पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – श्रद्धा, आत्मविश्वास और संकल्प की दृढ़ता ऐसी दिव्य चमत्कृत कुंजियाँ हैं; जो जीवन की अप्रतिम सम्भावनाओं को जगाकर असंभव को सम्भव एवं असाध्य को साध्य बनाकर प्रगति के नवद्वार खोलने में सहायक हैं…! श्रद्धा और विश्वास पूर्वक किए गए सत्कर्म फलीभूत होते हैं और मन को सहज शांति समाधान प्रदान करते हैं। श्रद्धा उत्पन्न होते ही मन संसार के गोरखधंधो से हटने लगता है। जब हमारे पास श्रद्धा आती है, तो वह हमें सक्षम बनाती है। अपने श्रद्धा भाव से हम गुरु के पास जो गुरुत्व है, साधु के पास जो साधुत्व है, संन्यासी के पास जो संन्यास तत्व है, गंगा के पास जो गंगत्व है, देवताओं के पास जो देवत्व है और भगवान के पास जो भगवत्ता है, उसके हम स्वाभाविक रूप से अधिकारी बन जाते हैं। श्रद्धावान व्यक्ति स्वाभाविक रूप से योग्यता रखता है, क्योंकि उसके पास तर्क नहीं होते। “श्रद्धावान लभते ज्ञानम्…” जब आप श्रद्धा के साथ कुछ प्राप्ति के लिए जाते हैं, तो भले ही किसी में ज्यादा देने का सामर्थ्य न हो, तब भी आप कुछ लेकर ही लौटेंगे। श्रद्धा के बल पर ही पंगु पर्वत लांघने का साहस कर जाता है। यह हमारी श्रद्धा ही है जो हमें ज्ञानवान बनाती है। श्रद्धा के बल पर ही बालक नचिकेता ने सब कुछ प्राप्त कर लिया। अगर हमारे पास निवेश के लिए श्रद्धा की पूंजी है, तो हम संसार की अलभ्य वस्तु भी प्राप्त कर सकते हैं। श्रद्धा और विश्वास से मार्ग की सारी मुश्किलें स्वमेव ही समाप्त हो जाती हैं। श्रद्धा एक रसायन है, जो उससे लिप्त होते हैं, वे धीरे-धीरे शुद्ध होते हैं। अतः भक्ति आत्मा का स्नान है, जो जितना इसमें डूबता है वो उतना ही निखरता है…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – बड़े कार्य करने के लिए आत्मविश्वास पहली अनिवार्यता है। आत्मविश्वास के साथ आप गगन चूम सकते हैं, और आत्मविश्वास के बिना मामूली सी उपलब्धियां भी आपकी पकड़ से परे है। अहम फैसले लेते समय हमारी सोच सकारात्मक हो, तभी रास्ता निकलेगा, जो जीवन में लक्ष्य और उपलब्धियां हासिल करने में मददगार होगा। जीवन में हर मनुष्य को निश्चित स्थान पर पहुंचने के लिए अपना लक्ष्य तय करना चाहिए। उसे पाने के लिए गंभीर और सकारात्मक चिंतन जरूरी है, जो बिना आत्मविश्वास के संभव नहीं है। व्यक्ति जब तक स्वयं पर विश्वास नहीं रखता है, वह आगे नहीं बढ़ सकता। जो व्यक्ति छोटे से छोटा काम भी आत्मविश्वास से करता है, उसकी सफलता निश्चित है। आत्मविश्वास ही सफलता की चाबी है। विश्वास जितना गहरा होगा, प्रभाव भी उतना ही गहरा होगा। हमेशा प्रसन्न रहें। प्रसन्नता एक बहुत बड़ा फैक्टर है, जो सफलता में स्थायी योगदान देती है। कार्य का कितना ही दबाव हो प्रसन्नता न छोड़ें, क्योंकि प्रसन्नता अपने साथ शुभता लेकर आती है। इसलिये घटाना है तो तनाव घटाइए…।
पूज्य आचार्यश्री जी ने कहा – किसी पहाड़ की चोटी पर एक विशाल पाषण शिला रखी थी, शिला पर लिखा था – “उत्थान कठिन हैं, पतन सरल हैं”। व्यक्ति को अपने उत्थान के लिए जितने भी कार्य करने पड़ते हैं वो सब कठिन हैं। उन कार्यों को करने के लिए बहुत कष्ट सहना पड़ता हैं, कई बाधाएँ पार करनी पडती हैं, कई प्रकार के लालच जीवन में आते हैं और इन सब को जीत कर ही मनुष्य महान बनता है। उत्थान के शिखर पर पहुँचता है लाखो करोड़ों में कोई एक विवेकानंन्द होता है। किसी सुंदरी के रूप और यौवन के आकर्षण में आकर काम के वेग में बहना अति सरल और आनंद देने वाला होता है; पर, करोड़ों में कोई एक ऐसा भी होता है जो अपने लक्ष्य के आगे इस प्रस्ताव को ठोकर मार दे और वही भीष्म कहलाता है। हमारे इतिहास धर्म जितने भी महापुरुष व अवतार हुए उन्होंने अपने कर्मो द्वारा हमें यही ज्ञान दिया है। पूज्य आचार्यश्री जी कहा करते हैं कि सकारात्मक सोच ही सफलता की जननी है। संसार में कोई भी ऐसी समस्या नहीं है जो आपके मन की शक्ति से अधिक शक्तिशाली हो। अपने भीतर संकल्पशक्ति का विकास करें। सफलता एवं उन्नति का आधार संकल्प शक्ति है। “बारिश की बूँदें भले ही छोटी हों, लेकिन उनका लगातार बरसना बड़ी-बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है।” मंजिले कितनी भी कठिन या ऊँची क्यों न हो, उन तक पहुँचने के रास्ते पैरों के नीचे से ही गुजरते है।” अपने उद्देश्य में ईमानदारी से लगे रहना ही सफलता का रहस्य है। “दीपक बोलता नहीं है, उसका प्रकाश परिचय देता है”। ठीक उसी प्रकार, आप अपने बारे में कुछ न बोलें, अच्छे कर्म करते रहे, वही आपका परिचय देंगे…!
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