पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – नववर्ष-नवाचार नई फसल एवं चेतना के नवोत्थान के रूप में लोकमानस में प्रख्यात वैशाखी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ! वैशाखी का पावन पर्व सर्वथा कल्याणकारी एवं शुभ सिद्ध हो ..! किसानों का पर्व कहे जाने वाली बैसाखी का पर्व पूरे देश में धूम-धाम से मनाई जाती है। भारत देश की अलग-अलग जगहों पर बैसाखी का त्योहार अलग-अलग नामों से मनाने की प्रथा है। इस पर्व पर लोग अनाज की पूजा कर प्रकृति का धन्यवाद करते हैं। कृषि से जुड़ा होने के कारण भी इस त्योहार का अलग ही महत्व है।
फसलें पक कर तैयार हो चुकी होती हैं, जिन्हें लेकर एक किसान सौ तरह के सपने सजाये होता है। उन्हीं सपनों के पूरा होने की उम्मीद किसान उस पकी फसल में देखता है। किसानों की यह खुशी बैसाखी के उत्सव में भी देखी जा सकती है। पूरे पंजाब के साथ-साथ हरियाणा ढोल-नगाड़ों की थाप से गूंज उठता है। घरों से पकवानों की खुशबू के साथ रंग-बिरंगी पोशाकों में सजे युवक-युवतियां परंपरागत वेशभूषा में भंगड़ा-गिद्दा करते नजर आते हैं। बैसाखी का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व तो है ही साथ ही धार्मिक महत्व भी है। तो आइये ! आपको बताते हैं कि क्या है – बैसाखी पर्व का धार्मिक महत्व? बैसाखी नाम वैशाख से बना है। इसी दिन,1699 को सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहेब में खालसा पंथ की नींव रखी थी। अर्थात्, खालसा पंथ की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचार से मुक्त करना था।
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असहाय एवं जरूरतमंद की सहायता करना ही सिख धर्म का परम कर्तव्य है। और वास्तव में, निस्वार्थ भाव से जरूरतमंद की सहायता करना ही ईश्वर की सच्ची सेवा, पूजा व उपासना है। भगवान का सच्चा भक्त कभी भी किसी से द्वेष भाव नहीं रखता। इसलिए हमें भी एक सच्चे भक्त के समान हर किसी से प्रेम करते रहना चाहिए। जीवन को सफल बनाना है तो लोभ, मोह, माया और क्रोध से स्वयं को दूर रखने का प्रयास करते रहना चाहिए। इन भीतर के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके ही मनुष्य अपने जीवन को आनंदमय बना सकता है। अगर बाहर के शत्रुओं पर विजय पानी है, तो पहले अपने अंदर के शत्रुओं को जीतना होगा। तभी हम हर शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। अहिंसा का, निंदा का, घृणा आदि के परित्याग का होना अति आवश्यक है। भीतर के शत्रु पर विजय पानी है तो अंदर प्रेम जगाना आवश्यक है। अतः भीतर के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना ही जीवन की पूर्णता है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – सामाजिक सांस्कृतिक समरसता का पर्व है – बैसाखी। निस्वार्थ सेवा ही मानव का परम धर्म होना चाहिए। त्याग और बलिदान ऐसे गुण हैं जिनके आधार पर ही किसी व्यक्ति को महानता और स्थायी मान्यता प्राप्त हो सकती है। हमारा यश तभी टिकाऊ हो सकता है जब हम समाज के कल्याण को प्राथमिकता देकर कुछ त्याग और बलिदान करेंगे। जिन लोगों ने धन-वैभव के बल पर कीर्ति और मान्यता प्राप्त करनी चाही उनका नाम एवं यश केवल और केवल उनके जीवनकाल तक ही सीमित रही। मानव जीवन में सदियों से त्याग का सर्वाधिक महत्व रहा है। जब तक व्यक्ति में परमार्थ व त्याग की भावना नहीं आएगी न स्वयं का कल्याण संभव है और न ही समाज और राष्ट्र का। माता-पिता, समाज, धर्म-संस्कृति, जन्मभूमि एवं मानवता से हम बहुत कुछ लेते हैं। हमारा प्रौढ़ व्यक्तित्व, समृद्ध जीवन, प्रतिभा इसी का तो परिणाम है। जब हम इन ऋणों को अनंत गुणा रूप में लौटाने के लिए तत्पर होंगे, उसी दिन से हमारी मुक्ति यात्रा आरम्भ हो जाएगी। इसलिए हमें भी जीवन में प्राप्त अपनी शक्ति, सामर्थ्य एवं योग्यता का पूरा-पूरा उपयोग कर विश्व को निरंतर देते रहने का पुनीत यज्ञ प्रारम्भ कर देना चाहिए, क्योंकि इसी में जीवन की सार्थकता निहित है …।
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