पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – उत्तरायण-सूर्य का यह दिव्य आलोक प्रकृति-पर्यावरण में अनेक प्रकार की अनुकूलताओं का सृजन करने वाला और इहलौकिक-पारलौकिक प्रयोजनों का सिद्धि प्रदाता है। ईश-साधना में सातत्य-अविच्छिन्नता बनी रहे एवं प्रकृति, जैव-जगत और प्राणी समूह का सर्वथा मंगल हो ..! सक्रांति का शाब्दिक अर्थ है – गति या चाल। जीवन के रूप में हम जिसे भी जानते हैं, उसमें गति निहित है। मकर संक्रांति का पर्व यह स्मरण कराता है कि गतिशीलता का उत्सव मनाना तभी संभव है, जब आपको अपने भीतर निश्चतला का अनुभव हो। मकर संक्रान्ति एक मात्र ऐसा पर्व है, जो सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। मकर संक्रान्ति से सूर्य दक्षिण मार्ग छोड़कर उत्तर मार्ग में प्रवृत्त हो जाते हैं। सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस मकर संक्रान्ति को देवताओं का प्रात:काल माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण देवताओं की रात्रि तथा उत्तरायण देवताओं का दिन है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। भगवान सूर्य की स्तुति का उपयुक्त मंत्र है – “जयति जगत: प्रसूतिर्विश्वात्मा सहजभूषणं नभस:। द्रुतकनकसदृशदशशतमयूखमालार्चित: सविता …”।।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – मकर संक्रांति को स्नान और दान का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थों एवं पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है, साथ ही तिल, गुड़, खिचड़ी, फल एवं द्रव्य दक्षिणा दान करने पर अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किए गए जप-दान-पूजन से भगवान भुवन भास्कर प्रसन्न होते हैं। हमारा देश त्योहारों का देश है, इसलिए यहां पर प्रत्येक दिन कोई ना कोई पर्व-उत्सव अवश्य मनाया जाता है। भारत में प्रमुख रूप से और हर्षोल्लास से मनाया जाने वाले त्योहारों में से एक मकर सक्रांति भी है जिसको भारत के प्रत्येक राज्य में एक अलग नाम और संस्कृति के साथ मनाया जाता है। इन्हीं त्योहारों के कारण भारत के लोगों में विभिन्नताएं होते हुए भी यहां पर एकता देखने को मिलती है। लंबे समय से कहा जाता रहा है कि भारत विविधताओं से भरा देश है। जब भी यहाँ की विविधता की बात होती है, तब उसकी एकता का भी उल्लेख होता है। ऐसे में भारतवर्ष के बारे में कहा जाता है – ‘अनेकता में एकता’। देश में कई ऐसे त्योहार हैं जिन्हें एक ही समय पर कई राज्यों में एक साथ मनाया जाता है। यह त्योहार सम्पूर्ण भारतवर्ष के साथ-साथ नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि देशों में भी मनाया जाता है। इसलिए त्योहार हमेशा लोगों को जोड़ने का काम करते हैं …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – मकर संक्रान्ति सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। सूर्य, राशियाँ और संक्रांति का अर्थ है – समस्त संसार की आत्मा, यानी संसार जिससे संचालित है, वे सूर्य हैं। भगवान सूर्य ब्रह्मांड के निर्माता, संचालक, व्यवस्थापक, पालक एवं पोषक और आकाश में निरंतर रमण करने वाले हैं। संसार की उत्पत्ति का कारण सूर्य हैं। मनुस्मृति कहती है – “आदित्याज्जायते वृष्टिर्वृष्टेरन्नं तत: प्रजा: …”।। यानी, सूर्यदेव से वर्षा होती है, उस वर्षा से अन्न एवं अन्न से ही मनुष्य का अस्तित्व बना रहता है। समस्त संसार की आत्मा यानी संसार जिससे संचालित है, वे भगवान सूर्य हैं। ऋग्वेद में सूर्य को ‘विश्वात्मा’ कहा गया है – “सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च …”। जगत् में व्याप्त समस्त जड़-चेतन वस्तुओं की आत्मा सूर्यदेव हैं। सूर्य संपूर्ण ब्रह्मांड में समय का निर्धारण करते हैं। काल की सबसे छोटी इकाई ‘त्रुटि’ से लेकर सबसे बड़ी इकाई ‘प्रलय’ तक की गणना सूर्य की गति से ही संभव है। अत: हर प्रतिदिन सूर्योदय व सूर्यास्त से किसी न किसी पर्व या घटना का संबंध जुड़ा होता है …।
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