न्यूज़ डेस्क : दुनियाभर के देशों में कई तरह के सिक्के चलन में हैं। वजन और वैल्यू के आधार पर इन सिक्कों के बीच का अंतर पता चलता है। हालांकि, सबसे खास बात ये है कि दशकों पहले केवल चौकोर और बीच में से छेद वाले सिक्के चलन में थे, लेकिन अब सभी सिक्कों का आकार गोल हो गया है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से सिक्कों का इतिहास बताएंगे।
प्राचीन समय में भारतीय सिक्कों को कर्शपना, पना या पुराण कहा जाता था। छठी शताब्दी में इन सिक्कों को भारत के महाजनपद में बनाया जाता था। इसमें गांधार, कुटाला, कुरु, पांचाल, शाक्या, सुरसेना और सुराष्ट्र शामिल हैं। इन सिक्कों पर अलग-अलग चिह्न बने थे और इनका आकार भी अलग-अलग था। सुराष्ट्र में बने सिक्कों पर बैल का चिन्ह, दक्षिण पांचाल में बने सिक्कों पर स्वास्तिक और वहीं मगध के सिक्कों पर कई चिह्न बने होते थे।
आपको बता दें कि हमारे देश भारत में साल 1950 में एक रुपये का पहला गोल सिक्का जारी किया गया था। इसके बाद साल 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान 2 और 5 रुपये के सिक्के जारी हुए थे। इन सिक्कों में एक तरफ कॉमनवेल्थ गेम्स का लोगो और दूसरी तरफ अशोक स्तंभ बना था।
कहा जाता है कि सिक्कों को आसानी से इकट्ठा करना और उनकी गिनती करने के लिए गोल आकार में बनाया जाता है। हालांकि, इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है कि सिक्कों को गोल आकार में ही क्यों बनाया जाता है। गोल के अलावा दूसरे आकार के सिक्कों को तोड़ना या उनके कॉर्नर को काट देना आसान होता है, लेकिन गोल आकार के सिक्कों के साथ ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है। गोल आकार वाले सिक्कों के साथ छेड़छाड़ कर उसकी वैल्यू नहीं घटाई जा सकती है।
सिक्कों को गोल आकार में बनाने के पीछे कई तरह के तर्क दिए जाते हैं। एयरपोर्ट, ऑफिस में सामान खरीदने से लेकर रेलवे स्टेशन पर वजन चेक करने तक के लिए वेंडिंग मशीन में सिक्के डाले जाते हैं। वेंडिंग मशीनों में गोल सिक्के डालना आसान होता है। शायद इस वजह से भी सिक्कों को गोल आकार में बनाया जाता है।
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