पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
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जीवन। जीवन को संवारने के लिए सतत् साधना एवं अनुशासन की जरूरत है। अनुशासन एक क्रिया है जो अपने शरीर, दिमाग और आत्मा को नियंत्रित करता है। हमारे जीवन मे ‘अनुशासन’ एक ऐसा गुण है, जिसकी आवश्यकता मानव जीवन में पग-पग पर पड़ती है। इसका प्रारम्भ जीवन में बचपन से ही होना चाहिये ओर यही से ही मानव के चरित्र का निर्माण होता है। अनुशासन शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है- अनु, शास्, अन,। विशेष रूप से अपने ऊपर शासन करना एवं शासन के अनुसार अपने जीवन को चलाना ही अनुशासन है। अनुशासन राष्ट्रीय जीवन का प्राण है। यदि प्रशासन, स्कूल समाज, परिवार सभी जगह सब लोग अनुशासन में रहेंगे और अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे, अपनी जिम्मेदारी समझेंगे तो कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी या अशांति नहीं होगी। नियम तोड़ने से ही अनुशासनहीनता बढ़ती है तथा समाज में अव्यवस्था पैदा होती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का महत्व है। अनुशासन से धैर्य और समझदारी का विकास होता है। समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। इससे कार्य क्षमता का विकास होता है तथा व्यक्ति में नेतृत्व की शक्ति जाग्रत होने लगती है। इसलिये हमें हरपल अनुशासनपूर्वक आगे बढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए। अतः मानव जीवन की सफलता का एक मात्र मंत्र है – अनुशासन…।
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