पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
स्वाध्याय। स्वाध्याय से जीवन को आदर्श बनाने की सत्प्रेरणा स्वतः मिलती है। स्वाध्याय हमारे चिंतन में सही विचारों का समावेश करके चरित्र-निर्माण करने में सहायक बनता है, साथ ही ईश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर भी कराता है। स्वाध्याय स्वर्ग का द्वार और मुक्ति का सोपान है। संसार में जितने भी महापुरुष, वैज्ञानिक, संत-महात्मा, ऋषि-महर्षि आदि हुए हैं, उन्होंने स्वाध्याय से ही प्रगति की है। स्वाध्याय का अर्थ – स्व का अध्ययन है। स्व का अध्ययन कराने में सबसे सहायक माध्यम हैं – सत्साहित्य एवं वेद-उपनिषद्, गीता, आर्ष-ग्रन्थ तथा महापुरुषों के जीवन-वृत्तान्तों का अध्ययन आदि …।
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ईश्वर के अस्तित्त्व को अनुभव करने के लिए अनुकूल परिस्थिति। सत्संग से प्राप्त अधिक सात्त्विकता साधना में सहायक होती है। हमारे आस-पास के राजसी एवं तामसी घटकों के आध्यात्मिक प्रदूषण के कारण ईश्वर तथा साधना के विषय में विचार करना भी कठिन हो जाता है। हो सकता है कि हम पिछले सप्ताह जीवन में हुए उतार-चढाव से त्रस्त अवस्था में सत्संग में पहुंचें, किन्तु सत्संग में आंतरिक पुनरुज्जीवन होता है तथा सत्संग की समाप्ति तक हम नव चैतन्ययुक्त स्थिति में आ जाते हैं…।
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