भारतीय वायुसेना आज वायु महारथी, स्वर्गीय मार्शल ऑफ एयर फोर्स अर्जन सिंह डीएफसी को उनकी 103वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रही है। आज के दिन, हम राष्ट्र और भारतीय वायु सेना के लिये मार्शल के योगदान को याद करते हैं।
मार्शल ऑफ एयरफोर्स अर्जन सिंह डीएफसी का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को लायलपुर (अब पाकिस्तान का फैसलाबाद) में हुआ था। उन्नीस वर्ष की आयु में उन्हें आरएएफ कॉलेज क्रैनवेल में प्रशिक्षण के लिये चुन लिया गया तथा दिसंबर 1939 में उन्हें पायलट ऑफीसर के तौर पर रॉयल एयरफोर्स में कमीशन प्राप्त हुआ। उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा अभियान में शानदार नेतृत्व, अतीव कौशल और साहस के लिये डिस्टिंग्विइश्ड फ्लाइंग क्रॉस (डीएफसी) से सम्मानित किया गया। जब 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ, तो उन्हें दिल्ली में लाल किले के ऊपर से एक-सौ से अधिक हवाई जहाजों की उड़ान-परेड का नेतृत्व करने का अनोखा सम्मान दिया गया। एक अगस्त, 1964 को अर्जन सिंह ने 44 वर्ष की आयु में एयर मार्शल के पद के साथ वायुसेना प्रमुख का कार्यभार संभाला।
सितंबर 1965 में भारत के लिये परीक्षा की घड़ी आई, जब पाकिस्तान ने ऑप्रेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया, जिसमें अखनूर के महत्त्वपूर्ण शहर को निशाना बनाया गया। जब उन्हें वायु सहयोग के लिये रक्षा मंत्री के कार्यालय में बुलाया गया और उनसे सवाल किया गया कि भारतीय वायुसेना कितनी जल्दी तैयार हो सकती है। तो उन्होंने अपने चिर-परिचित निश्चिंत अंदाज में कहा, “……घंटे भर में।” और, सच में भारतीय वायुसेना ने घंटे भर में पाकिस्तानी हमले का जवाब दे दिया तथा पाकिस्तानी वायुसेना पर हावी हो गई। इस तरह भारत की थलसेना को ज्यादा से ज्यादा सामरिक जीत में सहयोग किया।
वर्ष 1965 के युद्ध के दौरान उनके शानदार नेतृत्व को ध्यान में रखते हुये उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। अर्जन सिंह भारतीय वायुसेना के पहले एयर चीफ मार्शल बने। जुलाई 1969 में सेवानिवृत्त होने के बाद वे वायुसेना की बेहतरी और कल्याण के लिये लगातार काम करते रहे। उन्होंने स्विट्जरलैंड, होली-सी और लीचेनस्टीन में 1971 से 1974 तक भारत के राजदूत के रूप में भी सेवायें दीं। इसके बाद वे नैरोबी, केन्या में 1974 से 1977 तक भारतीय उच्यायुक्त रहे। उन्होंने 1978 से 1981 तक अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य और 1989 से 1990 तक दिल्ली के उपराज्यपाल के रूप में भी काम किया।
अर्जन सिंह डीएफसी की सेवाओं का सम्मान करते हुये भारत सरकार ने जनवरी, 2002 में उन्हें मार्शल ऑफ दी एयरफोर्स के पद पर आसीन किया। इस तरह वे भारतीय वायुसेना के पहले “फाइव-स्टार” अधिकारी बने। भारतीय वायुसेना में उनके योगदान की याद में 2016 में वायु सेना स्टेशन पानागढ़ का नाम बदलकर एयरफोर्स स्टेशन अर्जन सिंह कर दिया गया।
उनका जबरदस्त व्यक्तित्व, कामकाजी कौशल, नेतृत्वशीलता और रणनीतिक समझ उन्हें विशिष्ट बनाती है और इस तरह वे भारतीय वायुसेना के प्रतिमान हैं।
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