आज भारत की 65 फीसद आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक भारत की औसत आयु 29 वर्ष होगी, जबकि चीन व अमेरिका में 37 वर्ष तथा यूरोप में 45 वर्ष होगी। 10 से 24 साल की उम्र के 35.6 करोड़ लोगों के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। यह भारत के लिए बेहतर अवसर और बड़ी चुनौती भी है। अवसर इस मायने में कि हम युवाओं को हुनरमंद बनाकर देश को विश्व के मानव संसाधन के गढ़ में तब्दील कर सकते हैं। आज कई विकसित देशों की आबादी बुजुर्ग होती जा रही है और वहां श्रम शक्ति की भारी मांग होगी।
कैलाश बिश्नोई
आज भारत की 65 फीसद आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक भारत की औसत आयु 29 वर्ष होगी, जबकि चीन व अमेरिका में 37 वर्ष तथा यूरोप में 45 वर्ष होगी। 10 से 24 साल की उम्र के 35.6 करोड़ लोगों के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। यह भारत के लिए बेहतर अवसर और बड़ी चुनौती भी है। अवसर इस मायने में कि हम युवाओं को हुनरमंद बनाकर देश को विश्व के मानव संसाधन के गढ़ में तब्दील कर सकते हैं। आज कई विकसित देशों की आबादी बुजुर्ग होती जा रही है और वहां श्रम शक्ति की भारी मांग होगी।
ऐसे में हुनरमंद भारतीय युवा इस मांग को पूरा कर सकते हैं। भारत की 80 करोड़ से ज्यादा आबादी कामकाजी आयु की है और हर साल काम करने की वाली आबादी में छह करोड़ नए युवा शामिल हो रहे है। मगर बड़ी चुनौती यह है कि इसमें बड़ी तादाद अकुशल या अर्धकुशल युवाओं की होती है। श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महज 3.5 फीसद कुशल कार्यबल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर युवा आबादी को अर्थव्यवस्था के लिए वरदान कहते रहे हैं, लेकिन भारत को इस युवा आबादी का लाभ अगले पंद्रह वर्ष में भरपूर तरीके से उठा लेना चाहिए अन्यथा यह हमारे लिए जनांकिकीय वरदान की जगह अभिशाप साबित होगी। परंतु देश युवा आबादी का लाभ तभी ले सकता हैं, जब युवाओं की शिक्षा और उनके कौशल विकास में निवेश हो।
अभी तो कौशल विकास पर समुचित ध्यान नहीं होने की वजह से बेरोजगार युवाओं की फौज खड़ी हो रही हैं। भारत में शिक्षा प्रणाली भी दोषपूर्ण है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 90 फीसद ग्रुजुएट, 75 फीसद बीटेक तथा 80 फीसद मैनेजमेंट पोस्टग्रेजुएट नौकरी देने के लायक नहीं हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनमें 50 फीसद ऐसे युवा है, जिन्हें आवश्यक प्रशिक्षण देने के बावजूद अच्छी नौकरी पर नहीं रखा जा सकता। जाहिर है हमारी शिक्षा की गुणवत्ता बहुत खराब है। भारत में हर साल लगभग 40 लाख युवा ग्रेजुएट होते हैं, मगर ज्यादातर को ऐसा कोई कौशल नहीं सिखाया जाता जिससे वे किसी उद्योग या व्यवसाय में नौकरी पा सकें अथवा अपना व्यवसाय खुद शुरू कर सकें।
जिन कार्यक्रमों के तहत युवाओं को कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है, समस्या उसमें भी है। मसलन आप बाड़ बांधने, मचान बांधने और सहायक बढ़ई के कोर्स को देख सकते हैं, जिनके तहत कौशल विकास में ऐसा कुछ नहीं जोड़ा जाता, जिससे कोई युवा रोजगार प्राप्त कर सकता है, खासकर ऐसे समय में, जब निर्माण एवं रियल एस्टेट जैसे क्षेत्र थोड़ा मंदी की गिरफ्त में है। इसी तरह स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में लैब तकनीशियन के कौशल की कोई स्पष्ट भूमिका नहीं है, जिससे किसी को रोजगार मिले। इन दोनों पाठ्यक्रमों में मौलिक दोष हैं और गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण कुछ ही केंद्रों पर दिया जाता है। संभवत: कौशल विकास परिषद को उन पाठ्यक्रमों को निर्धारित करने में सक्षम नहीं बनाया गया है, जिनका रोजगार से सीधा संबंध है।
400 से ज्यादा कंपनियों के बीच किए गए करियर बिल्डर इंडिया के सर्वेक्षण के मुताबिक अधिकतर कंपनियों का मानना था बदलते माहौल में भी शिक्षण संस्थाएं व्यावहारिक ज्ञान की बजाय किताबी ज्ञान पर ही ज्यादा ध्यान दे रही हैं। इसी तरह 65 प्रतिशत कंपनियों का कहना था कि भारतीय विश्वविद्यालय सीमित भूमिकाओं के लिए ही छात्रों को तैयार कर पा रहे हैं। ऐसे में भारत को अकादमिक शिक्षा की तरह ही बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाले कौशल की शिक्षा देना भी जरूरी है। इसके लिए उद्योगों से मिले फीडबैक पर आधारित कौशल विकास पाठ्यक्रम तैयार करने चाहिए जो समय-समय पर नवीनतम तकनीक के अनुसार अद्यतन होते रहे। युवाओं को हुनरमंद बनाने के लिए शिक्षा का व्यवसायीकरण समय की मांग हैं।
NEWS SOURCE :- www.jagran.com
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