पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सदगुरुदेव” जी ने कहा – वेदनाएं, विषमताएं और प्रतिकूलताएँ न केवल कष्ट देने वाले साधन हैं, वरन् हमारी आत्म-सामर्थ्य, भगवदीय प्रार्थनाओं के साथ-साथ ईश्वरीय अनुग्रह को अनुभव कराने वाले साधन भी हैं। अतः जो कुछ भी हमारे आसपास घटित हो रहा है, वह परोक्ष और अपरोक्ष रूप से कल्याणकारी ही है ..! जीवन का सत्य अत्यन्त रहस्यमयी है। हम सोचते हैं, ईश्वर हमें दु:ख दे रहा है, हमने ऎसा क्या किया है जो हमें दु:ख मिल रहा है। हमने किसी का दिल दुखाया है? कोई घोर अपराध किया है? हम अच्छे कर्म करने के बाद भी दुष्टात्माओं की तुलना मे अधिक दुखी है। क्या है ये ईश्वर का न्याय? जब मन का प्रकोप शान्त हो, नकारात्मक ऊर्जाएं धीमी पड़ जायें, तर्क-वितर्क करने की क्षमता क्षीण पड़ जाऎ, तब गुण रहस्य समझ आता है कि ईश्वर हम से कितना प्रेम करता है, मुश्किल है उसके प्रेम को अनुभूत करना। दु:ख ही हमें ईश्वर के करीब ले कर आते हैं। दु:ख ही हमें हमारे असली स्वरुप का भान कराते हैं। सुख और दु:ख से परे भी एक स्थिति या अवस्था है, जिसे आनंद कह सकते हैं। आनंद परमानंद और प्रकृति के साह्चर्य की निशानी है। आनंद का स्रोत, हमारे मन की पवित्र अवस्थाओं में और प्रकृति के अस्तित्व में छिपा है। आनंद को पाने के लिए हमें धन, दौलत, साधन, सुविधा, स्वामित्व या किसी पद की आवश्यकता नहीं है। कोई सुख छीन कर दुखी कर सकता है, लेकिन आपके आनंद का स्रोत कोई नहीं छीन सकता। इसलिए सुख को पाने और दु:ख से छुटकारा पाने की लालसा को त्यागकर आनंद के उस स्रोत को खोजना है, जो हमारे भीतर ही विद्यमान है …।
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