वाशिंगटन। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुख्य अर्थशास्त्री मौरिस ऑब्स्टफेल्ड ने कहा है कि वित्तीय स्थिरता पर भारत सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक की बात को जरूर मानना चाहिए। पत्रकारों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि आईएमएफ नहीं चाहता कि राजनीतिक लाभ के लिए राजनीतिज्ञ केंद्रीय बैंकों के कामकाज में ‘हस्तक्षेप’ करें।
भारत सरकार और रिजर्व बैंक के बीच देश में हाल में बने हालात पर विशेष रूप से पूछे गए एक सवाल पर ऑब्स्टफेल्ड ने कहा, यह बहस पुरानी है कि वित्तीय स्थिरता का विषय केंद्रीय बैंक के अधिकार क्षेत्र में रहना चाहिए या किसी स्वतंत्र नियामक के तहत। ब्रिटेन ने 1997 में अपने केंद्रीय बैंक के इस अधिकार को अलग कर दिया था फिर उसे उसे वापस कर दिया। मैं इस विषय पर कोई पक्ष नहीं ले रहा लेकिन मेरा मानना है कि केंद्रीय बैंक एक हद तक भुगतान प्रणाली और वित्तीय स्थिरता की ङ्क्षचता से परिचित होते हैं।
मुद्राकोष के अर्थशास्त्री ने कहा, मैं किसी एक बात का पक्ष नहीं ले रहा हूं पर मेरी राय में उस केंद्रीय बैंक (आरबीआई) को वित्तीय स्थिरता और भुगतान प्रणाली की गहारी से चिंता करनी है। उन्होंने कहा, सिर्फ राजनैतिक परिदृश्य की दृष्टि से उचित परिणाम की बजाया हमें यह सोचने की जरूरत है कि वह सबसे अच्छा सांस्थानिक ढांचा क्या हो सकता है जिसके तहत अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए वित्तीय नीति को तय किया जा सके। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि रिजर्व बैंक और भारत सरकार के बीच आगे कैसे काम करना है, इस बात को लेकर सहमति बन गई है। उन्होंने कहा, वित्तीय स्थिरता का आरबीआई का संदेश महत्वपूर्ण और सही है और सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
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