न्यूज़ डेस्क : कोविड-19 काल में स्कूलों के बंद होने से पूरी दुनिया में बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है। इस दौरान केवल उन्हीं बच्चों को कुछ शिक्षा मिल पा रही है, जो इंटरनेट सेवाओं से जुड़े हुए हैं और ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया के लगभग एक तिहाई बच्चे इंटरनेट, कंप्यूटर या लैपटॉप जैसे संसाधनों के अभाव के कारण ऑनलाइन शिक्षा से पूरी तरह वंचित हैं।
अकेले भारत में पांच वर्ष से 24 वर्ष आयु के बीच पढ़ने वाले बच्चों के केवल आठ फीसदी घरों में इंटरनेट और कंप्यूटर की उपलब्धता है। इससे भारी संख्या में बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ने की संभावना है। यूनिसेफ ने विभिन्न देशों की सरकारों और अन्य संगठनों से मिलकर इस डिजिटल गैप को 2030 तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
डिजिटल गैप का असर
शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत प्रताप चंद्र के मुताबिक इंटरनेट-कंप्यूटर अब किताबों की जगह लेते जा रहे हैं। कोरोना काल में यह गति और तेज हो गई है। आशंका है कि कोरोना काल आगे बढ़ने से यह न्यू नॉर्मल की तरह विकसित हो सकता है। ऐसे में डिजिटल गैप अमीरों और गरीबों के बीच केवल एक खाई भर नहीं है, बल्कि ऑनलाइन शिक्षा से वंचित रहने के कारण यह भविष्य में एक अलग अशिक्षित पीढ़ी तैयार कर सकता है। यह पूरी दुनिया के विकास में बाधक साबित हो सकता है। इंटरनेट और कंप्यूटर के कारण शिक्षा के केवल चंद बच्चों तक सीमित रहने का खतरा पैदा हो गया है, इसलिए दुनिया की सभी सरकारों को हर वर्ग तक इंटरनेट-कंप्यूटर की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
28.6 करोड़ बच्चे प्रभावित
यूनेस्को की नवीनतम रिपोर्ट मेें कहा गया है कि कोरोना काल के कारण दुनियाभर में लगभग 100 करोड़ बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है। डिजिटल गैप के कारण लगभग एक तिहाई बच्चे पूरी तरह शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं। भारत में पूर्व प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर तक की पढ़ाई करने वाले पंजीकृत 28.6 करोड़ बच्चे कोरोना काल में स्कूल बंदी के कारण प्रभावित हैं। इनमें 49 फीसदी लड़कियां हैं।
स्मार्टफोन बना कंप्यूटर का विकल्प
कंप्यूटर और लैपटॉप के महंगा होने के कारण स्मार्टफोन ने तेजी से इसकी जगह ली है। विशेषज्ञों की सलाह है कि इसे टैबलेट, लैपटॉप या कंप्यूटर के विकल्प के रूप में विकसित किया जा सकता है। सस्ता होने के कारण यह सबकी पहुंच में आ सकता है। भारत में स्मार्टफोन उपभोक्ताओं की संख्या 50 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है। हालांकि, अंतिम विकल्प के रूप में अभी भी कंप्यूटर या टैबलेट को प्राथमिकता दी जाती है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि टैबलेट के मास प्रॉडक्शन से इसकी लागत घटाई जा सकती है।
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