पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – कृतज्ञतापूर्वक प्रार्थना, विनयशीलता, प्रसादगुणधर्मिता और निस्वार्थ-भावना जीवन सिद्धि के श्रेष्ठतम-सहज उपाय हैं…! प्रार्थना हमारी संस्कृति के प्राण है। भारतीय संस्कृति मानव को ईश्वर की ओर उन्मुख होने का संदेश देती है। प्रार्थना ईश्वर और मानव के प्रति एकत्व का माध्यम है। प्रार्थना व्यक्ति के विचारों एवं इच्छाओं को सकारात्मक बनाकर निराशा एवं नकारात्मक भावों को नष्ट करती है। प्रार्थना व्यक्ति को आंतरिक संबल प्रदान करती है, उसे कर्म की ओर उद्यत करने हेतु आंतरिक बल , उत्साह और आशा प्रदान करती है। विभिन्न धर्मों की पूजा पद्धतियाँ भले ही अलग हों, किंतु प्रार्थना के अंतरस्वर एक ही होते हैं। विश्व के जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, सभी ने कहीं न कहीं ईश्वर से प्रार्थना द्वारा आंतरिक बल प्राप्त किया है…।
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