पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने महाशिवरात्रि पर्व के पूर्व संध्या पर हरिहर आश्रम, हरिद्वार में देश-विदेश के कोने-कोने से आए भक्तों को आशीर्वाद देते हुए कहा – “महाशिवरात्रि पर चारों पहर में पूजा-अर्चना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जगत पिता भगवान शिव के अनेक नाम और रूप हैं। वो आशुतोष हैं, महादेव हैं, नटराज हैं, महाकाल हैं और भक्तों के साधन चतुष्ट्य की सिद्धि के लिए वही भूतभावन भगवान शिव मृत्युजंय बनकर हरिहर आश्रम, हरिद्वार में विद्यमान हैं। ‘शिव’ का अर्थ है-कल्याणकारी ! जिन्होंने संसार के हित में कालकूट विष का पान कर लिया हो…। इस समष्टि में उनके जैसा उदार व परमार्थी भला और कौन होगा? शिव के शरीर पर राख है, वो जटाजूटधारी हैं, गले में सर्प, हड्डियों एवं नरमूंडों की माला है और भूत-प्रेत, पिशाच आदि भी इनके गण हैं। अर्थात्, संसार में जिनका सबने तिरस्कार कर दिया हो, भगवान शिव ने उन सबकॊ अपनाया और गले लगाया है। ये आशुतोष, औघड़दानी सभी के लिए सुलभ हैं, सुगम हैं और सरल हैं। देव हों या असुर सभी को बिना सोचे-समझे, सहज करुणा भाव से इच्छित वरदान प्रदान करते हैं। वो मंगलप्रदाता महाकाल स्वरूप भगवान महामृत्युंजय हम सभी का मंगल करें”।
पूज्य “आचार्यश्री जी” ने कहा कि शिवरात्रि सनातन धर्म का महान पर्व है।महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगलसूचक है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वह हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परम सुख, शान्ति, ऐश्वर्यादि प्रदान करते हैं। शिवरात्रि शिवत्व प्रदान करती है। पूरी धरती पर प्राकृतिक उत्सव चल रहा है। परमात्मा प्रकट होने को व्याकुल हैं। सारे देवता प्रकट होना चाहते हैं। पत्थर से बाहर आना चाहते हैं, किन्तु उसके लिए आपसे अपेक्षित है – श्रेष्ठता, पावित्र्य, उदारता जैसे सद्गुण। हम जितना विनम्र होंगे, प्रभु उतना ही हममें प्रकट होंगे। जब भक्ति जगती है तब औदार्य आता है। जो जितना उदार है, वो प्रभु के उतना ही निकट है। उत्सव उच्चता के प्रसव को कहते हैं, इस दिन प्रकृति पूरे आनंद में होती है, देवता भी प्रसन्न रहते हैं। प्रसन्नता का प्रसाद ही उत्सव है। पारदेश्वर महादेव उत्सवमूर्ति हैं। आज के दिन हर कण में ईश्वर के दर्शन करने चाहिए, तभी उत्सव का मंगल आशीर्वाद प्राप्त होता है…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – भगवान शिव अनादि और अनंत हैं। सृष्टि के विनाश और पुन:स्थापन के बीच की कड़ी हैं। महाशिव सम्पूर्ण विश्व की अभिव्यक्ति हैं। इस विश्व का हर कण ही शिव है। एक से अनेक होकर एक मात्र शिव ही इस विश्वरूप में क्रीड़ा कर रहे हैं। शास्त्रों के अनुसार शिव को महादेव इसलिए कहा गया है कि वे देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, किन्नर, गंधर्व, पशु-पक्षी व समस्त वनस्पति जगत के भी स्वामी हैं। शिव का एक अर्थ कल्याणकारी भी है। शिव की अराधना से संपूर्ण सृष्टि में अनुशासन, समन्वय और प्रेम भक्ति का संचार होने लगता है। इसीलिए, स्तुति गान कहता है – हे! देव, मैं आपकी अनंत शक्ति को भला कैसे समझ सकता हूँ? हे शिव ! आप जिस रूप में भी हों उसी रूप को आपको मेरा प्रणाम। शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है। शिवरात्रि जीव को शिव बनने की निमन्त्रण की रात्रि है। महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात उपस्थित रहता है। इस दिन शिवजी की उपासना और पूजा करने से वे शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव का रूद्र रूप प्रकट हुआ था। पौराणिक कथा है कि एक बार माँ पार्वतीजी ने परमात्मा शिवजी से पूछा कि ‘ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’ तब, उत्तर में शिवजी ने माँ पार्वती जी को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का उपाय बताया…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – भगवान शिव के नाम का उच्चारण करने से ही दु:खों का निवारण हो जाता है। हमें भगवान शिव के प्रति अटूट आस्था और विश्वास रखना चाहिये। देवों के देव भगवान महादेव सृष्टि के प्रकट देव हैं, जो भक्तों की सूक्ष्म अराधना से, श्रद्धाभाव से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव का नाम लेते ही सभी दुःखों का नाश होता है। विश्व कल्याण की बात रखते हुए पूज्यश्री जी ने कहा कि भगवान शिव के नाम से ही विश्व का कल्याण संभव है। हमें महाशिवरात्रि पर्व की महत्ता को समझना होगा। शिवरात्रि का अर्थ – वह रात्रि है, जिसका शिवतत्व के साथ घनिष्ठ संबंध है। भगवान भोलेनाथ की अतिप्रिय रात्रि को ही शिवरात्रि कहा गया है। शिवार्चन एवं जागरण ही इस व्रत की विशेषता है। इसमें रात्रि भर जागरण एवं शिवाभिषेक का विधान है। जो भक्त शिवरात्रि को दिन-रात मौन में रहकर अधिकांश समय जप करते हैं एवं जितेंद्रिय होकर अपनी पूर्ण शक्ति व सामर्थ्य द्वारा निश्चल भाव से भगवान आशुतोष की यथोचित पूजा-अर्चन करते हैं, उन्हें वर्षपर्यन्त भगवान महादेव के पूजन का संपूर्ण फल प्राप्त होता है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – हरिद्वार में त्रिदेव वास करते हैं, लेकिन मोक्ष की इस नगरी में ही एक शक्तिपीठ भी है जो माँ सती के त्याग का गवाह है। यह शक्तिपीठ माँ सती के शिव के प्रति प्रेम का भी साक्षी है। हरिद्वार का माया देवी शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां माँ सती की नाभि गिरी थी। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11वीं शताब्दी से उपलब्ध है। मायापुरी की माया निराली है। यहां पग-पग पर सनातन धर्म के अनुयायी देखे जा सकते हैं। ऐतिहासिक मठ-मंदिरों के गढ़ मायापुरी में सब कुछ अद्भुत है। हरिहर आश्रम के प्रवेश द्वार के नजदीक ही रुद्राक्ष का विशालकाय वृक्ष है। आश्रम में प्रवेश करने वाला हर श्रद्धालु इस वृक्ष की परिक्रमा कर पूजा करता है। करीब 35-40 फीट ऊंचा यह रुद्राक्ष का वृक्ष की उत्पत्ति एक सौ दस साल पहले की मानी जाती है। आश्रम के पीठाधीश्वर व जूनाअखाड़े के आचार्यमहामंडलेश्वर पूज्य गुरुदेव बताते हैं कि एक सौ दस साल पहले आश्रम के तत्कालीन आचार्य नेपाल गए थे और वहीं से रुद्राक्ष का पौधा लाए थे, जिसे हरिहर आश्रम के परिसर में रोपा गया। धीरे-धीरे वृक्ष वृहद रूप लेने लगा और आज विशालकाय हो चुका है। वृक्ष के रुद्राक्ष के फल तोड़ना निषिद्ध किया गया है। जो फल पकने के बाद स्वयं नीचे गिरते हैं, उन्हें एकत्र कर पूजा-अर्चना की जाती है। वृक्ष के चारों ओर रक्तवर्णी ध्वज स्थापित किए गए हैं। विशालकाय इस रुद्राक्ष वृक्ष के पत्ते सूखने पर भगवा रंग धारण कर लेते हैं। इस ऐतिहासिक रुद्राक्ष वृक्ष के दर्शन को देश भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि के पर्व पर श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हो जाती है, महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर श्रृद्धालु इस विशालकाय रुद्राक्ष के वृक्ष की परिक्रमा कर आशीष ले रहे हैं …।
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