पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – श्रीमद्भागवत समाधानकारक-मोक्षदायक साक्षात् भगवदीय शब्द-विग्रह है; जहाँ जीवन की प्रत्येक पहेली का हल, प्रश्नों के उत्तर; शंका-समाधान समाहित है…! भागवत कथा से मन का शुध्दिकरण होता है। इससे संशय दूर होते हैं और शांति व मुक्ति मिलती है। हमारे आसपास कोई कष्ट है तो उसका उपाय भी भागवत शब्द का प्रकाशन करने वाला ग्रंथ है। भागवत का सीधा अर्थ – आत्म बोध है। भागवत कथा सत्य की गायत्री है जो जीव, जगत और जगन्नाथ के सत्य को उद्घाटित करती है। कथा से विचार में पवित्रता, बुद्धि में निर्भ्रान्तता, संकल्प में शुद्धता और दृष्टिकोण में परिवर्तन आती है। समग्र रूप से कथा परिवर्तन का कारक बनती है। भागवत कथा उपदेशात्मक है। हमें जन्म से ही अनन्तता अर्जित करने की जो सामर्थ प्राप्त है उसी से लाभान्वित हों, कथा हमें यह सिखाती है। कथा की सार्थकता तभी सिद्ध होती है जब इसे हम अपने जीवन में, व्यवहार में धारण कर निरंतर हरि स्मरण करते हुए अपने जीवन को आनंदमय, मंगलमय बनाकर अपना आत्म कल्याण करें; अन्यथा यह कथा केवल मनोरंजन, कानों के रस तक ही सीमित रह जाएगी। कथा मनोरंजन के लिए नही अपितु मनोमंथन के लिए है। कथा कानों में नही प्राणों में उतरनी चाहिए। साधना की पहली सीढ़ी श्रवण है। वह चीज़ जो दुःख देने वाली है जिससे अवसाद पैदा होता है वह सुनने से निकल जाएगी। परीक्षित ने सुना शुकदेव को, मृत्यु का उनका भय चला गया। गरूड़ ने कथा सुनी काग भुसुंडी जी से उनका भ्रम चला गया। माता पार्वती ने कथा सुनी परमात्मा शिव से जिसे सुनकर उन्हें अलग अनुभव हुआ। श्रीकृष्ण ने गीता अर्जुन को सुनाई तब उनका मोह नष्ट हो गया। सुनने की एक विधि है,अगर आप ठीक ढंग से सुने। सुनने के आप अधिकारी हैं , यदि सुनना आपको आ गया है तो आपको निरंतर लाभ मिलेगा….।
Related Posts
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – हमारे हर दुःख का मूल कारण आत्म विस्मृति है। हम कभी स्वयं को पहचान ही नहीं पाते। श्रवण साधना को हमारे शास्त्रों ने मूल साधन बताया है। आत्म कल्याण के लिए श्रवण एकमेव साधन है। अध्यात्म हमारे स्वभाव की परख, उपासना अपने निकट आने का माध्यम और ज्ञान हमें हमारे सत्य से मिलाने का माध्यम है। अध्यात्म विवेक को जाग्रत करता है, जो सहज स्फूर्त नैतिकता को संभव बनाता है और हम जीवन मूल्यों के स्रोत से जुड़ते हैं। इससे व्यक्तित्व में दैवीय गुणों का विकास होता है और एक विश्वसनीयता एवं प्रमाणिकता व्यक्तित्व में जन्म लेती है। साधना के लिये अंतःकरण की जागरूकता और पूरे समय का चौकन्नापन चाहिये। चेतना की प्रखरता, एकाग्रता, स्वयं के प्रति जागरूकता जीवन की पहली मांग है। आप स्वयं के प्रति सचेत हैं तो जीवन बहुत कुछ देने को तत्पर है। संसार ऊर्जा से भरा है। आनंद, ज्ञान एवं सकारात्मक ऊर्जा से भ्रम, भय, वेदना, दुविधाओं से मुक्ति मिलती है। मनुष्य का मुख्य लक्ष्य अनंतता अर्जित करना ही मनुजता को फलीभूत करना है। मनुष्य की रचनाधर्मिता से ईश्वर अभिव्यक्त होते है, लेकिन प्रमाद के कारण मनुष्य अपनी महत्ता व मूल्यों से अनभिज्ञ है। विवेक, विचार, आध्यात्मिक अभ्यास, वैराग्य सिर्फ मनुष्य को प्राप्त है। श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ है, जिसके श्रवण से हमें प्रेरणा मिलती है…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने अनेक पौराणिक आख्यानों, वेद-ऋचाओं की मिमांसा कर बहूउपयोगी प्रेरणा सूत्र दिए। उपदेश प्राचीन विधा है, मनन तभी होगा जब श्रवण हो। चेतना, प्रखरता, एकाग्रता एवं स्वयं के प्रति जागरूकता जीवन की पहली मांग है। चतुर, सुजान और गुणी वही है जिसने चित्त का स्थाई समाधान कर लिया है। मन नियंत्रित और संतुलित रहे यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। मन की मूढ़ता, बुद्धि के भ्रम, दैहिक प्रमाद पर कथा प्रहार करती है। कथा का ज्ञान, प्रकाश, माधुर्य इतना प्रभावी है कि अज्ञान तिमिर छट जाता है। मन की उससे ऊंची अवस्था और कोई हो ही नही सकती, जिसमें स्पष्टता और अभयता हो। बड़ा वह नही है जिसने कभी कोई भूल न की हो, अपितु बड़ा तो वह है जिसने भूल करके आत्म सुधार किया हो। प्रसन्नता ज्ञान सापेक्ष, विचार सापेक्ष, चिंतन सापेक्ष है। प्रसन्नता पदार्थ सापेक्ष, वस्तु सापेक्ष, भौतिकता सापेक्ष नही है। मनुष्य की दुर्गति का सबसे बडा कारण उसके ज्ञान वैराग्य का दूषित होना है। संबंधों की पवित्रता का आधार है – मिथ्यात्व। अतः मिथ्या बोझ से दूर रहें। व्यसन कभी भी उन्नतिकारक नही होते। धन्य वही हैं, जिन्होंने अपने मनोविकार जीत लिए हों। श्रीमद् भागवत मोक्षदायिनी है। इसके श्रवण से राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई और कलियुग में आज भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलते हैं। इस कथा को सुनने मात्र से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है। इस प्रकार सत्संग व कथा के माध्यम से जीव भगवान की शरण में पहुंचता है। अतः हम मनुष्य को श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए…।
**********************
Comments are closed.