नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में दायर एक और याचिका के जरिये मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के बहुविवाह और निकाह हलाला को उचित ठहराने वाले प्रावधानों को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है। शीर्ष न्यायालय ने लखनऊ निवासी नैश हसन की इस याचिका पर नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष नैश हसन ने यह याचिका दायर की। पीठ ने इस पर केंद्र सरकार के साथ-साथ राष्ट्रीय महिला आयोग को भी नोटिस जारी करते हुए अर्जी संविधान पीठ को भेज दिया। आदेश दिया कि इस मामले से संबंधित जिन अन्य याचिकाओं को आगे की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेजा गया है, इस अर्जी को भी उन्हीं के साथ संलग्न कर दिया जाए। संविधान पीठ ही इस तरह की सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
वरिष्ठ वकील वीके शुक्ला एवं अश्विनी कुमार उपाध्याय ने नैश की ओर से अदालत में यह याचिका दाखिल की। इसमें कहा गया है, ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम 1937 की धारा दो को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए। मुस्लिम पर्सनल लॉ की यह धारा बहुविवाह एवं निकाह हलाला की प्रथा को मान्यता देती है।’ ध्यान रहे कि 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को संविधान पीठ के हवाले कर दिया था।
क्या है निकाह हलाला
किसी महिला को यदि उसका पति तलाक दे देता है और उसके बाद उसी पति से उसे दोबारा निकाह करना हो तो उसके पहले उसकी किसी अन्य व्यक्ति से शादी की जाती है। फिर वह व्यक्ति महिला को तलाक देता है। इसके बाद ही महिला की पूर्व पति से दोबारा शादी हो सकती है। इस प्रक्रिया को हलाला कहते हैं।
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