पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सन्त सत्पुरुषों के सान्निध्य में सदग्रन्थों के पठन-पाठन, भगवान के गुणानुवादों के नित्य श्रवण एवं ज्ञान-भक्ति विषयक परिचर्चाओं द्वारा साधक में अज्ञान की निवृत्ति एवं दिव्य दैवीय संभावनाओं का प्रस्फुटन होता है। अतः सत्संग ही जीवन की सिद्धि का मूल है ..! सत्संग ही जीवन का वास्तविक आनंद है। साधु-महात्माओं का संग व नित्य सत्संग करने से जीवन को सही दिशा मिलती है व परम आनंद की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार एक जलते हुए दीपक से हजारों दीपक प्रज्वलित किये जा सकते हैं, उसी प्रकार मनुष्य सत्संग में आकर अपने अंदर के ज्ञान रूपी दीपक को प्रज्वलित कर सकता है। इस ज्ञान रूपी दीपक के प्रकाश से वो संसार को भी ज्ञानवान कर सकता है। सत्संग में अमृत की वर्षा होती है। जन्म-मरण रूपी रोगों का निवारण सद्गुरु की दी गई ज्ञान रूपी औषधियों से होता है। सत्संग ही जीवन की सभी समस्याओं का एकमात्र निदान है। सत्संग जीवन का रस है, विचारों का अमृत तथा जीवन का आनंद है। परमानंद की प्राप्ति के लिए सत्संग के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है। प्रभु का नाम-स्मरण तथा कीर्तन से महान आध्यात्मिक शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। जैसे प्रकाश के होते ही एक क्षण अधंकार नहीं रह सकता, उसी तरह जहां भगवान की कथा व सत्संग होगा वहां कष्ट तथा दु:ख क्षण भर नहीं रह सकते है। सत्संग के होने से ही ज्ञान का प्रकाश पुंज प्रकट होता है और बिना ज्ञान व सत्संग के भक्ति नही हो सकती तथा बिना भक्ति के मनुष्य जीवन को मुक्ति नही मिल सकती है। जीवन मुक्ति का उत्तम माध्यम है – ईश्वर भक्ति। अतः ईश्वर भक्ति बिना सत्संग के संभव नही है। जो सच्चे हृदय से तथा स्वच्छ मन से ईश्वर के चरणों में अपने को समर्पित कर केवल उन्हीं को भजता है, ईश्वर ऐसे भक्तों का लोक-परलोक दोनों को तार देते हैं और उन्हें अपना परमपद की प्राप्ति कराते हैं …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने सत्संग के विभिन्न प्रकारों का विश्लेषण करते हुए कहा कि हर मनुष्य को सत्संग का लाभ अवश्य लेना चाहिए। सत्संग के लाभ से ही मनुष्य अपने जीवन के महत्व व उद्देश्यों को जान पाता है। जो संत-सत्पुरुषों के चरणों में बैठ कर सत्संग के माध्यम से परमात्मा के चरित्रों का श्रवण करता है, वो समय सबसे महत्वपूर्ण होता है। जीवन के उन क्षणों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, जिनमें सत्संग होता है। आज के युग में केवल सत्संग ही मनुष्य को अज्ञान रूपी अंधकार से निकालकर, सत्कर्म रूपी प्रकाश की ओर ले जा सकता है। इसके लिए सतगुरु की शरण अति आवश्यक है। जीवन में ज्ञान का प्रकाश पाने के लिए सच्चे गुरु की भक्ति की आवश्यकता है। सतगुरु हमारे हर कदम, हर मुश्किल राह को सरल बना देते हैं। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा कि किसी भी विकट परिस्थिति में सेवा, सुमिरन व सत्संग मनुष्य की ढाल बनकर काम आते हैं। प्रभु को जानना, पहचानना और मानना बहुत आवश्यक है। भगवान का कोई रूप रंग नहीं होता। भक्त उन्हें जिस रूप में और जैसे भी पुकारता है वह उसी रूप में प्रकट हो जाते हैं। भगवान सब पर बिना किसी भेदभाव के कृपा करते हैं। सतगुरु साकार होते हुए भी निराकार हैं। परमपिता परमात्मा ही वह परम सत्य है, जिसे जानने के बाद सभी प्रकार के भ्रम-भय मिट जाते हैं। और, किसी भी प्रकार का संशय जीवन में नहीं रहता। ब्रह्म की प्राप्ति, भ्रम की समाप्ति है। मात्र देखने से कोई लाभ नहीं होता, जब तक हम उस वस्तु का पा ना लें। हमें निरंतर उस प्रभु को पाने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि हम प्रभु को पाने का प्रयास नहीं करेंगे, तो हमारा जीवन भी प्रभु भक्ति का लाभ नहीं उठा पाएगा। क्योंकि, प्रभु स्वयं निरंकार रूप में हमारे साथ होते हैं। अतः मानव को हर समय उस निरंकार रूप में सतगुरु की पावन उपस्थिति अनुभूत करनी चाहिए …।
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