पूज्य सद्गुरुदेव अवधेशानंद जी महाराज आशिषवचनम्

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
          ।। श्री: कृपा ।।
🌿 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – मानवीय चेतना के उद्धार, संशयोन्मूलन और अज्ञान की निवृत्ति में सहायक है – श्रीमद्भगवत गीता ! गीता के बिना हर मनुष्य का जीवन अधूरा है। गीता न केवल अर्जुन के लिए थी, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को माध्यम बनाकर पूरे विश्व को कर्तव्यनिष्ठा का ज्ञान देने की प्रेरणा दी। वर्तमान में भय, शोक, अशांति, असुरक्षा आदि का समाधान गीता है। गीता का जितना प्रसार होगा, उतनी ही मनुष्य जाति के अंदर शांति होगी, जब मनुष्य शांत होगा तो प्रकृति का सौंदर्य बढ़ेगा, हर जीव आनंदमय होगा, गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो प्रेरणादायक है। हर मनुष्य को श्रीमद्भगवत गीता के अध्ययन के साथ-साथ इसे अंदर उतारने की आवश्यकता है। जीवन का आनंद लेने के लिए हमें अपना आचरण शुद्ध करना होगा। यदि हमारा आचरण शुद्ध होगा तो जीवन भी आनंदमय हो जाएगा। ज्ञान की शुद्धता के बिना कभी भी कोई भी कार्य सफल नही हो सकता। भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को मन की शुद्धता का ज्ञान देते हुए कर्म करने की प्रेरणा दी। गीता संपूर्ण जीवन का दर्शन है। गीता ऐसा ग्रंथ है जो जीवन की सभी समस्याओं के हल करने का एक माध्यम है। हम सब यहां पर यात्री हैं। अतः यह यात्रा कुछ बनाने की है, अवकाश लेने की नहीं। यदि मनुष्य अवकाश में शांति चाहता है तो वह कभी भी सफलता नहीं पा सकता …।
🌿 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – गीता केवल अध्ययन के लिए ग्रंथ ही नहीं है; यह तो भगवान श्री कृष्ण की वाणी है। इसमें मानव को उतरना पड़ता है। गीता तो मानव जीवन का वास्तविक सार है। गीता का ज्ञान किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए है। तनाव-मुक्ति के उपाय ही गीता का परम सन्देश है। आज विश्व में चारों तरफ आतंक का माहौल है, भाईचारा खत्म होने के स्थिति पर है, ऐसे में केवल एक ही शांति का संदेश है, वह है – भगवद्गीता। भगवदगीता दुनिया के सभी नकारात्मक विचारों को सकारात्मक करने का एक पवित्र ग्रंथ है। इस ग्रंथ को अपनाने के बाद मनुष्य अपने अंदर आत्म-विश्वास, श्रद्धा और भाईचारे की ओर बढ़ता है। गीता मनुष्य को उसका धर्म बताती है। धर्म का अर्थ है – समाज में उसकी भूमिका किस प्रकार की हो। इस धर्म का पालन करते हुए मनुष्य आगे बढ़े तो व्यक्ति कभी दु:खी नहीं होगा। गीता परमानन्द की राह दिखाती है। जन्म-मरण से मुक्ति दिलाता है, यह ग्रंथ। गीता का उपदेश मनुष्य को जीवनशैली सिखाने का रास्ता बताता है। वर्तमान में मनुष्य चांद और मंगल पर जा रहा है, परंतु अंदर की शांति से अनभिज्ञ हो रहा है। गीता को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जहाँ वेद भारत की संस्कृति के प्राण हैं, वहीं सभी उपनिषदों का सार गीता है। गीता को धारण करना ही सच्ची शांति है। अतः हमें यह प्रयत्न करनी चाहिए कि हम भगवान श्रीकृष्ण के दिखाए हुए मार्ग पर चलकर अपनी व्यक्तिगत शांति के साथ-साथ लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनें …।
**********
 
 
 

Comments are closed.