पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – मनुष्य जीवन स्वयं के संकल्प का विस्तार है। परमात्मा की अनन्त शक्तियाँ एवं अतुल्य सामर्थ्य स्वयं में समाहित हैं। अतः स्वयं की निजता बोध का अर्थ है – परम-आनन्द और परम-ऐश्वर्य का अवबोध..! उन्नति की आकाँक्षा रखना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है, उसे आगे बढ़ना भी चाहिये, पर यह तभी संभव है जब मनुष्य का संकल्प बल जागृत हो। जो लोग अपने को दीन, हीन, असफल और पराभूत समझते हों, संकल्प उनके लिये अमोघ अस्त्र है। पुराणों में ऐसा वर्णन आता है कि स्वर्ग में एक कल्प-वृक्ष है जिसके पास जाने से कोई भी कामना अपूर्ण नहीं रहती है। ऐसा एक कल्पवृक्ष इस पृथ्वी में भी है और वह है – संकल्प का कल्पवृक्ष। जब किसी लक्ष्य की, ध्येय की, कामना की पूर्ति का हम संकल्प लेते हैं तो सजातीय विचारों, सुझावों की एक शृंखला दौड़ी हुई चली आती है और अपने लिए उपयुक्त मार्ग बनाना सुगम हो जाता है। बरसात का पानी उधर ही दौड़ता है जिधर गड्ढे होते हैं। अतः सफलता के लिए अपेक्षित परिस्थितियाँ ढूंढ़ने की शक्ति संकल्प में है…।
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