न्यूज़ डेस्क : राजस्थान के सियासी रण में लगातार नए मोड़ आ रहे हैं। पहले राउंड में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बाजी मारी और सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस और उप मुख्यमंत्री के पद से हटवा दिया। मगर दूसरा राउंड पायलट और उनके समर्थकों के नाम रहा। गहलोत बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करवाना चाहते हैं।
विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी ने इन विधायकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इसके खिलाफ पायलट ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। पहले राजस्थान हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से पायलट गुट को राहत मिली। इसी के साथ मुकाबला अब तीसरे राउंड में पहुंच गया है। शीर्ष अदालत के फैसले के तुरंत बाद ही शुक्रवार दोपहर को सीएम गहलोत अपने विधायकों के साथ राजभवन पहुंच गए। वह चाहते हैं कि विधानसभा का सत्र बुलाया जाए और इसके लिए गहलोत के नेतृत्व में सभी विधायक सामूहिक आग्रह करने पहुंच गए।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर गहलोत क्यों विधानसभा का सत्र बुलाना चाहते हैं। इसके पीछे की रणनीति आखिर क्या है। आइए हम आपको समझाते हैं…
गहलोत की इच्छा नहीं हुई पूरी
सीएम अशोक गहलोत ने दो बार विधायक दल की बैठक बुलाई थी। मगर दोनों ही बार सचिन पायलट और उनके साथी विधायक बैठक में नहीं पहुंचे। हालांकि गहलोत ने उन्हें पद से हटाकर शक्ति परीक्षण कर दिया, लेकिन वह उनकी सदस्यता को रद्द नहीं करवा पाए।
राजस्थान विधानसभा के स्पीकर ने सचिन पायलट व 18 अन्य विधायकों को सदन से अयोग्य करने का नोटिस थमाया। मगर पायलट इसके खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट चले गए। कांग्रेस दल बदल कानून का सहारा लेते हुए इन्हें खिलाफ कार्रवाई करना चाहती है।
उनका कहना है कि इन विधायकों ने व्हिप का पालन नहीं किया और विधायक दल की दो बैठकों में शामिल नहीं हुए।जबकि पायलट खेमे का तर्क है कि पार्टी का व्हिप तभी मान्य होता है जब सदन की कार्यवाही चल रही हो। सचिन पायलट ने इस फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया, जहां से उन्हें राहत मिल गई है। मगर गहलोत हर हाल में विधायकों की बर्खास्तगी चाहते हैं। साथ ही विधानसभा में शक्ति परीक्षण करना चाहते हैं।
क्या है परदे के पीछे का गणित
आखिर क्यों गहलोत इन विधायकों को बर्खास्त कराना चाहते हैं। इसके पीछे का गणित यह है कि अगर बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, तो राज्य विधानसभा की क्षमता घटकर 181 हो जाएगी। इस स्थिति में बहुमत के लिए सिर्फ 91 सदस्यों की ही जरूरत पड़ेगी। वर्तमान में कांग्रेस के पास 107 विधायक हैं जबकि भाजपा के पास 72 विधायक हैं। कांग्रेस को 13 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है। इसके अलावा इसके अलावा सीपीएम और भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2-2 विधायक और रालोद के एक विधायक भी कांग्रेस के साथ हैं। बागी विधायकों के अयोग्य होने से कांग्रेस सरकार की राह आसान हो जाएगी।
विश्वास मत में अड़ंगा डाल सकते हैं बागी
अशोक गहलोत को यह भी आशंका है कि ये विधायक विश्वास मत की प्रक्रिया में समस्या पैदा कर सकते हैं। व्हिप का पालन न करने के बावजूद उनके पास वोट देने का अधिकार रहेगा। ऐसे में अगर भाजपा को विपक्षी दलों व निर्दलीय विधायकों का साथ मिल जाता है, तो मुकाबला रोचक हो सकता है।
विधानसभा का सत्र बुलाने को बाध्य हैं राज्यपाल
कानून के मुताबिक अगर सरकार दो बार राज्यपाल से विधानसभा सत्र बुलाने की मांग करते हैं तो उन्हें इसका आदेश देना पड़ता है। अभी पहली बार गहलोत राज्यपाल के पास पहुंचे हैं। हालांकि राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि वह कानूनी सलाह लेने के बाद ही विधानसभा सत्र बुलाने पर फैसला लेंगे।
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