लेटेस्ट टैक्नोलॉजी से रूबरू हुए ‘क्रिटिकल केयर नेफ्रोलॉजी कॉन्फ्रेंस साइंटिफिक प्रोग्राम” में डॉक्टर्स

इंदौर, मार्च 2020। हर वर्ष मार्च माह के दूसरे गुरुवार को वर्ल्ड किडनी डे मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य लोगों को इस बारे में जागरूक करना है कि उन्हें किडनी संबंधी परेशानी न हो, किडनी से संबंधित रोग कौन-कौन से होते हैं, उन रोगों के उपचार और उपचार की आधुनिक से अवगत कराना होता है।
लोगों को इसी बारे में जागरूक करने के लिए शहर में 15 मार्च को होटल रेडिसन ब्लू में ‘क्रिटिकल केयर नेफ्रोलॉजी कॉन्फ्रेंस साइंटिफिक प्रोग्राम” विषय पर कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। इस एक दिवसीय कॉन्फ्रेंस में देश के विभिन्ना हिस्सों से आए विशेषज्ञों ने भाग लिया। कोरोना वायरस से बचाव के लिए यहां सैनेटाइजर और मास्क की व्यवस्था भी की गई थी और सभी ने हाथ मिलाने के बजाय अभिवादन के लिए नमस्ते किया।
*कॉन्फ्रैंस में उदयपुर से आए डॉ. प्रशांत बेंद्रे* ने आईसीयू में भर्ती किडनी रोगी के उपचार के आधुनिक तरीकों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि ऐसे किडनी के साथ जिनका हार्ट और बीपी दोनों ही फेल हो चुके हैं लेकिन सांस चल रही है उन्हें सीआरआरटी मशीन के जरिए तब किडनी के फंग्शन कराए जा सकते हैं जब तक कि वह जीवित है। यह मशीन किडनी फेल होने पर भी किडनी के फंग्शन कृत्रिम तौर पर करती है। यह मशीन इंदौर में भी आ चुकी है। 
*उपचार की आधुनिक तकनीक के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए डॉ. प्रशांत बेंद्रे ने बताया कि* वर्तमान में ऐसी मशीन भी आ चुकी है जो रक्त में मिल चुके विशेष तरह के जहर को निकालने में सक्षम हैं। खून में से जहर को फिल्टर करने वाली इस टैक्नोलॉजी से रक्त में मिला कीटनाशक का जहर, बगैर डॉक्टरी सलाह से ली गई ज्यादा मात्रा में दर्द निवारक और नींद आने वाली दवाओं के जहर को भी निकाला जा सकता है। डायलेसिस में ज्यादा जरूरी है लेटेस्ट टैक्नोलॉजी l
नेफ्रोलॉजिस्ट एंड ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ.संदीप सक्सेना और पिडियाट्रिक नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. शिल्पा सक्सेना द्वारा आयोजित की गई इस कॉन्फ्रेंस में इंदौर, भोपाल, देवास और उज्जैन के भी नेफ्रोलॉजिस्ट, जनरल फीजिशियन, क्रिटीकल केयर स्पेशलिस्टों ने भाग लिया। *डॉ. संदीप सक्सेना ने बताया कि* आईसीयू में जो किडनी पेशेंट है उसकी व्यक्तिगत समस्याओं को समझकर उपचार किया जाना चाहिए। सभी रोगियों को एक सा उपचार नहीं दिया जा सकता। गंभीर रोगी के लिए तो लेटेस्ट टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना और भी जरूरी हो जाता है। एक भ्रांति यह भी है कि जिनकी किडनी फेल हो चुकी है और स्थिति बहुत नाजुक है उनका डायलेसिस नहीं किया जाए। हकीकत तो यह है कि उन मरीजों को डायलेसिस की ज्यादा जरूरत होती है। किडनी पेशेंट में एसिड और नमक की मात्रा बहुत गंभीर स्थिति पर पहुंच जाती है ऐसे में उसे पहचानकर उसके अनुरूप किस तरह उपचार किया जाए इस बारे में भी यहां बताया गया। 
कॉन्फ्रेंस में वयस्कों को होने वाली किडनी संबंधी समस्या और उपचार के बारे में तो चर्चा की गई। इसके साथ ही बच्चों को होने वाली किडनी संबधी समस्या पर भी जानकारियां दी जाएगी। 
*पिडियाट्रिक नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. शिल्पा सक्सेना* द्वारा पिडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट पर संबोधित किया गया। 
दवा की मात्रा और समय पर ध्यान देना जरूरी  
*एम्स नई दिल्ली से आईं डॉ. सौमिता बागचई* ने कॉन्फ्रेंस में संबोधित करते हुए किडनी पेशेंट्स को दी जाने वाली दवाओं के बारे में जानकारियां साझा की। डॉ. सौमिता ने बताया कि जब किडनी पेशेंट्स डायलेसिस पर होते हैं तो उन्हें जो एन्टीबायोटिक टैबलेट्स दी जाती है तो उसके अवयव, मात्रा और समय पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। किस रोगी को कौन सी दवाई कितनी मात्रा में और कब-कब दी जाना चाहिए यह बात बहुत मायने रखती है। इसके साथ ही इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स को भी ध्यान देना जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब किडनी फेल हो जाती है तो दवाएं पेशाब के जरिए शरीर से बाहर निकलने के स्थान पर शरीर में जमा होने लगती है ऐसे में इन तमाम बातों पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो जाता है। 
बेहतर उपचार के लिए सेटअप भी हो : 
*डॉ. आशीष शर्मा ने कहा कि* डायलेसिस एक ऐसा उपचार है जो किडनी के फेल होने के बाद भी व्यक्ति को जीवित रखता है। पर विडंबना यह है कि आज भी देश में डायलेसिस की 40 साल पुरानी पद्धति ही अपनाई जा रही है। जबकि एडवांस डायलेसिस टैक्नोलॉजी ‘एचडीएफ” को अपनाना होगा। यह टैक्नोलॉजी महंगी जरूर नजर आती है लेकिन इसके फायदे बहुत ज्यादा हैं। इसकी मदद से व्यक्ति की जिंदगी बेहतर, आसान हो जाती है, उसे कम मात्रा में दवाइयां लेना पड़ती है और वह ज्यादा बेहतर ढंग से काम कर पाता है। इस दृष्टिकोण से वह महंगी होकर भी महंगी नहीं लगती। हमारा काम है कि हम आधुनिक तकनीक से परिचय कराएं। इसके साथ ही इन टैक्नोलॉजी के बारे में, उनके उपयोग के बारे में जानकारी देना हमारा दायित्व है। अकेला डॉक्टर कुछ नहीं कर सकता उसे रोगी को स्वस्थ करने के लिए बेहतर सेटअप की जरूरत होती है।

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