पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
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पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – जिस प्रकार रात्रि के गहन अंधकार में ही अरूणोदय काल के संकेत छिपे होते हैं, उसी प्रकार प्रतिकूल परिस्थितियां ही अनुकूलता और जीवन सिद्धि का मार्ग प्रशस्त करती हैं। अतः प्रतिकूल परिस्थितियों में सहज और सकारात्मक रहें ..! प्रतिकूल का अर्थ होता है – पक्ष में न होना। विपरीत परिस्थितियों का सामना वही कर सकता है जिसका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है। धैर्यवान व्यक्ति विपत्तियों से घबराता नहीं, बल्कि थोड़े समय प्रतीक्षा करता है एवं लगातार पुरुषार्थ के द्वारा सफलता प्राप्त कर लेता है। जीवन में जो कभी हार नहीं मानता, एक दिन सफलता अवश्य उसके चरण चूमती है! कहते हैं कि विपति आती है तो वह अन्य विपत्तियों को भी साथ लेकर आती हैं, लेकिन उन विपत्तियों से जो हार नहीं मानता और समता पूर्वक अपने आपको सम्भाले रखता है उसको निश्चित ही सफलता मिलती है। जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़े, बिल्कुल न घबराएं। उन परिस्थितियों को चुनौती समझकर निरंतर आगे बढ़ते रहें। समस्याएं सुलझाने का प्रयास करें। धीरे-धीरे परिस्थितियां अनुकूल हो जाएंगी। माता सीता जब अशोक वाटिका में थी, तब एक समय ऐसा आया जब वह चंद्रमा से कहने लगी कि हे चन्द्रमा ! क्या तुझे मेरा दुःख नहीं दिखाई देता। हे चन्द्रमा ! मेरे मन की अशांति को अपनी शीतलता की शांति प्रदान कर, माता सीता अशोक वृक्ष से कहती हैं कि हे अशोक ! तू तो अपने नाम को सत्य कर दे, मेरे शोक को हर ले, उस क्षण माता सीता मन से हार मान चुकी थी। माता ने अपनी आँखों को मूंद कर कहा कि हे रघुनाथ जी ! अब यह दुःख मुझसे नहीं सहा जाता और उसी क्षण श्रीहनुमान जी ने माता के सन्मुख भगवान श्रीराम की मुद्रिका डाल दी। वास्तविक सत्य तो यह है कि जीवन में इन विपरीत परिस्थितियों में जीने का मार्ग भीतर ही है, बस हमे शांत होकर उस मार्ग को ढूंढना है। सत्य तो यही है कि जीवन में प्रतिकूल परिस्थियाँ तो आती जाती रहेंगी। लेकिन, यदि आप मन को शांत करके प्रभु से प्राथना करेंगे तो श्रीहनुमान जी आप के सन्मुख भी आशा की राम मुद्रिका अवश्य डालेंगे …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – हर व्यक्ति को जीवन में निराशा एवं प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ता है, लेकिन सफल और सार्थक जीवन वही है जो सफलता और असफलता, अनुकूलता और प्रतिकूलता, सुख और दु:ख, हर्ष और विषाद के बीच संतुलन स्थापित करते हुए अपने चिंतन की धारा को सकारात्मक बनाए रखता है।जीवन की समग्र समस्याओं का समाधान व्यक्ति चिंतन के द्वारा खोज सकता है। जीवन का एक बड़ा सत्य है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी व्यक्ति सामान्य रूप से जीवनयापन कर सकता है। आवश्यकता है, मानसिक संतुलन बनाए रखने की। सकारात्मक चिंतन वाला व्यक्ति इन्हीं परिस्थितियों में धैर्य, शांति और सद्भावना से समस्याओं को समाहित कर लेता है। समस्याओं के साथ संतुलन स्थापित करता हुआ ऐसा व्यक्ति जीवन को मधुरता से भर लेता है। सकारात्मक चिंतन के माध्यम से इच्छाशक्ति जागती है। तीव्र इच्छाशक्ति से ही व्यक्ति आगे बढ़ता है और प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बना लेता है। किसी कार्य के लिए उसे कितना भी संघर्ष करना पड़े, वह कार्य कितना भी मुश्किल क्यों न हो, परिस्थितियां चाहे कितनी भी जटिल क्यों न हो; संकल्प और इच्छाशक्ति से वह उसमें सफल हो जाता है। बार-बार उन परिस्थितियों के बारे में न सोचते हुए एक आशावादी दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति इन परिस्थितियों से छुटकारा पा सकता है। प्रतिकूल परिस्थितियों के बारे में सोचते रहने से समस्याओं का समाधान संभव नहीं है। जब विचारों की उलझन को कम किया जाए, निर्वैचारिकता की स्थिति विकसित की जाए, तब विचारों की निरंतरता कम होगी। व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में समायोजन कर सकता है। इस संदर्भ में एक प्रश्न उठता है कि विचारों की निरंतरता को कैसे कम किया जाए? तो इसका उत्तर है, विचारों को कम करने में योग और साधना की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि प्रतिदिन व्यक्ति थोड़ी-थोड़ी देर ध्यान का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से वह अपने मानसिक संतुलन को बनाए रख सकता है एवं प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना भी बड़ी ही आसानी से कर सकता है …।
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