न्यूज़ डेस्क : वैज्ञानिक दंपती के साथ-साथ दुनिया भर में ‘द सीकर’ नाम से मशहूर भारतीय रिसर्चर ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन में होने के सबूत पेश कर दुनिया को एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है। सोशल मीडिया पर ‘द सीकर’ नाम से चर्चित शोधकर्ता की रिपोर्ट में वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में इस वायरस के प्रयोग होने के कई सबूत पेश मिले हैं। सीकर ने यह साबित किया कि RaTG13 (SARS-CoV-2 से काफी मिलता-जुलता कोरोना वायरस) चीन प्रांत के मोजियांग की खदान से मिला था। जिसमें तीन मजदूरों की मौत हो गई थी। उस वायरस का प्रयोग बाद में वुहान लैब में किया गया, जिससे पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में आ गई ।
गुमनामी का जीवन जीना पसंद
वैज्ञानिक दंपती डॉ मोनाली राहलकर और डॉ राहुल बहुलिकर के अलावा इस टीम में तीसरा शख्स भी शामिल है, जिसे विश्व द सीकर के नाम से जानता है। उसकी आयु 30 साल की है। वह पहले भारत के किसी हिस्से में रहता था। हालांकि देश में वह कहां रहता था इस बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। यह शोधकर्ता साइंस टीचर, आर्किटेक्ट और फिल्ममेकर भी है, लेकिन उसे गुमनामी का जीवन काफी पसंद है।
‘द सीकर’ ने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के सवालों का जवाब ईमेल के जरिए दिया। एक सवाल के जवाब में उसने कहा कि उसे शोहरत की जगह सादगी पसंद है। वह चमक-धमक की दुनिया से दूर रहना चाहता है। टीओआई ने जब रिसर्चर से कोरोना की शुरुआत को लेकर जब सवाल पूछा तो उसने जवाब भेजा कि ‘मेरी रुचि ने मुझे इस ओर खींच लाई है। “अब तो सालभर से ज्यादा समय बीत चुका है।
कोरोना वायरस प्राकृतिक नहीं
साल 2020 में ‘द सीकर’ ने चीन से एक मास्टर की थीसिस की जानकारी ली थी, जिसमें जिक्र किया गया था कि कैसे 2012 में मोजियांग की एक चमगादड़ों से भरी खदान में छह कर्मचारी गए और सांस की एक एक रहस्यमयी बीमारी की जद में आ गए। जो काफी हद तक कोविड से मिलती-जुलती बीमारी थी। उनमें से तीन की मौत हो गई। ‘द सीकर’ के खुलासे के बाद यह तो साफ हो गया है कि कोरोना संक्रमण प्राकृतिक नहीं बल्कि लैब में तैयार किया गया एक खतरनाक संक्रमण है।
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