न्यूज़ डेस्क : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे कोविड-19 महामारी के दौरान परिवारों को सौंपे गए बाल देखभाल संस्थानों के बच्चों को उनकी शिक्षा के लिए हर महीने दो-दो हजार रुपये दें।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बाल देखभाल केंद्रों में रहने वाले बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए राज्य सरकारों को जिला बाल संरक्षण इकाई से सिफारिश मिलने के 30 दिन के भीतर इन संस्थानों को किताबें और स्टेशनरी सहित बुनियादी सामग्री उपलब्ध करानी चाहिए।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों को पढ़ाने के लिए जरूरी संख्या में शिक्षक उपलब्ध कराए जाएं। पीठ को बताया गया कि कोविड-19 महामारी शुरू होते वक्त बाल देखभाल संस्थानों में 2,27,518 बच्चे थे और इनमें से 1,45,788 बच्चों को उनके माता-पिता या अभिभावकों को सौंपा जा चुका है।
पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें दो हजार रुपये प्रति माह प्रत्येक बच्चे की शिक्षा के लिए देंगी। यह धनराशि बच्चे के परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए जिला बाल संरक्षण इकाई की सिफारिश पर दी जाएगी। परिवारों को सौंपे गए बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए पीठ ने जिला बाल संरक्षण इकाईयों को निर्देश दिया कि वे इस मामले में समन्वय करें और इसमें प्रगति की निगरानी करें।
इन बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दी जाए
न्यायालय ने निर्देश दिया कि बाल संरक्षण इकाईयां बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों की सुविधाओं के मामले में प्रगति की जानकारी से जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को अवगत कराएंगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि शिक्षकों को इन बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि महामारी की वजह से मार्च से ही सामान्य जीवन प्रभावित हुआ है और बच्चों को कक्षा में आने का मौका नहीं मिला है।
बच्चों के संरक्षण के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिए
पीठ ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान देश के बाल सुधार गृहों और बाल देखभाल संस्थाओं में बच्चों की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लिए गए मामले में यह आदेश पारित किया। इससे पहले, न्यायालय ने इन बच्चों के संरक्षण के लिए राज्य सरकारों और दूसरे प्राधिकारियों को अनेक निर्देश दिए थे। इस मामले की वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने महामारी के दौरान बाल देखभाल संस्थानों में रह रहे बच्चों, और माता-पिता तथा अभिभावकों को सौंपे गए बच्चों की संख्या के बारे में पीठ को अवगत कराया।
गौरव अग्रवाल ने कहा कि बाल देखभाल संस्थानों की किशोर न्याय बोर्ड को सहायता करनी चाहिए और कोविड-19 के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए छात्रों के लिए शिक्षक उपलब्ध कराने चाहिए। उन्होंने कहा, ”हम उच्चतम न्यायालय से यह निर्देश चाहते हैं कि उन्हें बाल देखभाल गृहों में शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए और राज्य सरकार को इसके लिए बुनियादी संरचना और उपकरण मुहैया कराने चाहिए।” अग्रवाल ने कहा कि इन बाल देखभाल संस्थाओं में पिछले पांच महीने में बच्चों की शिक्षा में हुई प्रगति की जानकारी प्राप्त करने का काम शिक्षकों को सौपा जाए।
मेहता ने कहा, सुझावों पर कोई आपत्ति नहीं
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्याय मित्र के सुझावों पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून के एक प्रावधान का जिक्र करते हुए मेहता ने कहा, ‘‘हम बाल देखभाल गृहों के निरीक्षण की एक व्यवस्था बना रहे है। हम यह निर्देश चाहते हैं कि राज्य सरकारें इन देखभाल गृहों के निरीक्षण के काम में आयोग के साथ सहयोग करें।’’
इस पर पीठ ने मेहता से कहा कि बाल देखभाल गृहों में बच्चों के विकास और उनके कल्याण की गतिविधियों की निगरानी का काम आप क्यों नही करते? आप आयोग की ओर से राज्यों को निर्देश दे सकते हैं। पीठ ने मेहता से सवाल किया, आप क्या चाहते हैं? क्या हमें निर्देश देने चाहिए या आप उन्हें निर्देश देना चाहते हैं?
मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत से जारी निर्देशों का ज्यादा महत्व होगा और आयोग इन पर अमल सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठायेगा। पीठ ने कहा कि कानून का पालन सुनिश्चित करना बाल अधिकार आयोग का कर्तव्य है। पीठ ने कहा, ‘‘हम न्याय मित्र के सुझाव स्वीकार करेंगे और निर्देश जारी करेंगे, जिनका राज्यों के बाल देखभाल गृहों में पूरी ईमानदारी से पालन करना होगा।’’ पीठ ने कहा कि इन निर्देशों को राज्यों, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य आयोगों के माध्यम से लागू करना होगा।
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