जानिए बेली ब्रिज की कहानी जिसकी वजह से बौखलाया है चीन

न्यूज़ डेस्क : पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा एलएसी पर सामरिक निर्माण से बौखलाया चीन लगातार इसका विरोध करता आ रहा है। लेकिन भारत परियोजनाओं को रोकने के बजाय इन्हें दोगुनी रफ्तार से आगे बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहा है। दरबुक से श्योक नदी और फिर दौलत बेग ओल्डी एयरबेस तक 255 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण चीन को सबसे ज्यादा अखर रहा है।

 

 

सूत्रों ने बताया कि श्योक और गलवां नदी के संगम स्थल के पास जैसे ही बेली ब्रिज पुल का निर्माण शुरू किया गयाए चीन ने आपत्ति जताने के साथ तनातनी का माहौल बनाना शुरू कर दिया। बावजूद इसके सेना ने सामरिक महत्व के इस बेहद महत्वपूर्ण पुल को अपग्रेड करने का काम पूरा कर लिया। गलवां घाटी की घटना के बाद से एलएसी की रोड कनेक्टिविटी से जुड़ी परियोजनाओं में भी तेजी लाने की रणनीति पर काम हो रहा है।

 

गलवां घाटी में जिस जगह पर चीन की सेना के साथ भारतीय सैनिकों की हिंसक झड़प हुईए उससे कुछ ही दूर पुल बनाया जा रहा था। चीन की कोशिश थी कि किसी तरह से पुल का निर्माण रुकवा दिया जाए। लेकिन हिंसक झड़प के बाद पुल का तैयार होना और भी जरूरी हो गया था।

 

इसके लिए पुल निर्माण दल से कहा गया कि किसी भी सूरत में इस पुल के निर्माण को अंजाम तक पहुंचाया जाए। बताया जा रहा है कि गलवां घाटी में सैनिकों की शहादत के बाद न सिर्फ पुल निर्माण की रफ्तार बढ़ाई गई बल्कि तीन दिन के भीतर इसे टेस्टिंग के साथ सैन्य मूवमेंट के लिए तैयार भी कर लिया गया।

 

बेली पुल पहले से तैयार ढांचे को स्थापित करके बनाया जाता है। गलवां नदी में जिस बेली पुल को युद्ध जैसे हालात में बनाया गयाए उसे सबसे पहले द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश इंजीनियर डोनाल्ड बेली ने बनाया था। उन्हीं के नाम से पुल के डिजाइन का नामकरण हो गया। ब्रिटिश वार ऑफिस में तैनात डोनाल्ड बेली के मॉडल पर पहले पुल को वर्ष 1940.41 में तैयार किया गया था।

 

एलएसी के उस पार चीन धड़ल्ले से निर्माण करता आ रहा है लेकिन इस तरफ छिटपुट निर्माण पर भी चीन आपत्ति जताकर काम रुकवाता रहा है। लद्दाख के स्थानीय प्रतिनिधियों के अनुसार कई मर्तबा एलएसी से सटे ग्रामीणों के लिए सिंचाई कूहल समेत बुनियादी सुविधाओं से जुड़े निर्माण भी केवल चीन की आपत्ति को देखते हुए बंद कर दिए गए।

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