जून, 2019, इंदौर।:इंदौर एकेडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स, नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम (एनएनएफ) की इंदौर ब्रांच एवं मेडीकेयर अस्पताल के संयुक्त तत्वाधान में रविवार 16 जून, 2019 को मेडीकेयर में अस्पताल ‘कंगारू मदर केयर’ पर कार्यशाला आयोजित की गई। शहर के एक दर्जन से अधिक नर्सिंग होम के नर्सिंग स्टाफ़ को ‘कंगारू मदर केयर’ के लिए प्रशिक्षित किया गया।
कार्यशाला का उद्घाटन शहर की वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेमलता पारिख और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रवीण जड़िया ने किया। डॉ. पारेख ने बताया कि यह आज के समय की आवश्यकता है और इसी सही रूप से लागू करने पर हम कम वजनी नवजात शिशु मृत्यु दर को लगभग 50 प्रतिशत कम कर रहे हैं। वहीं, डॉ. जड़िया ने ‘कंगारू मदर केयर’ के महत्व के बारे में बताया और इंदौर जिले में इसके व्यापक प्रचार, प्रशिक्षण और इसे प्रभावी रूप से लागू करने का आश्वासन दिया।
एनएनएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. वी.पी. गोस्वामी और प्रादेशिक सचिव डॉ. विवेक पाठक ने बताया कि विश्वभर में प्रतिवर्ष दो करोड़ से अधिक नवजात कम वजन के साथ जन्म लेते हैं। उनमें से 80 लाख का जन्म हमारे देश में होता है। आंकड़ों को देखा जाए तो नवजाक शिशु मृत्यु दर का 80 प्रतिशत हिस्सा कम वजन वाले बच्चों का होता है। इसके अतिरिक्त, जहां विश्व में 15.5 प्रतिशत बच्चे जन्म के समय मानक से कम वजन वाले होते हैं, वहीं, भारत में यह दर 27 प्रतिशत है।
इंदौर एकेडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स के अध्यक्ष डॉ. निर्भय मेहता एवं डॉ. श्रीलेखा जोशी ने बताया कि पूरे विश्व में नवजात शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए हरसंभव प्रयास जारी हैं। इनमें बच्चों का तापमान नियंत्रण, साफ़-सफ़ाई का ध्यान, इंफेक्शन से बचाव, उचित पोषण और विभिन्न जटिलताओं की जल्द से जल्द पहचान कर उपयुक्त इलाज करना शामिल है।
प्रादेशिक सचिव डॉ. पाठक, आईएपी अध्यक्ष डॉ. निर्भय मेहता एवं सचिव डॉ. श्रीलेखा जोशी ने ‘कंगारू मदर केयर’ के विभिन्न् पहलुओं पर प्रकाश डाला। डॉ. जेनिशा, डॉ. रत्नेश खरे, डॉ. पंखुड़ी और डॉ. अनिल प्रसाद ने विस्तृत जानकारी देकर सिलसिलेवार प्रशिक्षण दिया।
1978 में हुई थी कोलंबिया से शुरुआत: उल्लेखनीय है कि ‘कंगारू मदर केयर’ प्रोग्राम सबसे पहले 1978 में कोलंबिया के बोगोटा के अस्पताल में शुरू हुआ था। वर्ष 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस कार्यक्रम को मान्यता दी थी। 1994 में प्राथमिक तौर पर भारत में शुरू हुए इस कार्यक्रम में देश के छह प्रमुख चिकित्सा संस्थानों के माध्यम से ‘केएमसी’ नेटवर्क बनाया गया। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के शिशु स्वास्थ्य विभाग ने ‘कंगारू मदर केयर’ को लागू करने का निर्णय लिया और इसके लिए संबंधित दिशानिर्देश तैयार किए। समय-समय पर डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ़ और अस्पताल के सपोर्ट स्टाफ़ को प्रशिक्षण दिया जाता है।
इसलिए रखा ‘कंगारू मदर केयर’ नाम:ऑस्ट्रेलिया में पाया जाने वाले प्राणी कंगारू के बच्चे का अधिकतर समय से पहले जन्म होता है। कंगारू बच्चे के परिपक्व होने तक अपने पाऊच में उसकी निगरानी करता है। यहीं सिद्धांत ‘कंगारू मदर केयर’ में लागू होता है। जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की मां को प्रशिक्षित किया जाता है कि वे नवजात को अपनी छाती से चिपकाकर गर्माहट दें और समय पर स्तनपात करवाएं। इससे मां और बच्चे के संबंध मजबूत होते हैं, संक्रमण का खतरा कम होता है और कम वजन होने से बच्चे में होने वाली जटिलताएं भी न्यूनतम हो जाती हैं। इससे बच्चे का तापमान भी नियंत्रित रहता है और उसका सही रूप से शारीरिक और मानसिक विकास होता है।
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