महामारी अकेली समस्या नहीं थी, बल्कि इसने हमारे भीतर मौजूद सभी समस्याओं को सामने लाने के लिए उत्प्रेरक का काम किया: निर्देशक लार्स नॉरन
जर्मन फिल्म डिस्टेंज महामारी के दौरान बनाई गई एक ‘वक्त का दस्तावेज’ है। विनाशकारी महामारी के चलते पैदा हुए भय और अनिश्चितता से निर्देशक लार्स नॉरन को यह फिल्म बनाने की प्रेरणा मिली। गोवा में आयोजित 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में डिस्टेंज (डिस्टेंस) को ‘सिनेमा ऑफ द वर्ल्ड’ श्रेणी के तहत दिखाया गया। आज प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए निर्देशक लार्स नॉरन ने कहा, ‘मैंने अपने आसपास पैदा हुए डर और बदलाव के बीच मानवीय जरूरतों का पता लगाने की कोशिश की।’
यह फिल्म लास्जलो के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो महामारी के दौरान खुद को अलग कर लेता है। इस फिल्म को वैश्विक महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के बीच सिंगल अपार्टमेंट में शूट किया गया था। कलाकारों और क्रू को महामारी के चलते लगे प्रतिबंधों और सभी सामाजिक प्रोटोकॉल का पालन करना होता था। निर्देशक ने कहा, ‘स्वाभाविक भावनाओं को बाहर लाने के लिए, मैं चाहता था कि फिल्म जितना हो सके यथार्थ के करीब और प्रामाणिक दिखे। अभिनेताओं को ऐसे समय में मास्क पहनकर शूटिंग करनी पड़ी, जब मेरे साथी मास्क लगाकर लोगों की शूटिंग करने से हिचक रहे थे।’
हालांकि निर्देशक ने स्पष्ट कहा कि यह फिल्म महामारी पर नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अकेले महामारी ही समस्या नहीं थी, बल्कि इसने हमारे भीतर की सभी समस्याओं को सामने लाने के लिए उत्प्रेरक का काम किया। वैसे, लास्जलो खुद को बचाते हुए दिखाई देता है लेकिन ‘जो’ एक समस्या या वायरस की तरह अपार्टमेंट में प्रवेश करता है और एक विनाशकारी पावर बन जाता है।’
लार्स नॉरन ने कहा, ‘पूरी मानवता के लिए महामारी जीवन बदलने वाला समय था। इसे फिल्म के रूप सामने रखना हमारा कर्तव्य है। एक संगीतकार, फोटोग्राफर, लेखक या फिल्म निर्माता के रूप में, ऐसा महसूस हुआ कि किसी के काम में महामारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।’
लार्स नॉरन ने यह भी कहा, ‘मैं अपार्टमेंट को एक कैरेक्टर के तौर पर पेश करना चाहता था जिसमें हर कमरे की अपनी ध्वनि और रागिनी हो। डिस्टेंज बदलाव के लिए डर को भी सामने लाता है।’ उन्होंने कहा कि अगर आपको बदलना है तो डर को छोड़ना होगा। वह एक अपार्टमेंट में दो लोगों की कहानी कहना चाहते थे। उन्होंने कहा कि यह फिल्म इस तथ्य को सामने रखती है कि कभी-कभी अपने आप को निखारने के लिए खुद को धूल में मिलाना पड़ता है।
निर्माता फेलिक्स लीबर्ग ने इसे ‘वक्त का दस्तावेज’ बताया जो लॉकडाउन के बगैर संभव नहीं हो पाता। इस फिल्म की शूटिंग और पूरा काम लॉकडाउन में ही हुआ। उन्होंने कहा, ‘यह समय का एक हिस्सा है, इतिहास का एक क्षण जिसे हम रचनात्मक तरीके से कैद करना चाहते थे।’ भारतीय समाज के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘यहां का इतिहास और संस्कृति सबको जोड़ने, बांटने, प्रेम और दया में है।’
महामारी के दौरान फिल्म की शूटिंग में आई चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर, दोनों अभिनेताओं हन्ना एरलिचमैन और लुकास इंग्लैंडर ने कहा कि संक्रमित होने का डर तो बना हुआ था, फिर भी क्रू के साथ बबल में और अलग-थलग रहने से उन्हें सुरक्षित महसूस हुआ। हन्ना ने आगे कहा कि अपने किरदार में ढलने से वह अपना अपूर्ण पक्ष तलाशने लगीं।
हन्ना एरलिचमैन ने यह भी कहा, ‘फिल्म का एक हिस्सा अपनी भावनाओं से डरने का जर्मन तरीका दिखाता है और आपकी भावनाओं के बारे में बात करता है।’ अभिनेता लुकास इंग्लैंडर ने फिल्म को ‘समय का एक दस्तावेज बताया जहां हम संक्रमण से गुजर रहे थे और अपने मसलों एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं के बारे में बोलना शुरू किया था। हम खुद नहीं जानते थे कि कैसे बनें।’
फिल्म लगातार बढ़ते सामाजिक प्रतिबंधों और जटिलताओं से मुक्ति का आग्रह करती दिखती है। ‘डिस्टेंज’ आज के समय में हमारे समाज का प्रतिबिंब है। लास्जलो और जो अपने सबसे शुद्ध मानव रूप में हानि, तनाव, अहंकार, भय, सेक्स और प्रेम के परिणाम पर बात करते हैं। डिस्टेंज फिल्म लॉकडाउन के दौरान लिखी गई थी, जिसे सिर्फ एक अपार्टमेंट में शूट किया गया और पूरी तरह स्वतंत्र रूप से बनकर तैयार हुई। यह एक आधुनिक नाटक है, जो इंसान की आत्मा की गहराई में उतरता है और पहचान एवं जीवन के स्वरूपों के सवालों का जवाब देता है।
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