गोरखनाथ मंदिर से नेपाल सीमा विवाद का रास्ता निकलने की उम्मीद

न्यूज़ डेस्क : नेपाल से सीमा विवाद के बीच रास्ता निकलने की उम्मीद गोरक्षपीठ व नाथ पंथ से जुड़ी है। गोरखनाथ मंदिर में नेपाल के राज परिवार और जनता की गहरी आस्था है। नेपाल और नाथ पंथ एक दूसरे में रचे बसे हैं। नेपाल के सत्ताधारी नेता भले ही चीन की भाषा बोलते हैं लेकिन नेपाल की जनता भारतवासियों से अच्छे संबंधों की पक्षधर है।

 

 

नेपाल की जनता गोरक्षपीठ को पूजती है। ऐसे में गोरक्षपीठाधीश्वर व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से नेपाल सरकार को चेतावनी का बड़ा मतलब निकाला जा रहा है। इसका दबाव नेपाली सरकार भी महसूस कर रही है। इसी लिहाज से प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को सामने आकर बयान देना पड़ा। दरअसल, गोरक्षपीठाधीश्वर ने कहा था कि अपनी राजनीतिक सीमा तय करने से पहले नेपाल को तिब्बत का हश्र याद रखना चाहिए।

 

गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी कहते हैं कि नेपाल से गोरक्षपीठ का संबंध सैकड़ों वर्ष पुराना है। नेपाल के राजा, रानी गोरखनाथ मंदिर आकर गुरु गोरक्षनाथ का दर्शन-पूजन कर चुके हैं। गोरखनाथ मंदिर के मेले में अब भी पहली खिचड़ी नेपाल के राजपरिवार की चढ़ती है।

 

दरअसल, भगवान गोरखनाथ ने नेपाल के राज परिवार को आशीर्वाद दिया था। इससे राजवंश फल-फूल रहा था। प्रगाढ़ रिश्ते का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गुरु गोरक्षनाथ की चरण पादुका को नेपाल के राज परिवार ने अपने राजमुकुट में जगह दी है। नेपाल के सिक्के पर गुरु गोरक्षनाथ (श्रीश्री गोरखनाथ) का नाम लिखा है। गुरु गोरक्षनाथ के गुरु मत्यसेंद्र नाथ के नाम पर उत्सव मनाया जाता है। अपने शौर्य और पराक्रम से देश, दुनिया में अपना नाम रोशन करने वाली गोरखा रेजिमेंट भी गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर गठित हुई थी। राज परिवार अब भी गुरु गोरक्षनाथ को अपना राजगुरु मानता है।

 

खिचड़ी मेला के दौरान पहली खिचड़ी नेपाल के राज परिवार की चढ़ती है। बड़ी संख्या में नेपाली श्रद्धालु गोरखनाथ आते हैं। खिचड़ी चढ़ाने के बाद पूजा-पाठ करके जाते हैं। राजनीति के जानकार कहते हैं कि इस वक्त यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। वही गोरक्षपीठाधीश्वर व नाथपंथ के प्रमुख महंत भी हैं।ऐसे में सीमा विवाद का रास्ता निकलने की उम्मीद जताई जा रही है। गोरक्षपीठाधीश्वर की हर बात को नेपाल की जनता गंभीरता से लेती है। मुख्यमंत्री की पहल पर ही अयोध्या से नेपाल के सीता माता के जन्म जनकपुरी तक बसा सेवा शुरू की गई।

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