पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – काल का प्रत्येक क्षण शुभता-समाहित अत्यंत सामर्थ्य-सम्पन्न एवं ऊर्जा-आपुरित है। अतः समय का सदुपयोग हो, वर्तमान में जीएँ और स्वभाव में रहें, यही जीवन के उन्नयन और उत्थान की दिशा में सहज स्वाभाविक साधन हैं ..! काल का प्रत्येक क्षण अपने आप में नूतन तथा पूर्ण होता है। आत्म-अनुशासन आपके समय को अच्छी तरह से प्रबंधित करने की कुंजी है। जीवन के क्षण सामान्य नहीं है। उसके मूल्य का पता तब चलेगा, जब जीवन जा चुका होगा। उस समय एक क्षण भी अधिक नहीं ले पाओंगे। इसलिए जीवन में प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करें। जीवन का प्रत्येक क्षण मृत्यु की तरफ बढ़ रहा है। आपने मृत्यु से पहले की क्या तैयारी की है? जीने की कला की तरह मरने की कला भी हमें आनी चाहिए। रामायण हमें जीना सिखाती है और भागवत हमें मरना सिखाती है। जिसने मृत्यु को स्वीकार कर लिया, उसका जीवन बड़ा सुखद और आनंदमय हो जाएगा। उसे जीने की कला आ जायेगी, जीवन के पल-पल को जीयेगा वो, एक पल भी व्यर्थ नही जाने देगा। हर व्यक्ति जानता है कि उसे एक दिन मरना है, लेकिन जानने और मानने में अंतर होता है। हर दिन को ही आखिरी दिन की तरह जीएं जिससे गलतियां कम हो, क्योंकि मृत्यु ही एक ऐसा भय है जिससे लोग कर्मो के प्रति सजग होते हैं। और, इस भाव के साथ जीना आपको आनंद से जीने की कला भी सिखाएगा, क्योंकि आप जीवन को पूर्ण रूप से जीयेगें। ये मृत्यु ही हमें जीवन का महत्व समझाती है। जो आत्मानुशासन में रहता है, जो आत्मज्ञानी है वो बस यही चाहता है कि मृत्यु जीवन की तरह कठिन न हो वो जब भी आये उसका पूरा स्वागत होना चाहिए, क्योंकि मृत्यु एक नई यात्रा की प्रारम्भिक अवस्था है ..।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – मृत्यु ज़िन्दगी का एक मात्र अटल शाश्वत सत्य है, जो किसी भी कीमत पर नहीं बदलता। यह राजा, रंक, फकीर सभी के जीवन में आना ही है। हम हर पल मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं। तो प्रश्न यह है कि मृत्यु को सुखद अथवा सुन्दर कैसे बनाया जाये? इसका उत्तर है कि हमें निष्काम भाव से अपना कर्म करना चाहिये। ईश्वर की आराधना में अपना समय बिताना चाहिये। दुनिया के माया मोह के जाल से स्वयं को दूर हटाकर अपना ध्यान सत्कर्मों में लगाना चाहिये। नीतिशास्त्रों में कहा गया है कि हमारा प्रत्येक क्षण किसी न किसी सत्कार्य में व्यस्त रहना चाहिए। मन ही मुक्ति एवं बंधन का कारण है। कोई काम न हो, तो स्वाध्याय करने में व्यस्त रहना चाहिए। भगवन्नाम स्मरण व जप के द्वारा मन को एकाग्र किया जा सकता है। मन से विषय भोग अथवा बाहरी विचारों काे निकाल फेंकने वाला ही स्थित प्रज्ञ है। ऐसा ही व्यक्ति भगवान को प्रिय होता है। अपने क्रम से संतुष्ट नहीं रहने वाला व्यक्ति बीमार के समान है। जो स्वयं को संतुष्ट तथा आनन्दित नहीं रह सकता, वह दूसरों को भला क्या आनन्द देगा? मानव मन की विचित्रता है कि वह दु:ख से डरता भी है लेकिन उसे निमंत्रण भी स्वयं ही देता है। जो मोक्ष मार्गी होते हैं वह किसी भी प्राणी को दु:ख आदि नहीं पहुंचाते। सकारात्मक सोच दुःख को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है। अतः सकारात्मक, प्रेरक और आध्यात्मिक विचार हमारे दृष्टिकोण को बदलते हैं और शांति, खुशी और प्रचुरता की भावनाओं को अनुदान देते हैं …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – मानव के लिए जीवन का प्रत्येक क्षण ईश्वर की एक अनुपम भेंट है। संसार में जितने भी श्रेष्ठतम व्यक्ति हुए हैं, उन्होंने निष्ठा पूर्वक समय की साधना करके ही उपलब्धियाँ, विभूतियाँ अर्जित की हैं, परमानन्द को ब्रह्मानन्द को पाया है। मनुष्य के जीवन में समय की महत्वपूर्ण भूमिका है। वह व्यक्ति जो समय के महत्व को समझता है वही इसका सही उपयोग कर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है। परंतु दूसरी तरफ वे लोग जो समय की महत्ता की अनदेखी करते हैं अथवा समय का दुरुपयोग करते हैं वे जीवन पर्यन्त असफलता ही पाते हैं। प्रतिस्पर्धा के इस आधुनिक युग में तो समय की महत्ता और भी बढ़ गई है। आज समय गँवाने का अर्थ है – प्रगति की राह में स्वयं को पीछे धकेलना। हमारा प्रत्येक क्षण महत्वपूर्ण है, महनीय है; क्योंकि जो पल एक बार गुजर जाते हैं वे कभी भी वापस नहीं लौटते। सफलता के लिए यदि व्यक्ति समय रहते प्रयास नहीं करता है तो वह जीवन पर्यन्त ठोकरें खाता रहता है और उसकी सफलता मृगतृष्णा की भांति उससे मीलों दूर रहती है। अत: यह आवश्यक है कि यदि संसार में हम एक अच्छा और सफल जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो हम समय के महत्व को समझें और हर क्षण को उसकी पूर्णता के साथ जीएँ ..!
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