न्यूज़ डेस्क : एक तरफ गहलोत की जगह किसी और दलित नेता को मंत्री बना कर प्रधानमंत्री भाजपा की दलित राजनीति को नई धार देंगे और साथ ही अगर 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में फिर किसी दलित को आगे करना हुआ तो थावरचंद गहलोत उसके दावेदार हो सकते हैं। जैसे 2016 में मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बिहार का राज्यपाल बनाकर 2017 में भाजपा ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था।
अब थावरचंद के केंद्र से जाने के साथ ही सवाल उठने लगा है कि भाजपा का केंद्र सरकार में दलित चेहरा बनकर कौन सा नेता उभरेगा। चार-पांच नेताओं के नाम राजनीतिक गलियारों में तैर रहे हैं। लेकिन दावे से ये कोई नहीं कह सकता है कि मोदी और शाह मंत्रिमंडल में किसे मौका देंगे। अपने कदमों और चयन से हमेशा चौंकाने वाले भाजपा के ये दोनों नेता इस बार भी कुछ ऐसा ही फैसला ले सकते हैं।
इसके साथ ही मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता गहलोत को राज्यपाल बनाए जाने के बाद से राज्यसभा में नेता सदन का पद भी खाली जाएगा। बता दें कि थावरचंद गहलोत ने 11 जून 2019 को पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की जगह नेता सदन के तौर पर शपथ ली थी। इसके साथ ही साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल में भी गहलोत को सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली थी।
अमर उजाला को मिली जानकारी के अनुसार, केंद्रीय मंत्री गहलोत ने कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री से पारिवारिक और स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए मंत्रिमंडल से खुद को मुक्त करने की इच्छा व्यक्त की थी। तब से ही गहलोत को राज्यपाल बनाए जाने की चर्चा चल रही थी। बेहद मृदुभाषी गहलोत प्रधानमंत्री मोदी के भी करीबी माने जाते हैं।
वे 1996 से 2009 के दौरान शाजापुर लोकसभा सीट से सांसद रहे। 2012 में वे राज्यसभा सदस्य बने। 2018 में उन्हें फिर राज्यसभा के लिए चुना गया। राज्यसभा सदस्य के तौर पर उनका कार्यकाल 2024 में खत्म होगा। पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव से पहले तक भाजपा या आरएसएस के अंदर राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार के नामों पर विचार होता था तो एक नाम थावरचंद गहलोत का भी लिया जाता था।
उस दौरान माना जाता रहा कि मोदी अगर किसी दलित चेहरे को राष्ट्रपति भवन में भेजने का मन बनाते हैं तो गहलोत उनकी पसंद में से एक होंगे। लेकिन, कोविंद को प्रत्याशी बना दिया गया। 2018 में एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर भी थावचंद गहलोत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गहलोत के ही विशेष प्रयास से केंद्र सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन लगाई थी।
भाजपा के पास हैं कई चेहरे
वैसे तो भाजपा के पास केंद्र से लेकर राज्यों तक कई दलित चेहरे हैं। इनमें भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य, केंद्रीय राज्य मंत्री मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राष्ट्रीय महामंत्री और राज्यसभा सांसद दुष्यंत कुमार गौतम , यूपी से सांसद विनोद सोनकर, सांसद रमाशंकर कठेरिया,पूर्व आईपीएस और दलित नेता बृजलाल, बीपी सरोज जैसे कद्दावर नेता हैं।
मध्यप्रदेश से भाजपा के वरिष्ठ दलित नेता और उज्जैन से पूर्व सांसद प्रो. चिंतामणि मालवीय ने अमर उजाला से कहा कि, भाजपा ही दलितों की वास्तविक प्रतिनिधि करने वाला दल है। आज देश में आरक्षित क्षेत्र में सबसे ज्यादा लोकसभा और विधानसभा सीटें भाजपा के पास ही हैं। वहीं, कौशांबी से सांसद विनोद सोनकर ने कहा, भाजपा बहुत बड़ी पार्टी हैं। यहां हर वर्ग हर समाज के लोगों की पर्याप्त संख्या हैं।
उत्तर प्रदेश,पंजाब और उत्तराखंड चुनाव में दलितों की भूमिका अहम
सीएसडीएस के निदेशक संजय कुमार ने अमर उजाला से बात करते हुए कहा, केंद्र में जब से भाजपा सत्ता में आई है तब से पार्टी ने दलित वोट बैंक को अपने तरफ लाने के लिए कई प्रयास किए हैं। भाजपा हमेशा से दलित और लोअर ओबीसी क्लास के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश करती आई है। संजय कुमार कहते हैं कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी इन दोनों समुदाय के मतदाताओं को रुझाने में काफी हद तक सफल रही है।
उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में विस्तार में जरूर दलित चेहरों को आगे रखा जाएगा ताकि इस वोट बैंक पर पार्टी की पकड़ मजबूत रह सके। उन्होंने बताया कि, भाजपा का दलितों को अपने तरफ लाने का ही ये प्रयास है कि राष्ट्रपति के बाद कई लोगों को राज्यपाल बनाया और अब मंत्री बनाने की चर्चा हो रही है। उम्मीद है कि नए मंत्रिमंडल में दो से तीन दलित चेहरे जरूर होंगे। यूपी से भी एक दलित चेहरे को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।
संजय कुमार बताते हैं कि उत्तर प्रदेश और पंजाब की राजनीति में दलित राजनीति का बहुत बड़ा वोट बैंक है। पंजाब में 27 फीसदी दलित समुदाय के लोग हैं। उत्तराखंड की राजनीति ब्राह्मण और राजपूत की होती है लेकिन यहां भी दलित समुदाय के लोग 20 फीसदी तक हैं। थावरचंद की जगह यूपी से किसी बड़े दलित चेहरे को मौका मिल सकता है। जिससे बसपा का वोट बैंक को तोड़ा जा सके और लोवर ओबीसी मतदाताओं पर पकड़ मजबूत हो सके।
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