नई दिल्ली : फंसे कर्जो (एनपीए) और दबावग्रस्त कर्जो की समस्या से जूझ रहे सरकारी बैंकों को घाटे में चल रही शाखाओं को बंद करने का वित्त मंत्रलय ने सुझाव दिया है। मंत्रलय ने वित्तीय हालात सुधारने के लिए इसे जरूरी कदम बताया है।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक मंत्रलय ने बैंकों से कहा है कि घाटे वाली शाखाओं को चलाते रहने का कोई औचित्य नहीं बनता है। इनसे बैंक के बैलेंस शीट पर दबाव बढ़ता है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) और पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) इस दिशा में पहले ही कदम उठा चुके हैं। संसाधनों के अधिकतम उपयोग और प्रशासनिक लागत में कटौती के लक्ष्य के साथ इंडियन ओवरसीज बैंक भी देश में क्षेत्रीय कार्यालयों की संख्या 59 से घटाकर 49 कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय शाखाओं के संदर्भ में मंत्रलय ने बैंकों से एकीकरण पर विचार करने और कुछ गैर जरूरी शाखाओं को बंद करने को कहा है। मंत्रलय का कहना है कि बाहर किसी एक देश में कई भारतीय बैंकों के होने की जरूरत नहीं है। वहां पांच-छह बैंकों को मिलकर सब्सिडियरी के रूप में एकल शाखा चलाने पर विचार करना चाहिए। सरकारी बैंक कुछ शाखाओं को बंद करने या बेचने पर भी विचार कर सकते हैं ताकि अधिकतम रिटर्न वाले बाजारों पर फोकस किया जा सके। इसके तहत पीएनबी ब्रिटेन में अपनी सब्सिडियरी पीएनबी इंटरनेशनल में हिस्सेदारी बेचने की संभावना तलाश रही है।
नोटबंदी के बाद भी दक्षिणी राज्यों में घरेलू जमा सुस्त
पिछले साल नवंबर में नोटबंदी के बावजूद वित्त वर्ष 2016-17 मं दक्षिणी राज्यों में घरेलू डिपॉजिट की वृद्धि दर धीमी रही। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के चलते बीते वित्त वर्ष में घरेलू डिपॉजिट में अच्छी खासी तेजी आई थी। 2015-16 के 12.3 फीसद की तुलना में बीते वित्त वर्ष में राष्ट्रीय स्तर पर इन डिपॉजिट में 14.1 फीसद की वृद्धि हुई थी। हालांकि, इस दौरान दक्षिणी राज्यों में इस मामले में वृद्धि दर में गिरावट आई। 2015-16 के 13.8 फीसद की तुलना में 2016-17 में वृद्धि दर 13.3 फीसद रही। सबसे धीमी रफ्तार कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना में देखी गई।
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