पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – धरा की उर्वरा, हिमालय-हरीतिमा, सरिताओं की सतत् प्रवाहमानता और प्रकृति के सकल सन्तुलन की सघन जागरूकता अपेक्षित है। अतः प्राकृतिक जीवन जीएँ…! स्वस्थ वातावरण के लिए वृक्षारोपण जरूरी है। धरा की उर्वरा शक्ति पेड़-पौधों पर ही निर्भर करती है। लेकिन हम संवेदनहीन बने हुए हैं। वृक्षारोपण करने से जहां धरा की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। वहीं प्रदूषण पर नियंत्रण रखना आसान होता है। प्रदूषण नियंत्रण व धरा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पौधारोपण करने के लिए सभी का सहयोग आवश्यक है। धरा अपने अभिराम आचरण से सृजन का माहात्म्य समझाती है और साथ ही पुरातन को सहेजना भी। परन्तु यह हम निर्भर पर करता है कि हमने इस वसु से कितना सीखा? अपनी अनेक संज्ञाओं; धरा, वसुधा, वंसुधरा से यह हमें अनजाने में ही बहुत कुछ सिखा जाती है। जीवन का हर तत्त्व इस पृथ्वी के सुरस सार से बना है पर हम यह बात बिसरा चुके हैं। अतिशय दोहन ने इसके सीने को छलनी कर दिया है, इसकी हरियाली खो गई है। समझ नहीं आता कि आखिर क्यों हम हमारा कर्तव्य नहीं निभाते? क्यों हम सोचते हैं कि राहत का हर प्रयास कोई और ही करेगा? हमारी हर परा-गाथा में इस धरा का उत्सर्ग, परिवर्तन और नर्तन समाया हुआ है। न जाने कितना चिंतन, कितना दर्शन? काश ! कि हम इस उदार, उर्वरा के वात्सल्य को समझ पाते…।
Related Posts
************
Comments are closed.