पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – परमार्थ, सतत भगवद-स्मृति और शुभ-संकल्प ही आनंद साम्राज्य की कुंजियां हैं ..! भारतीय सांस्कृतिक के अनुसार व्यक्ति का दृष्टिकोण ऊँचा रहना चाहिए। हमारे यहाँ अन्तरात्मा को प्रधानता दी गई है। हिन्दू तत्त्वदर्शियों ने संसार की व्यवहार वस्तुओं और व्यक्तिगत जीवन-यापन के ढँग और मूलभूत सिद्धांतों में परमार्थिक दृष्टिकोण से विचार किया है। क्षुद्र सांसारिक सुखोपभोग से ऊँचा उठकर, वासनामय इन्द्रिय सम्बन्धी साधारण सुखों से ऊपर उठ आत्म-भाव विकसित कर परमार्थिक रूप से जीवन-यापन को प्रधानता दी गई है। नैतिकता की रक्षा को दृष्टि में रखकर हमारे यहाँ मान्यताएँ निर्धारित की गई है। भारतीय संस्कृति कहती है / ”हे मनुष्यों ! अपने हृदय में विश्व-प्रेम की ज्योति प्रज्वलित कर दो। सबसे प्रेम करो अपनी भुजाएँ पसार कर प्राणिमात्र को प्रेम के पाश में बाँध लो। विश्व के कण-कण को अपने प्रेम की सरिता से सींच दो। विश्व प्रेम वह रहस्यमय दिव्य रस है, जो एक हृदय से दूसरे को जोड़ता है। यह एक अलौकिक शक्ति सम्पन्न जादू भरा मरहम है, जिसे लगाते ही सबके रोग दूर हो जाते हैं। जीना आदर्श और उद्देश्य के लिये जीना है। जब तक जीयो विश्व-हित के लिए जीयो। अपने पिता की सम्पत्ति को सम्हालो। यह सब आपके पिता की है। सबको अपना समझो और अपनी वस्तु की तरह विश्व की समस्त वस्तुओं को अपने प्रेम की छाया में रखो। इस प्रकार सबको आत्म-भाव और आत्म-दृष्टि से देखो, क्योंकि जीवन की उच्चता, धन्यता और सार्थकता इसी में समाहित है …।”
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