न्यूज़ डेस्क : करीब 50 गुना बढ़ी जीडीपी — 540, यह संख्या है 1947 से 1955 के दौरान डूबे देश के बैंकों की। इन बैंकों का राष्ट्रीयकरण करते हुए न केवल नागरिकों का इनमें विश्वास जगाया गया, बल्कि इसने देश में आर्थिक गतिविधियों को भी तेजी दी। इसकी बदौलत हम अपनी अर्थव्यवस्था को 50 गुना बढ़ा सके।
संभलेगी जीडीपी विकास दर
3.6%की दर से वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में बढ़ी जीडीपी…महामारी का असर खत्म होने से इसके 8.3% पहुंचने का अनुमान
135.13 लाख करोड़ की जीडीपी
1947 : 2.7 लाख करोड़ रुपये था जीडीपी का मूल्य
135.13 लाख करोड़ रुपये मौजूदा वास्तविक जीडीपी का मूल्य
निर्यात को पहुंचाया 14 अंकों में
1947 : 403 करोड़ रुपये मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया।
2020-21 : 3.66 लाख करोड़ मूल्य के उत्पाद और सेवाएं निर्यात।
हर परिवार में एक बैंक खाता
1947 : चंद हजार खाते। बैंकों का उपयोग भी सीमित था।
वर्तमान में : 42.37 करोड़ जनधन खाते। 80% नागरिकों के खाते।
सौ करोड़ से लाख करोड़ हुआ बजट
पहला बजट : 171.15 करोड़ की आय वित्त मंत्री ने दर्शाई थी।
2021 का बजट : 19.76 लाख करोड़ रुपये की आय दर्शाई गई।
साक्षरता बढ़ी, ज्यादा बच्चे स्कूल पहुंचे
बढ़ी हुई साक्षरता का मतलब है कि आज भारतीय न केवल निजी प्रगति, स्वास्थ्य और वित्तीय मामलों की बेहतर देखभाल कर रहे हैं, बल्कि अगली पीढ़ी को भी शिक्षा से दूर नहीं रहने दे रहे।
साक्षरता चार गुना पर सुधार बाकी
77.7 फीसदी लोग साक्षर हुए 2020 तक। हालांकि इसके यह भी मायने हैं कि हर चौथा आदमी अब तक अनपढ़ है।
15 लाख बच्चे ही स्कूली शिक्षा की विभिन्न बोर्ड परीक्षाएं दे रहे थे 1950 में
आंकी जा रही है इस वर्ष के लिए इन बच्चों की संख्या
उच्च शिक्षा के मंदिर 34 तो कॉलेज 78 गुना बढ़े
वर्तमान : 900 से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिनके अधीन 39 हजार कॉलेज हैं।
स्कूलों में भोजन से लेकर सभी के लिए शिक्षा जैसी योजनाएं
आजादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख योजनाओं में 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा देश की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।
मिड-डे मील योजना को भी अहम माना जाता है जिसके जरिये ज्यादा संख्या में बच्चों को स्कूलों तक लाना संभव हुआ।
(आंकड़े व तथ्य : योजना आयोग, नीति आयोग, आईएमए, यूजीसी, एआईसीटीई सहित विभिन्न सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट्स।)
चिकित्सा शिक्षा के कॉलेज भी बढ़ाए
19 मेडिकल कॉलेज थे देश में 1947 में, जहां 1,000 छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे।
542 हो चुकी है इनकी संख्या मई 2020 तक, इनमें केवल एमबीबीएस की ही 80 हजार सीटें।
स्वास्थ्य
1950 के दशक में अधिकतर विकसित देशों के नागरिक औसतन 60 से 70 वर्ष जी रहे थे, जिसे हमने आज हासिल कर लिया है। हालांकि कोरोना महामारी में लाखों लोगों की मौत ने साबित किया है कि हमारी उपलब्धियां नाफाकी थीं। आने वाले वर्षों में इसमें सुधार लाने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे।
विकसित देशों के नागरिकों की औसत उम्र के निकट आए हम
सालाना बच्चों का जन्म करीब 20 लाख घटाया
1.68 करोड़ बच्चों का 1947 में हर साल जन्म और 99.28 लाख लोगों की मौत हो रही थी, जिससे आबादी तेज रफ्तार से बढ़ी।
1.48 करोड़ हो चुका है बच्चों के हर साल जन्म का आंकड़ा साल 2017 तक, मौतों की संख्या करीब 80 लाख।
1951 : 43.3 बच्चे प्रति एक हजार हर साल पैदा और 25.5 नागरिकों की मौत
19 प्रति हजार करते हुए दोगुना से ज्यादा घटाया, वहीं मरने वाले 7.3 रह गए हैं।
अब आबादी पर नियंत्रण पा रहे हम
5.9 टोटल फर्टिलिटी रेट (एक महिला से जन्मे औसत बच्चे) थी 1951 में
2.2 आंकी गई यह 2016 में। अगले दो दशक में देश की आबादी में गिरावट शुरू हो सकती है।
अस्पताल एक के मुकाबले 26 हुए
वर्ष 1952 : भारत में 2,770 अस्पताल थे।
2020 : 73,110 अस्पताल व संस्थान। इनमें 29,630 सरकारी व 43,480 प्राइवेट अस्पताल।
अस्पतालों के बेड भी 22 गुना बढ़ाए
1942 : 86,400 बेड ही थे देश में, भोरे समिति के अनुसार।
वर्तमान : 18,99,228 बेड हैं, हालांकि यह दोगुने होने चाहिए थी।
आय कारोबार
देश की अर्थव्यवस्था का पूर्ण विकास आम नागरिकों के जीवनस्तर में सुधार और आर्थिक प्रगति से ही हो सकता है। आजादी के 74 वर्षों में नागरिकों की आय में और उद्योग जगत में उत्पादन कई गुना बढ़ा। हालांकि, कई मानकों और हमारे साथ ही आजाद हुए बहुत से देशों की तुलना में हम आज महसूस करते हैं कि यह उपलब्धियां और बेहतर हो सकती थीं।
166 से 1.44 लाख रुपये पहुंची प्रति व्यक्ति आय
एक कार से शुरुआत, अब महीने में करीब तीन लाख
हिंदुस्तान 10 नाम से पहली बार भारत में बनी कार 1948 में सड़क पर उतारी गई।
2.94 लाख कारें जुलाई 2021 में बिकीं।
एक कार से शुरुआत, अब महीने में करीब तीन लाख
हिंदुस्तान 10 नाम से पहली बार भारत में बनी कार 1948 में सड़क पर उतारी गई।
2.94 लाख कारें जुलाई 2021 में बिकीं।
मध्य वर्ग 100 गुना से ज्यादा बढ़ा
50 लाख था ब्रिटिश राज से बाहर आए भारत में मध्य वर्ग का आकार
60 करोड़ लोगों को आज इस श्रेणी में गिना जा रहा है, देश का हर 100 रुपये में से 70 यही वर्ग खर्च करता है।
रोजगार गैर-कृषि क्षेत्रों में बढ़ा
1.48 करोड़ लोग नौकरियां कर रहे थे 1951 में।
8.08 करोड़ नागरिक गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित नौकरीपेशा हैं, जनगणना 2011 के अनुसार।
सरकारी नौकरियों में 21 गुना ज्यादा नागरिक
21.5 लाख नागरिक सरकारी कर्मचारी थे साल 1951 में
4.60 करोड़ लोग वर्तमान में केंद्र व राज्य सरकार की सेवाओं में नियुक्त
Comments are closed.