वास्तु के अनुसार कहा गया है कि दक्षिण दिशा की ओर पैर और उत्तर दिशा की ओर सिर रख कर नहीं लेटना चाहिए। पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण पर टिकी है। अपनी धुरी पर घूम रही है। इसकी धुरी के उत्तर-दक्षिण दो छोर हैं। यह चुंबकीय क्षेत्र हैं। अतएव मनुष्य जब दक्षिण की ओर पैर करता है तो वह पृथ्वी की धुरी के समानांतर हो जाता है। इस प्रकार धुरी के चुंबकीय प्रभाव से उसका रक्तप्रवाह प्रभावित होता है। सिरदर्द, हाथ-पैर की ऐंठन, कमरदर्द, शरीर का कांपना जैसा दोष आता जाता है, दक्षिण दिशा फेफड़ों की गति अत्यंत मंद करती है। इसी कारण मृत व्यक्ति के पैर दक्षिण दिशा की ओर कर दिए जाते हैं ताकि उसके शरीर का रहा-सहा जीवांश भी समाप्त हो जाए।
अपने निवास का मुख्य द्वार कभी भी दक्षिण की ओर नहीं रखना चाहिए। विशेष रूप में वीरवार के दिन दक्षिण दिशा हानिकारक होती है। वीरवार की प्रधानता के कारण उस दिन पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र और प्रबल हो जाता है।
प्रात: काल किस वस्तु का दर्शन शुभ है?
कलश, कूड़ा, अर्थी इनका दर्शन प्राय: शुभ बताया जाता है। विद्वानों ने भी कहा है कि शुभ समय पर प्रारंभ किया गया कार्य आधा वैसे ही सफल हो जाता है।
दान-पुण्य क्या है?
शास्त्रों के अनुसार-शुभ कर्म, तीर्थ, पूजा, पुण्य कर्म बताए गए हैं। परोपकार, दान भी इसी श्रेणी में आता है।
सिंदूर क्यों?
विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग में सिंदूर भरने का विधान है। फैशन के कारण सिंदूर का चलन कम होता जा रहा है, पर वास्तव में लाल सिंदूर का अपना शारीरिक प्रभाव होता है। वह स्त्री की (वासना) कामना पर नियंत्रण रखता है और उसके स्वभाव में उत्तेजना नहीं आने देता। उसको रक्तचाप की बीमारी से भी बचाता है। इसी प्रकार कुछ-न-कुछ प्रभाव उसके आभूषण और शाृंगार के द्वारा भी होता है।
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