52वें इफ्फी की भारतीय पैनोरमा फिल्म “तीन अध्याय”कोविड-19 के कारण फैले अंधकार में आशा का दीपक जलाने का प्रयास है
रात कितनी ही अंधेरी क्यों न हो, आखिर में हमेशा नई सुबह होती है : “तीन अध्याय”
“उत्पत्ति, विपत्ति और निरंतरता एक चक्र का हिस्सा हैं, तो सिर्फ मौत के बारे में ही चर्चा क्यों हो ?”
“कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मैंने अपनी खिड़की के पास एक कौए को घोंसला बनाते देखा; इस दृश्य ने मुझे अपने ईद-गिर्द घटित हो रही सभी घटनाएं भुला डालीं।”मुम्बई में रहने वाले उडि़या फिल्मकार सुभाष साहू ने आमतौर पर मामूली समझकर नजरंदाज कर दी जाने वाली इस घटना से प्रभावित होकर“तीन अध्याय”फिल्म का निर्माण किया, जो घोर निराशा के दौर में आशा की एक सशक्त सिनेमाई अभिव्यक्ति है।“रेत के जर्रे में समूची दुनिया और जंगली फूल में स्वर्ग देख पाने”जैसे बोध के साथ निर्देशक ने कौए की जिंदगी को कैमरे में कैद करना शुरु किया। वह बताते हैं , “लॉकडाउन के कारण घर में बंद मेरे पुत्र को इस प्रक्रिया में मजा आने लगा।”
गोवा में 20-28 नवम्बर, 2021 को आयोजित किए जा रहे 52वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के दौरान आज, 24 नवम्बर, 2021 को श्री साहूमीट द डायरेक्टर्स प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। तीन अध्याय फिल्म भारतीय पैनोरमा खण्ड की गैर फीचर फिल्म श्रेणी में प्रदर्शित की गई हैं।निर्माता सुवीर नाथ, सुप्रभा साहू और संगीत निर्देशक मनीष पिंगलेभी फिल्म के निर्देशक के साथ मीडिया और फिल्म प्रेमियों के साथ बातचीत में शामिल हुए।
श्री साहू ने बताया कि कौवे की जीवन यात्रा के साथकैसे वह कल्पनाशीलता के साथ जुड़ गए, जिससे उन्हें कोविड-19 के कारण लगे देशव्यापी लॉकडाउन के बीच फिल्म की संकल्पना तैयार करने और शूटिंग करने में मदद मिली। “जब मैंने उस कौवे के पलों को कैमरे में कैद करना शुरू किया,तो वह जल्द ही हमारे पूरे घर के आकर्षण का केंद्र बन गया।अगले 6-7 महीनों तक, मैंने रोज़ाना उसके जीवन की घटनाओं पर नजर रखी। मैंने उस कौवे की यात्रा: उसके जन्म, वह कैसे अपने बच्चों को प्यार, देखभाल और दृढ़ समर्पण के साथ पालता है; और निस्संदेह मौत का तांडव, जब वह अपने एक चूजे को खो देता है… को समझने की कोशिश की।”
तो निर्देशक ने कौवे में ऐसा क्या देखा, जो हम में किसी कम चौकस व्यक्ति की नजर से चूक सकता था? “परेशानियों और मृत्यु के बावजूद उस कौवे के लिए जीवन की गति यथावत रही। यदि जीवन है, तो मृत्यु भी होगी; यदि सवेरा है तो सांझ भी है, सुख-दुःख भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।”यह वही बोध है, जो हमें फिल्म में उस लड़के में भी देखने को मिलता है, जो कोविड-19 के संकट और बाहर की दुनिया में मची अफरा-तफरी से बेपरवाह होकर कौवे के जीवन के विभिन्न चरणों को बच्चों जैसे अचरज के साथ देखता है।
श्री साहू को यकीन है कि जीवन में हर आपदा के बाद नई आशाओं के फूल खिलते हैं। “तीन अध्याय मानव मन में ऐसे समय में आशा और सकारात्मकता उत्पन्न करने की कोशिश कर रही है जब उसका अवचेतन मन उसे निराशा के संकेत दे रहा है। कोविड-19 के कारण पूरी दुनिया थम सी गई थी। चारों तरफ घोर नकारात्मकता व्याप्त थी। ”
यह फिल्म भीषण निराशा से घिरे दर्शकों को कैसे अपने लिए बहुत ऊंचे लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रेरित करती है? “हमने फिल्म की पूरी कहानी प्राचीन भारतीय दर्शन के आधार पर बुनी है, जो जीवन को तीन शाश्वत कडि़यों ‘उत्पत्ति‘ (जन्म), ‘विपत्ति‘ (आपदा) और ‘चक्र‘ (निरंतरता) के निरंतर चलायेमान चक्र के रूप में देखता है। तीन अध्याय में दिखाया गया है कि कैसे यह तीनों कडि़यां मासूम बच्चे की जिज्ञासु आंखों के सामने घटित होती हैं, जो उसके साथ-साथ,मोटे तौर पर पूरी दुनिया के लिए जीवन का एक कालातीत सबक छोड़ देती हैं। ”
निर्माता सुवीर नाथ ने भी घोर उदासी और निराशा के दौर के बीच उम्मीद की रोशनी दिखाने की फिल्मकारों की इच्छा के बारे में बताया। “हमने यह कहने की जरूरत महसूस की कि रात कितनी ही अंधेरी क्यों न हो, हमेशा एक नई सुबह हमारी प्रतीक्षा करेगी।”
नाथ पूछते हैं कि जब मौत,एक चक्र का हिस्सा हैं, तो सिर्फ मौत के बारे में ही चर्चा क्यों हो। “हमारी फिल्म बताती है कि कैसे हमारा जीवन, घटनाएं, भावनाएं, रिश्ते आदि सभी उतार-चढ़ाव के एक चक्र से गुजरते हैं। जो उत्पन्न हुआ है, वह समाप्त भी होगा और फिर से जन्म लेगा, केवल नष्ट होने के लिए। इस प्रकार यह चक्र अंतहीन रूप से चलता रहता है। तो फिर हम सिर्फ मौत की ही बात क्यों करें?”
जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि तीन अध्याय को तीन अध्यायों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। तीन संगीत निर्देशकों ने, प्रत्येक अध्याय के लिए अपना-अपना संगीत दिया है। संगीत निर्देशकों में से एक मनीष पिंगले ने बताया कि कैसे उन्होंने जीवन और मृत्यु के चक्र को व्यक्त करने के लिए संगीत को नियोजित किया, फिल्म की भावनाओं का व्यक्त करने के लिए कैसे उन्होंने इसका इस्तेमाल किया: “पहला अध्याय बहुत ही शांतिपूर्ण आलाप से शुरू होता है, जो जन्म को दर्शाता है। अगला अध्याय कुछ तनाव लाता है, जो विपत्ति का संकेत देता है, जो अंततः अंतिम अध्याय में उत्कर्ष की ओर ले जाता है। ”
कौवे से प्रेरित इस फिल्म में संभवत: कोई संवाद नहीं है। प्रसिद्ध साउंड इंजीनियर रह चुके श्री साहू ने अपनी बात बिना संवाद के पहुंचाने के लिए अपनाए गए सिनेमाई तत्वों को समझाया। “संगीत हमारी फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चूंकि इसमें कोई संवाद नहीं हैं, इसलिए हम चाहते थे कि संचार, संगीत के माध्यम से हो। चूंकि यह फिल्म भारतीय दर्शन पर आधारित है, इसलिए हम भारतीय रागों का इस्तेमाल करना चाहते थे। मैं पारंपरिक भारतीय शास्त्रीय संगीत के माध्यम से दृश्यों को बढ़ाना चाहता था।”
फिल्म को बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचाने का मंच प्रदान करने के लिए इफ्फी का आभार प्रकट करते हुए श्री साहू ने कहा, “मैं पहली बार इफ्फीआया हूं और मैं बेहद आभारी हूं।”
श्री सुभाष साहू राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित साउंड डिज़ाइनर हैं। उन्होंने कमीने, एनएच10, नीरजा और तुम्हारी सुलु सहित कई प्रसिद्ध फिल्मों में काम किया है।
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