हुए कहा था कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है।
पाकिस्तान के साथ तुर्की के बेहतर संबंध
भारत में तुर्की को लेकर नाराजगी की एक वजह उसके पाकिस्तान से अच्छे संबंध भी है। तुर्की के पाक से संबंध भारत के मुकाबले काफी बेहतर रहे हैं। जुलाई 2016 में जब तुर्की में आर्दोआन के खिलाफ सेना की तख्तापलट की कोशिश नाकाम रही थी तो पाकिस्तान आर्दोआन के समर्थन में आया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने फोन कर आर्दोआन को समर्थन देने की बात कही थी। बाद में शरीफ ने तुर्की का दौरा भी किया था।
इसके एक साल बाद यानी 2017 में तुर्की ने पाकिस्तान में एक अरब डॉलर का निवेश किया था। साथ ही उसने पाकिस्तान में कई परियोजनाओं पर भी काम शुरू किया था। तुर्की पाकिस्तान को मेट्रो बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम उपलब्ध कराता रहा है। दोनों के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (मुक्त व्यापार समझौता) पर भी काम चल रहा है। इस समझौते के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार 90 करोड़ डॉलर से बड़ कर 10 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
पाकिस्तान में तुर्की एयरलाइंस का भी विस्तार हुआ है। पश्चिमी देशों में जाने वाले ज्यादातर पाकिस्तानी नागरिक भी तुर्की के रास्ते ही जाते हैं। पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान भी आर्दोआन के प्रशंसक रहे हैं। साल 2016 में तुर्की में तख्तापलट की कोशिश असफल रहने पर इमरान के आर्दोआन को नायक की संज्ञा दी थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध और एकता दशकों से बनी हुई है।
भारत और तुर्की के नागरिकों के बीच दूरी
भारत और तुर्की के आपसी नागरिक संबंधों की बात करें तो यहां भी पाकिस्तान भारत से कहीं आगे है। दरअसल, भारत और तुर्की के नागरिक एक-दूसरे को ठीक से जानते नहीं है और ऐसे में आपसी पूर्वाग्रह दूर करने का कोई रास्ता नहीं है। तुर्की में पाकिस्तान के नागरिकों की छवि ‘भाई’ की है तो भारतीयों की छवि ‘गोपूजक’ की। ऐसी स्थितियों में मूल आधार पर पाकिस्तान और तुर्की के संबंध ज्यादा बेहतर हैं और कश्मीर जैसे मामलों में तुर्की उसके साथ खड़ा होता है।
तख्तापलट की कोशिश का भारत पर असर
भारत में तुर्की के प्रति नाराजगी का एक और कारण तख्तापलट की कोशिश के दौरान वहां मानवाधिकारों का हनन भी रहा। इस दौरान में तुर्की 15 विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए थे। इनमें पढ़ने वाले कई भारतीय छात्रों को पढ़ाई बीच में छोड़कर वापस भारत लौटना पड़ा था। इसके अलावा इन विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले कई भारतीय प्रोफेसरों की नौकरी चली गई थी। तुर्की सरकार ने इन प्रोफेसरों के बैंक खाते कई महीनों तक बंद कर दिए थे।
भारत और तुर्की के बीच व्यापारिक संबंध
तुर्की और पाकिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों के बावजूद भारत तुर्की के साथ सदैव सकारात्मक व्यापारिक संबंधों और अन्य क्षेत्रों में आपसी सहयोग का पक्षधर रहा है।
भारत और तुर्की अंतर्राष्ट्रीय समूह G20 का हिस्सा हैं, इसके साथ ही भारत और तुर्की के बीच प्रौद्योगिकी, रक्षा, यातायात और अंतरिक्ष के साथ कई अन्य क्षेत्रों में सहयोग के लिए समझौते हुए हैं।
साल 2017-18 में भारत और तुर्की के बीच लगभग आठ बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ था। तुर्की उन कुछ चुनिंदा देशों में शामिल है जिनके साथ भारत का व्यापार घाटा धनात्मक रहता है।
भारत और तुर्की के बीच तनाव की स्थिति
हालिया घटनाक्रम के बाद भारत सरकार ने तुर्की से तेल और स्टील के आयात को कम करने के संकेत दिए हैं।
कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में तुर्की के राष्ट्रपति के बयान पर विरोध जताते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी अंकारा (तुर्की की राजधानी) यात्रा स्थगित कर दी थी।
तुर्की ने ‘फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (Financial Action Task Force-FATF) द्वारा पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट में डालने का विरोध किया था।
FATF ने पाकिस्तान पर आतंकवादी समूहों की फंडिंग पर रोक न लगा पाने के मामले में कार्रवाई करते हुए कई प्रतिबंध लगाए थे।
तुर्की और पाकिस्तान, सेंटो (The Central Treaty Organization-CENTO) के सदस्य रहे हैं। दोनों देश संयुक्त सैन्य और नौसैनिक अभ्यास जैसी कई अन्य गतिविधियों का हिस्सा रहे हैं।
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत को शामिल करने के लिए तुर्की भी कुछ विरोधियों में से एक था।
काफी पुराने हैं भारत और तुर्की के संबंध
माना जाता है कि प्राचीन भारत और अनातोलिया (वर्तमान तुर्की) के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध वैदिक युग से पहले के हैं।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य ने तुर्क साम्राज्य के खिलाफ सफल मित्र देशों के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
भाषा, संस्कृति और सभ्यता, कला और वास्तुकला, और वेशभूषा और भोजन जैसे क्षेत्रों में भारत पर काफी तुर्क प्रभाव था।
हिंदुस्तानी और तुर्की भाषाओं में 9,000 से अधिक शब्द आम हैं।
भारत ने 1920 के दशक में तुर्की के युद्ध की स्वतंत्रता और तुर्की गणराज्य के गठन में भी समर्थन दिया था।
महात्मा गांधी ने प्रथम विश्व युद्ध के अंत में तुर्की पर हुए अन्याय के खिलाफ खड़े हुए थे।
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