भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश जिसे ईश्वर ने 6 विभिन्न ऋतुओं से सुशोभित किया है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज
पूज्य सद्गुरुदेव आशीषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
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न्यूज़ डेस्क : पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – प्रकृति में मातृवत परिपोषण के भाव हैं ! किन्तु अनियंत्रित भोग-वांछाओं के कारण मनुष्य ने पर्यावरण को दूषित किया है, विकृत पर्यावरण ही अनेक अनर्थों का मूल है। प्रकृति के साथ एकात्मता और सहअस्तित्व से ही धरा पर जीवन तत्व की रक्षा संभव है ..! वर्ष 2020 प्रकृति के साथ हमारे सह-अस्तित्व एवं साहचर्य की ओर ध्यानाकर्षण का एक विशेष अवसर है। प्रारंभ से ही, मानव जाति स्थानीय से वैश्विक स्तर तक प्रकृति के साथ सम्यक संतुलन स्थापित करने का प्रयास कर रही है। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को लेकर मनुष्य के बढ़ते लोभ का परिणाम संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ है।
कोरोना संक्रमणकाल से बचने के लिए देश में किया गया ‘लॉकडाउन’ हम सभी लोगों को एक अति महत्वपूर्ण सीख देता है कि देश में हर तरफ फैले बेहिसाब घातक प्रदूषण के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, क्योंकि जिस तरह से देश में कल-कारखाने व अन्य सभी कुछ कार्य बंद होने के चलते जल, वायु व भूमि प्रदूषण में कुछ दिनों में ही भारी कमी आयी है, उसने सभी विशेषज्ञों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है। आज जो नदियां करोड़ों रुपये सालाना स्वच्छता पर खर्च करने के बाद भी साफ नहीं हो पा रही थी। वह सभी ‘लॉकडाउन’ में सब कुछ बंद होने के चलते स्वतः साफ हो गयी हैं। ‘लॉकडाउन’ के कारण से साफ हुए नदियाँ, जलस्रोत, स्वच्छ वायु, साफ नीले तारों से टिमटिमाता आसमान, स्वछंद घूमते जीव-जंतु आदि हम सभी को एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश देते है कि यह सब घातक प्रदूषण मानव के द्वारा स्वयं पैदा किया गया है। इसलिए प्रकृति का हम सभी लोगों के लिए बिल्कुल स्पष्ट संदेश है कि देश में भूमि, जल, वायु व ध्वनि प्रदूषण कम करने की जिम्मेदारी हमारी स्वयं की है। अतः वैश्विक महामारी प्रकृति द्वारा मानव प्रजाति को दी गई चेतावनी है और इसे हमें गंभीरता से लेना होगा …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जिसे ईश्वर ने 6 विभिन्न ऋतुओं से सुशोभित किया है। जैसे – ग्रीष्म, शरद, वर्षा, हेमंत, शिशिर और बसंत। ये 6 ऋतुएं हमें प्रकृति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा प्रदान करती हैं। लगभग एक सदी पहले महान भारतीय वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चन्द्र बसु ने ही यह सिद्ध किया था कि पेड़-पौधों, एवं वनस्पति में भी जीवन होता है और ये भी हमारी तरह ही लगाव एवं दर्द अनुभूत करते हैं। जहां तक पर्यावरण संरक्षण की बात है, भारत सांस्कृतिक मूल्यों और धार्मिक लोकाचार की समृद्ध परम्परा वाला देश रहा है। वेदों और प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पृथ्वी को ‘माता’ का स्थान दिया गया है। अथर्ववेद में कहा गया है – ‘माता भूमि:, पुत्रोहंम् पृथिव्या: …’ अर्थात्त, यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं। यहां प्रकृति के पंच तत्वों यानी जल, अग्नि, आकाश, पृथ्वी और वायु की पूजा पीढिय़ों से होती रही है।
देशभर में पेड़-पौधे, पहाड़, नदियों और फसलों की पूजा की विभिन्न धार्मिक मान्यताएं रही हैं। गोवर्धन पूजा, छठ पूजा, तुलसी, आक, वटवृक्ष पूजा, बैसाखी, गोदावरी पुष्करम, बिहू, राजापर्बा, मकर संक्रांति या पोंगल जैसे त्यौहारों की जड़ें प्रकृति से जुड़ी हैं और ये प्रकृति संरक्षण और सम्मान का शाश्वत संदेश देते हैं। हम सभी लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवनदायिनी प्रकृति के साथ तालमेल बना कर चलना होगा। भविष्य में हमको प्राकृतिक संसाधनों का सोच-समझकर और बहुत संभलकर उपयोग करना होगा, तब ही आने वाले समय में देश में पर्यावरण का संरक्षण ठीक से होगा और हम सभी लोगों की प्रतिदिन की आवश्यकताओं को प्रकृति पूर्ण कर पायेगी। आज हम सभी को ध्यान रखना होगा कि प्रदूषण का बढ़ते स्तर का ज्वंलत मुद्दा, आने वाले समय में देशों में सीमा, जाति और अमीर-गरीब की दीवारों को समाप्त करने वाला यह ऐसा मुद्दा होगा जिस पर पूरी दुनिया के लोगों को जीवन को सुरक्षित बचायें रखने के लिए हर हाल में एक होना होगा। आज हमको अपने सेवा भाव, दृढसंकल्प व दृढ इच्छाशक्ति के बलबूते देश में पर्यावरण संरक्षण को भाषणों, किताबों और लेखों से बाहर लाकर, हर भारतवासी को प्रकृति व पर्यावरण के प्रति अपनी बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को समय रहते दिल व दिमाग दोनों से समझना होगा; तभी भविष्य में प्रदूषण कम होगा और धरातल पर पर्यावरण संरक्षण के कुछ ठोस प्रभाव नजर आ सकेंगे …।
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