खादी के प्रति जागरूकता बढाने के लिए खादी बाज़ार में “खादी जागरूकता अभियान”
इंदौर, 03 जनवरी 2019: “खादी केवल वस्त्र नहीं, एक विचारधारा है व भारत देश की प्राचीन संस्कृति है। महात्मा गांधी जी ने खादी का पुनरुद्धारइसलिए किया था की देश में हम विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कर अपना खुद का बनाया हुआ कपड़ा पहनें। भारत ने टेक्सटाइल इंडस्ट्री में काफी तरक्की की है, कई तरह के फाइबर जैसे ऐक्रेलिक, बेल्जियम इत्यादि आ गए हैं लेकिन फिर भी खादी का अपना स्थान है और इसने भारत में काफी उन्नति करी है।” यह बातें टेक्सटाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (मध्यप्रदेश यूनिट) के माननीय सेक्रेटरी एंड एक्स नेशनल वाईस चेयरमैन, श्री अशोक वेदा ने मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में ग्रामीण हाट बाज़ार में आयोजित “खादी जागरूकता अभियान” में कहीं।
युवाओं में खादी के प्रति जागरूकता बढाने और खादी ग्रामोद्योग को बढावा देने के लिए 3 जनवरी 2019 को “खादी जागरूकता अभियान” का आयोजन किया गया। इस वर्कशॉप में आई.एन.आई.एफ.डी. के फेशन डिजाइनिंग स्टूडेंट्स को बुलाया गया, जहाँ खादी के बदलते ट्रेंड – आज़ादी के पहले खादी फॉर नेशन था और अब खादी फॉर फैशन के बारे में स्टूडेंट्स को अवगत करवाया गया। साथ ही इस वर्कशॉप में खादी का सजीव प्रदर्शन भी बताया गया की कैसे सूत बनता है और चरखे के बारे में जानकारी दी गई।
श्री अशोक वेदा ने सभी से अनुरोध किया की हफ्ते में कम से कम 2 दिन खादी के वस्त्र पहने। उन्होंने कहा कि पहनावे का विचार पर बहुत फर्क पड़ता है और खादी के वस्त्र पहन कर आप खुद अलग अनुभूति महसूस करेंगे और आपकी मन:स्थिति में अंतर महसूस करेंगे। खादी में कोई मिलावट नही होती, यह एक नेचुरल फाइबर है जिसमें किसी तरह का केमिकल उपयोग नहीं होता। श्री अशोक वेदा ने संदेश दिया की खादी हमारी विरासत है और इस देश की संस्कृति है तो इसे आगे बढ़ाने में सहयोग करें।
इस वर्कशॉप में दूसरे अतिथि वक्ता के रूप में मौजूद, महाराजा रणजीत सिंह कॉलेज के प्रोफ़ेसर डॉ. पुष्पेंद्र दुबे ने छात्रों को बताया कि कैसे वे खादी के साथ एक नई सोच रख कर अपना खुद का स्टार्ट अप कर सकते हैं और साथ ही दूसरों को भी रोजगार प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने ‘ग्रीन क्लॉथ कैंपेन’ के बारे में भी जानकारी दी।
डॉ. पुष्पेंद्र दुबे ने बताया कि आज़ादी के पहले करीब 3500 लोगों ने संकल्प लिया की वे अपने हाथ का बुना हुआ कपड़ा पहनेंगे। गाँधी जी ने अखिल भारतीय चरखा संघ बनाया था जिसमें 3500 कार्यकर्ता काम करते थे और वे 15000 गांव में गए और 4 करोड़ रुपये की मजदूरी पहुंचाई। आज़ादी के पहले खादी नेशन के लिए था और अब अपने देश की इस विरासत को फैशन के रूप में आप और विकसित कर सकते हैं।
यह वर्कशॉप फेशन डिजाइनिंग के स्टूडेंट्स के लिए बहुत ज्ञानवर्धक साबित हुई। स्टूडेंट्स ने यहाँ खादी उद्योग के बारे में काफी कुछ जाना और काफी बढ़ चढ़कर इस वर्कशॉप में हिस्सा लिया। साथ ही उन्होंने मुख्य अतिथियों से खादी उद्योग से संबधित अपनी जिज्ञासाएं जताई जिनके उनको संतोषजनक समाधान मिले।
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