होली पर्व बाह्य मस्ती से ज्‍यादा अंतर्मन के आनंद का काल है पर्व है

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
           ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने होली के पावन पर्व पर सभी देशवासियों को बधाई देते हुए कहा – रंगों का यह पवित्र पर्व आपके जीवन को भगवदीय अनुकम्पा और आध्यात्मिक ऊर्जा से अलंकृत करता रहे। अहंकार जन्य आसुरी वृक्तियों के निर्मूलन-अन्तःकरण की परिशुद्धता के साथ त्याग, तप, शुभता और औदार्यता आदि दैवीय गुणों के आवहान का पर्व है – होलिकोत्सव। अज्ञान-जनित समस्त दैन्य-दुर्बलता और अहमन्यता का अवसान हो। वेदविहित मार्ग के अनुसरण से आपको प्रहलाद की भांति भगवत्कृपा और दिव्य आह्लाद की प्राप्ति हो। होली का यह पर्व देश की एकता सामाजिक समरसता और परस्पर-प्रीति वर्धन में सहायक सिद्ध हो! ऐसी अनेकानेक मंगलकामना के साथ आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं ..! सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का पर्व है – होली। होली, भारतीय समाज में लोकजनों की भावनाओं को अभिव्यक्त करने का आईना है। परिवार को समाज से जोड़ने के लिए होली जैसे पर्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। होली यह संदेश लेकर आती है कि जीवन में आनंद, प्रेम, संतोष एवं दिव्यता होनी चाहिए। जब मनुष्य इन सबका अनुभव करता है तो उसके अंतःकरण में उत्सव का भाव पैदा होता है, जिससे जीवन स्वाभाविक रूप से रंगमय हो जाता है। रंगों का पर्व यह भी सिखाता है कि काम, क्रोध, मद, मोह एवं लोभ रूपी दोषों को त्यागकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए। रंग पर्व होली हमारे देश की त्योहारों की परंपरा का सबसे मजबूत स्तंभ है। होली मात्र रंगों का पर्व न होकर जीवन में एकाकीपन को समाप्त कर उसमें उत्साह भरने के साथ राग-द्वेष, अपना-पराया, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेद समाप्त कर राष्ट्रीय सद्भावना को बढ़ाने वाला पर्व है। इस पर्व में जाती-भेद वर्ण-भेद का कोई स्थान नहीं होता। इसलिए हमें इस पर्व को पूर्ण उल्लास के साथ एवं संकीर्णतापूर्ण जैसे विचारधारा को त्यागकर मनाना चाहिए ..!
🌿 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – होली में जिस तरह विभिन्न रंगो से लोग एक-दूसरे को रंगते हैं, ठीक उसी तरह देश में होली के विविध रंग रूप भी देखने को मिलते हैं और अलग-अलग नामों और तरीकों से होली का उत्सव मनाते हैं। जैसे – ब्रज की होली, बरसाने की लठमार होली, कुमाऊं की गीत बैठकी, हरियाणा की धुलंडी, बंगाल की दोल जात्रा महाराष्ट्र की रंग पंचमी, गोवा का शिमगो, पंजाब में होला, मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन, तमिलनाडु में कमन पोडिगई, मणिपुर के याओसांग, छत्तीसगढ़ में होरी, मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में भगोरिया, पूर्वांचल और बिहार में फगुआ के रूप में यह पर्व हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत से आगे बढ़कर सामाजिक तानों-बानों में रूहानी कसीदाकारी की तरह समाहित है। हर रंग का अपना महत्व है क्योंकि रंग हमारी भावनाओं को दर्शाते हैं। रंगों के माध्यम से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित होता है। यही कारण है कि हमारी भारतीय संस्कृति में होली का पर्व फूलों, रंगों और गुलाल के साथ खेलकर मनाया जाता है। ज्योतिषीय आधार पर लाल रंग को देखें तो इस रंग से भूमि, भवन, साहस, पराक्रम के स्वामी मंगल ग्रह प्रसन्न रहते हैं। पीला रंग अहिंसा, प्रेम, आंनद और ज्ञान का प्रतीक है। यह रंग सौंदर्य और आध्यात्मिक तेज को तो निखारता ही है, इससे वृहस्पति देव भी प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं। नारंगी रंग ज्ञान, ऊर्जा, शक्ति, प्रेम और आनंद का प्रतीक है। जीवन में इसके प्रयोग से मंगल और वृहस्पति की कृपा के साथ-साथ भगवान सूर्यदेव की भी असीम कृपा बरसती है। सफेद रंग शांति, पावनता और सादगी को दर्शाता है, इस रंग के प्रयोग से चंद्रमा एवं शुक्र की कृपा बनी रहती है। नीला रंग साफ-सुथरा, निष्पापी, पारदर्शी, करुणामय, उच्च विचार होने का सूचक है। नीले रंग के प्रयोग से शनिदेव की कृपा बराबर बनी रहती है। हरा रंग खुशहाली, समृद्धि, उत्कर्ष, प्रेम, दया, पावनता का प्रतीक है। हरे रंग के प्रयोग से बुध ग्रह प्रसन्न रहते हैं। सौहार्दपूर्ण ढंग से होली खेलने से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है एवं वहां सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। घर-परिवार पर देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है …। 
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 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – होली पर्व बाह्य मस्ती से ज्‍यादा अंतर्मन के आनंद का काल है। ये भाग्य बदलने का पर्व है। पर्व आंतरिक क्षमता के विस्तार की वो पावन बेला है, जिसके द्वारा हम नवीन कर्मों के माध्यम से नकारात्मकता का उन्मूलन कर अपना जीवन रूपांतरित कर सकते हैं। भारतवर्ष में हर जाति एक समान है और सभी जातियाँ महान हैं। सह-अस्तित्व और विश्व बन्धुत्व में विश्वास रखने वाली हमारी भारतीय संस्कृति का एकता के रुप में वैशिष्ठ दिखाई देता है। होली पर्व के पीछे सभी धार्मिक मान्यताएं, मिथक, परम्पराएं और ऐतिहासिक घटनाएं छुपी हुई हैं। पर, अंतत: इस पर्व का उद्देश्य मानव-कल्याण ही है। होली भारतीय समाज का एक प्रमुख त्योहार है, जिसकी लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। होली की हर कथा में एक समानता है कि उसमें ‘असत्य पर सत्य की विजय’ और ‘दुराचार पर सदाचार की विजय’ का उत्सव मनाने की बात कही गई है। इस प्रकार होली मुख्यतः आनंदोल्लास तथा भाईचारे का त्योहार है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व बसंत का संदेशवाहक भी है। होली को आपसी प्रेम एवं एकता का प्रतीक माना जाता है। वास्तव में हमारे द्वारा होली का त्योहार मनाना तभी सार्थक होगा, जब हम इसके वास्तविक महत्व को समझकर उसके अनुसार आचरण करें। इसलिए, वर्तमान परिवेश में आवश्यकता है कि इस पवित्र पर्व पर दिखावे एवं आडम्बर की बजाय इसके पीछे छुपे हुए संस्कारों और जीवन मूल्यों को महत्त्व दी जाए। इसी में व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी का कल्याण निहित है …।

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