न्यूज़ डेस्क : कोविड-19 के इलाज को लेकर पूरे देश में बहुत जल्द ही नई गाइडलाइन जारी हो सकती है। आईसीएमआर समेत देश के तमाम वैज्ञानिक संस्थान वायरस के बदलते हुए स्वरूप और उसके असर के मुताबिक इलाज की नई प्रक्रिया पर काम कर रहे हैं। अनुमान है अगले कुछ महीने में इलाज के तौर तरीके और दवाओं समेत उसके व्यापक असर को देखते हुए नई गाइडलाइन जारी कर दी जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि इस वक्त जिस तरह से कोविड का इलाज हो रहै है वह सबसे सटीक इलाज है।
कोविड के इलाज को लेकर लगातार पूरी दुनिया में चिकित्सक नजर बनाए हुए हैं। अपने देश में चिकित्सकों समेत देश की सभी प्रमुख लैब में भी इसको लेकर शोध हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक लगातार हो रहे शोध से इस बात का निष्कर्ष निकल रहा है कि कोविड के इलाज के प्रोटोकॉल को न सिर्फ बदलना चाहिए बल्कि बदले प्रोटोकॉल पर भी नजर बनाकर रखनी चाहिए। जिसको जरूरत के मुताबिक बाद में भी बदला जा सके।
कोविड को लेकर बनाए गए नेशनल टास्क फोर्स टीम से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि नई बीमारी में हर वक्त निगरानी की जरूरत होती है। ऐसे में प्रोटोकॉल भी बदलना पड़ता है। इसलिए यह बिल्कुल तय है कि इस वक्त चल रहा कोविड के इलाज का प्रोटोकाल तो बदलेगा ही। हालांकि ऐसा कब होगा इस पर अभी स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन वैज्ञानिक और चिकित्सक लगातार इस दिशा में शोध कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि अनुमान के मुताबिक नवंबर से दिसंबर के बीच में प्रोटोकॉल में बदलाव संभव है। हालांकि ऐसा तब होगा जब वायरस के स्वरूप में तेजी से बदलाव होगा और उसका जरा भी असर दिखेगा।
दूसरी लहर में हुई थी लापरवाही
कोरोना की दूसरी लहर में कोविड और उसके इलाज के लिए तैयार किए गए प्रोटोकॉल में लापरवाही हुई थी। स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक जो प्रोटोकाल पहली बार कोरोना के सामने आने के बाद बना था वही प्रोटोकॉल दूसरी लहर में बना। बाद में जब अधिकारियो को इसका एहसास हुआ तो इलाज से लेकर अन्य में बदलाव किए गए। इससे सबक लेते हुए मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुरूप लगातार प्रोटोकॉल पर जिम्मेदार नजर बनाए हुए हैं।
हाल ही में प्लाज्मा थेरेपी को प्रोटोकॉल से हटाया
हाल में ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड इलाज के प्रोटोकॉल से प्लाज़्मा थेरेपी को हटा दिया था। फिर कोविशिल्ड वैक्सीन के अंतराल को बढ़ाया। दुनिया के प्रमुख मेडिकल जर्नल समेत अलग अलग देशों में हो रही रिसर्च को भी विशेषज्ञ लगातार फॉलो करते हैं और अपने देश में भी उसके मुताबिक और अपने अनुसार शोध करते रहते हैं।
विटामिन डी का कोरोना से संबंध नहीं
हाल में ही कनाडा की मैक हिल यूनिवर्सिटी के एक शोध में सामने आया कि विटामिन डी का कोविड में कोई सीधा असर नहीं होता है। जबकि कोविड के शुरुआती दौर में माना गया था कि विटामिन डी की कमी हो जाती है। कोविड टास्क फोर्स से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बीमारी के शुरुआत में स्टेरॉयड दिए जाने को लेकर तमाम तरह के मतभेद थे।
कोविड पर नजर रखने वाले देश के प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर एनके अरोड़ा कहते हैं कि प्रोटोकॉल के बदलने की संभावना हमेशा बनी रहती है। खासकर नई बीमारी में। इसलिए कोविड के प्रोटोकॉल को लेकर हम लोग बहुत सतर्क हैं। लगातार नजर बनाए हुए हैं। बदलाव भी होंगे।
Comments are closed.